Pallavi Vinod
पल्लवी विनोद

सफ़र बहुत ख़ुशनुमा था। रास्ते में किसी तरह का व्यवधान नहीं पड़ा। मंज़िल भी बहुत दूर नहीं थी कि गाड़ी की गति बहुत धीमी हो गयी। तब तक मुझे अहसास हुआ कि हम ग़लत दिशा में जा रहे हैं। मैंने चालक से पूछा..

“अरे ये कार को विपरीत दिशा में क्यों ले लिया?”
“जी हमारा मोड़ यहीं पर है। अगर उस साइड से जाते तो बहुत ज़्यादा दूर जाने पर डाइवर्ज़न मिलता।”
“अच्छा! तब थोड़ा आराम से चलाइएगा।”
ज़िंदगी के रास्तों पर भी ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं जब सीधा रास्ता इतना लम्बा हो जाता है कि हमें न चाहते हुए भी कुछ देर के ग़लत दिशा में मुड़ना पड़ता है। उस दिशा में इंसान ख़ुद की बेहतरी के बारे में सोचता है। उस समय उसका उद्देश्य सिर्फ़ आने वाला मोड़ होता है। अब ऐसी दशा में आने वाला हर वाहन रूपी अवरोध उसके लिए ख़तरा बन सकता है। इसको यूँ भी समझ सकते हैं कि जब हम अपने लक्ष्य के लिए जोखिम उठाते हैं तो अवरोध आने तय हैं। हम अक्सर उन अवरोधों को भला बुरा कह देते हैं अथवा उन्हें अपना दुश्मन समझ लेते हैं लेकिन वो अपनी जगह सही होते हैं। उनका तो रास्ता यही था। उन्हें इसप्रकार ही आगे बढ़ना था।

जीवन के रास्ते भी ऐसे ही होते हैं। हर व्यक्ति अपनी दिशा में आगे बढ़ रहा है। उसे पता है कि उसका हित उसमें ही है। क्या करें जब हम सही रास्ते पर हों और कोई ग़लत दिशा से हमारे रास्ते में आ गया हो? अथवा मजबूरन हमें ग़लत दिशा में आगे बढ़ना पड़ गया हो….. बस अपनी गति को थोड़ा धीमा करना होगा। सामने से आती भावना को गुज़रने देना होगा। क्या होगा जो हम अपने गन्तव्य तक कुछ देर से पहुँचें पर हमारे मन में सुकून तो होगा किसी और को अपनी मंज़िल मिल गयी।

हम अक्सर कहते हैं अमुक व्यक्ति ग़लत है या अमुक व्यक्ति सही है। पर हम इस सही और ग़लत की परिभाषा को तय कैसे करते हैं। क्या वाक़ई इंसान को ख़राब और अच्छे की श्रेणी में बाँटा जा सकता है? एक मोटिवेशनल स्पीकर के कार्यक्रम में दो दोस्त गए थे। वो अपनी सभा को ख़ुशी पाने का सही तारीका समझाते हुए कह रहे थे कि ये ज़िंदगी हमें एक ही बार मिलती है। हमें जिस कार्य को करने में आनंद मिले वही करना चाहिए। दूसरों के अनुसार जीवन जीना ही दुःख का सबसे बड़ा कारण है। उन दोनों दोस्तों ने ये बात सुनी।

एक ने घर आकर अपने घरवालों के विरुद्ध जाकर अपनी प्रेमिका से शादी कर ली और दूसरे ने तलाक़ के काग़ज़ पर दस्तख़त कर दिया…….उन दोनों के अनुसार उन्होंने सही किया था लेकिन किसी दूसरे के लिए ये ग़लत था। अक्सर हमसे जुड़े रिश्तों के साथ यही होता है। हम सामने वाले को कितना भी प्रेम दें लेकिन कहीं न कहीं वो हमारे लिए अथवा हम उसके लिए ग़लत ही होते हैं। जब भी इस तरह की परिस्थिति हमारे समक्ष आए हमें अपने मन रूपी वाहन को नियंत्रित करना पड़ेगा। थोड़ा समय और थोड़ी समझदारी सब कुछ सम्भाल देती है।

ये जीवन एक सफ़र ही तो है। हर सफ़र की तरह कुछ लोग हमारे साथ ही अपना सफ़र आरम्भ करते हैं और कुछ आगे आने वाले पड़ावों पर मिलते जाते हैं। एक लम्बी दूरी के बाद हमारे पास कुछ लोग ही होते हैं। हर छूटने वाला एक कहानी और एक याद छोड़कर चला जाता है। हर साथी हम से एक तरह से नहीं जुड़ता कुछ को हम पसंद आते हैं कुछ को हम पसंद करते हैं। उसी तरह वो भी हमें पसंद /नापसंद करते हैं। हमारे साथ चल रहे लोगों का सफ़र कब ख़त्म हो जाए या उनका रास्ता कब हमसे अलग हो जाए ये किसी को नहीं पता। हमें शुरू से ही इन स्थितियों के लिए ख़ुद को तैयार करना पड़ेगा। अन्यथा छूटने का दुःख हमारे सफ़र को बहुत बोझिल कर देगा। हर सफ़र में सामान कम रखने की सलाह दी जाती है उसी तरह जीवन के सफ़र में भी उम्मीद और लालसाओं को कम रखना चाहिए।

मैंने कहीं पढ़ा था, “ ज़िंदगी ही तो है इतनी गम्भीरता से मत लो” पहले इसका अर्थ समझ नहीं आता था लेकिन अब लगता है यह वाक्य शत प्रतिशत सत्य है। हम अपने सामने आयी मुश्किलों को बोझ बनाकर अपने ही सर पर रख लेते हैं। जब हमें पाठ्यक्रम और विषय सूची के बारे में कुछ पता ही नहीं तो परीक्षा से क्या घबराना। ऐसी परिस्थिति में पूरे आत्मविश्वास के साथ, परीक्षा केंद्र में जाना चाहिए और हर सवाल का बहुत समझदारी और सब्र के साथ जवाब देना चाहिए। ये ऐसी परीक्षा है जिसमें उत्तीर्ण होना या मेरिट में आना अहम नहीं है। हम परीक्षा की घड़ी में भी डटे रहे और उसको प्रश्नपत्र के सभी सवालों को हल किए, वही ज़्यादा महत्वपूर्ण है। परिणाम जो भी हो हमें उम्र की अगली कक्षा में पहुँचा ही देंगे।

इसे भी पढ़ें: दान का महत्व

Spread the news