वाराणसी। वाराणसी के दारानगर इलाके में स्थित महामृत्युंजय मंदिर में महामृत्युंजय जप कराने से लोगों को विश्वास है कि अकाल मृत्यु नहीं होती। गंभीर बीमारियों से भी मुक्ति मिलती है। मंदिर परिसर में स्थित कुएं के जल से पेट की बीमारियां ठीक होने का दावा भक्त करते है।
भक्तों का मानना है कि कुएं में भूमिगत जल धाराओं के आने वाले जल के सेवन से बीमारियां नहीं फटकती। कुंए को लेकर एक कहावत है कि भगवान धन्वंतरि ने अपनी सारी दवा उस कुएं में डाल दी है, इसलिए इस कुएं का पानी पवित्र है और औषधीय प्रभाव के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के इलाज में सक्षम है।
मंदिर में नियमित दर्शन करने वाले प्रवीन तिवारी ‘गुड्डू’ और नवल पांडेय बताते हैं किे महा मृत्युंजय का अर्थ ही है मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाले महादेव। देशभर से लोग इस मंदिर में आते है और बीमारियों से पीड़ित अपनों के लिए महामृत्युंजय जप कराते है। ज्यादातर लोगों के परिजन इस जप से स्वस्थ हो जाते हैं। महादेव के पावन लिंग के दर्शन मात्र से ही जीवन में आने वाली बाधाओं का शमन हो जाता है। महादेव भक्तों के दुख के साथ ही अकाल मृत्यु के भय को भी दूर करते हैं।
प्रवीन तिवारी बताते हैं कि पूरे भारत वर्ष में सिर्फ और सिर्फ धर्म नगरी काशी में ही महामृत्यंजय महादेव के स्वरूप में महादेव दर्शन देते हैं। मंदिर के महंत परिवार के वरिष्ठ सदस्य सोमनाथ दीक्षित बताते हैं कि मंदिर परिसर के एक ओर महामृत्युंजय है तो दूसरे छोर पर महाकालेश्वर पुत्र रूप में विराजमान हैं। परिसर में नागेश्वर महादेव हैं तो भैरव का विग्रह भी है। मंदिर में गोस्वामी तुलसी दास द्वारा स्थापित हनुमान जी का मंदिर है, प्राचीन पीपल का वृक्ष है और शनिदेव का मंदिर भी है। उन्होंने बताया कि मंदिर परिसर में धनवंतरी कूप है। इसी कूप में भगवान धनवंतरी ने कई जड़ी-बूटियां और औषधियां डाली थीं। इस कूप का जल पीने से पेट के रोग से मुक्ति मिलती है।
उन्होंने बताया कि महामृत्युंजय महादेव का वर्ष भर में चार विशेष श्रृंगार होता है। इसमें महामृत्युंजय के साकार रूप का श्रृंगार सबसे खास होता है। इसमें बाबा की आठ भुजाएं, सिर से चंद्र वर्षा, बगल में बगला मुखी माता विराजती हैं। बगला मुखी माता को बाबा की अर्धांगिनी के रूप में मान्यता प्राप्त है। एक हाथ में रुद्राक्ष की माला तो चार भुजाओं में कलश होता है। इस स्वरूप का दर्शऩ अद्भुत होता है।
नवल पांडेय बताते हैं कि इस धरा पर सबसे पुराना अड़भंगी जीवित शहर वाराणसी है। इसे श्री काशी विश्वनाथ की नगरी माना जाता है। वाराणसी में भगवान शिव के कई रूपों में पूजा की जाती है। यहीं द्वादश ज्योतिर्लिंग में से बाबा विशेशर (श्री काशी विश्वनाथ) भी विराजमान हैं। मृत्युंजय महादेव मंदिर भी बनारस में बड़ा महत्व रखता है। सनातनी मानते हैं कि जो इंसान चल-फिर नहीं सकता, उसके कानों में महामृत्युंजय नाम जाने मात्र से वह स्वस्थ होने लगता है।
नवल बताते हैं कि मृत्युंजय महादेव का विग्रह मंदिर में स्वयंभू हैं। इसे किसी ने स्थापित नहीं किया है। पहले यहां जंगल था और बाबा का मंदिर भी मड़ई में था। कालांतर में मड़ई से पत्थर का मंदिर बना। इसके बाद मंदिर के महंत पंडित केदार नाथ दीक्षित और उनके पिता ने मिल कर यहां गर्भगृह का जीर्णोद्धार कराया। चांदी का दरवाजा और चांदी का अरघा बना।

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