नई दिल्ली: राजनीति को मिशन के तौर पर न लेकर इसे कमीशन का एक जरिया बनाने वालों को लोकतांत्रिक चुनाव प्रणाली का हिस्सा बनने से रोकने की आवाज तेज होने लगी है। खासतौर से बुद्धिजीवियों ने कमीशनखोरों को चुनावी राजनीति से बाहर का रास्ता दिखाने का बेड़ा उठाया है और इसके लिए वो युवाओं को आगे आने को प्रेरित कर रहे हैं। इसी सिलसिले में एबी फाउंडेशन और यूथ फॉर नेशन के संयुक्त तत्वधान में वर्चुअल माध्यम से आयोजित एक गोष्ठी में शामिल हुए बुद्धिजीवियों ने समवेत स्वर में कहा कि जो कमीशनखोर हैं वो राजनेता नहीं हो सकते, इसलिए ऐसे लोगों को चुनावी राजनीति से बाहर करने के लिए उनका बहिष्कार किया जाना चाहिए।

इस गोष्ठी में प्रोफेसर, पत्रकार, वकील, प्रशासनिक व सेना के अधिकारी समेत विभिन्न क्षेत्रों के पेशेवर और युवा शामिल हुए थे। उनका कहना था कि जो बटा हुआ होता है उसे जीतना काफी आसान होता है। इतिहास गवाह है कि इसी कारण भारतवर्ष सदियों तक गुलाम बना रहा क्योंकि हम जाति, धर्म व किसी अन्य कारण से बटे रहे। परिचर्चा में शामिल हुए पूर्व वाइस चांसलर प्रोफेसर डॉक्टर एसके काक ने कहा, ‘हमें इंडिया को भारतवर्ष में बदलना होगा। कोरोना काल में जहां पूरा विश्व मुश्किलों से घिरा हुआ था उस वक्त भारत ने सिर्फ अपनी मुश्किलों पर विजय पाई, बल्कि विश्व के अनेक देशों को मदद भी की। साथ ही, एक महाशक्ति के रूप में विश्व की तृतीय बड़ी यूनिकॉर्न बनने में सफल रहा है। भारत आज फिर विश्व गुरु बनने की राह में अग्रसर है।’

वहीं, इंडियन नेवी की पूर्व कमांडर सुश्री तृप्ति दुबे ने जहां भारत के स्वर्णिम तथा गौरवशाली इतिहास के साथ सनातन धर्म की विशेषताओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने याद दिलाया कि विश्व के सारी क्रांति की शुरुआत किसी न किसी युवा के द्वारा किया गया है। उन्होंने कहा, ‘युवा वर्ग के बिना किसी राष्ट्र का निर्माण संभव नहीं है।’ उन्होंने युवाओं से आह्वान करते हुए कहा, ‘आज के युवा वर्ग का ध्यान नौकरी की तरफ न होकर स्वरोजगार की तरफ होना चाहिए।’

इसे भी पढ़ें: गुलाम थे तो एक थे, आजाद होते ही हम क्यों बंट गए

गोष्ठी में वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी श्याम सुंदर पाठक ने बताया कि एक अधिकारी बनने के लिए अनेक तरह की योग्यता की आवश्यकता होती है। लेकिन एक राजनेता बनने की किसी प्रकार की योग्यता अनिवार्य नहीं है। उन्होंने आगे कहा, ‘यह हमारे देश की एक बहुत बड़ी विडंबना है।’ उन्होंने युवाओं से आवाहन किया कि वे भारत का इतिहास गंभीरता के साथ पढ़ें तभी उन्हें अपने भारतवासी होने का गर्व महसूस होगा। उन्होंने कहा कि युवा के ऊपर यह जिम्मेदारी है वह इतिहास की समझ रखकर खुद जागे तथा दूसरे को जगाने का भी प्रयास करें। आज के युवा वर्ग के अंदर राष्ट्र प्रथम का बोध कराना अत्यंत आवश्यक है।

कार्यक्रम के आरंभ में गोष्ठी के विषय की प्रस्तावना रखते हुए एवी फाउंडेशन के मार्गदर्शक एवं वरिष्ठ पत्रकार पद्मपति शर्मा ने कहा कि लोकतंत्र कहीं भीड़तंत्र नहीं बने इसकी जिम्मेदारी हम सबकी है। हम सबको अपनी जाति और धर्म से ऊपर उठकर राष्ट्रधर्म प्रथम का पालन करना होगा। वहीं, यूथ फॉर नेशन के संयोजक और पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल विष्णु चतुर्वेदी ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, ‘युवाओं के अंदर यह बोध होना चाहिए कि ‘भारत हमें जान से भी प्यारा है’ तभी हमारा भारतवर्ष एक सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र तथा विश्वगुरु बनेगा।

फाउंडेशन के ट्रस्टी और चार्टर्ड अकाउंटेंट व आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ सीके मिश्रा ने अपनी संस्था की ओर से विभिन्न विषयों पर कोविड-19 की पहली और दूसरी लहर के दौरान आयोजित लगभग 70 वेबिनारों की विस्तृत जानकारी दी। कार्यक्रम के संचालन के दायित्व का निर्वहन दिल्ली के इंडियन इंस्टीट्यूट आफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की प्रोफेसर डॉ. सुरभि पांडे के द्वारा बहुत ही सफलता के साथ किया। अंत में फाउंडेशन की ओर से अपने धन्यवाद ज्ञापन में कोलकाता के अधिवक्ता व समाज सेवी आनंद कुमार सिंह ने सभी वक्ताओं, श्रोताओं तथा अपनी टीम के साथियों का आभार व्यक्त करते हुए विश्वास जताया कि आने वाले समय में युवा तथा सभी नागरिक मिलकर भारतवर्ष को विश्व गुरु बनाने में अपने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करेंगे। इस विश्वास के साथ उन्होंने नेताजी के द्वारा दिया गया ‘जय हिंद’ के उदघोष के साथ वर्चुअल गोष्ठी का समापन किया।

इसे भी पढ़ें: पीएम मोदी ने पहले की सरकारों की गलतियों का कराया एहसास

Spread the news