अरबिन्द शर्मा अजनवी
अरबिन्द शर्मा अजनवी

क़लम हमारी, हमसे बोली,
कविता कोई, प्यारी लिख दो।
विरह व्यथा तुम, बहुत लिख चुके,
अब प्रेम प्यार पर, कुछ लिख दो।।

गिरि से गिरते, निर्मल झरने,
आलिंगन करते नदियों को।
मधुकर को, फूलों संग हँसते,
उपवन में खिलते कलियों को।।

प्रणय मिलन अलबेली का तुम,
प्रेम भरा कोई, राग लिख दो।
क़लम हमारी, हमसे बोली,
कविता कोई, प्यारी लिख दो।।

हो कोयल जैसी, कूक सुहानी,
अंतर्मन की, जो ललक बढ़ाये।
मिलें संग जब, राग रागिनि,
आंनद ह्रदय में छा जाये।।

नवयौवना के, मदमस्त नैन को,
मधुशाला का जाम, लिख दो।
क़लम हमारी, हमसे बोली,
कविता कोई, प्यारी लिख दो।।

मेरी प्यारी क़लम सुनो!
जो तुम कहती हो, बात सही है!
पर, जो ह्रदय प्रेम से वंचित हो,
वह प्रेम राग कैसे, लिख दे?

सदा रहा दु:ख, जिसका साथी,
सुख, जिससे नफ़रत करती हो।
वह प्रेम गीत कैसे लिख दे?
जब दर्द ह्रदय से उठती हो।।

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