अरबिन्द शर्मा अजनवी
अरबिन्द शर्मा अजनवी

शोर मचाओ बरसो सावन,
आज तुम हमरी अँगना।
आज हुई रे मैं तो बावरी,
घर आये मोर सजना।।

मन बगिया की कली खिली है,
उठे महक चहु ओर।
नाच रही मैं बन के मयूरी,
ना दिल पे कोई ज़ोर।।

रात पूनम संग धवल चांदनी,
हैं चंदा संग तारे।
खन- खन- खनके हाथ चूड़ियां,
पायल पांव हमारे।।

अरे, ताना हमको मार रहा था,
बह-बह कर पुरवाई,
साथ उसे भी लेकर आना,
दिल में ख़ुशियां छाई।।

पुरुवा को संग लेकर सावन,
मोरे अटरिया आना।
जले देख सौतन जस पुरुवा,
पिया मिलन दिखलाना।।

कर सोलह सिगार सजी हूं,
सज़ा सेज, घर, अंगना ।
आज हुई रे मैं तो बावरी,
घर आये मोर सजना।।

उड़े हवा में काली ज़ुल्फ़ें,
नागीन सी लहराये।
मध्य माँग सिन्दूर की लाली,
मोरे पिया को भाये।।

आज जमीं पर पांव नहीं है,
मन नहीं बस में मेरे।
बन के दामिनी चमके बिदिया,
दिल में उठे हिलोरे।।

आज गरज ले काले बदरा,
चाहे मचा ले शोर।
अब ना मोहे डर लागे रे,
साथ मेरे चितचोर।।

काजल के संग नयन सजें हैं,
सुर्ख़ होंठ पर लाली।
नाक की नथुनी चमक रही है,
कान में लटके बाली।।

पांव महावर हाथ की मेहंदी,
ख़ुशी से झूमे कंगना।
आज हुई रे मैं तो बावरी,
घर आये मोर सजना।।

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