photo Dr. Madhusudan Dixit
डॉ. मधुसूदन दीक्षित

तलब इतनी न अपनी बढ़ाया करो,
दाग-ए-दिल न किसी को दिखाया करो।

गर्म आँसू हैं आँखों में देखो बहुत,
घुट-घुटके न जीवन बिताया करो।

अच्छे लोगों से दुनिया है भरी-पटी,
रोज संग में तू भी खिलखिलाया करो।

जाँ को बेचो नहीं, दिल को बेचो नहीं,
दिल दुखाने से पहले ही आया करो।

सिलसिला टूट सकता न सुख-दुःख का,
अपने लोगों को घर पे बुलाया करो।

जाम पीना है होंठों से पियो मगर,
जरूरत अपनी उन्हें न बताया करो।

खेलो तन्हाइयों के न हाथों कभी,
हाल-ए-दिल तो किसी को सुनाया करो।

कत्ल करती है आँखों से कूचे में वो,
उसकी नाज-ओ-अदा तू उठाया करो।

बुझ जाएगी एक दिन शमा साँसों की,
कमाई मेहनत की घर लाया करो।

उड़ रही हैं फिजाओं में तितली बहुत,
रंग उनके बदन का चुराया करो।

न मकां है चरागों का जहां में कोई,
तू हवा से न मिलके बुझाया करो।

लोग करते रफू मुफलिसी का सुनों,
मजाक यतीमों का तू न उड़ाया करो।

उम्रभर जागने की न दो तू सजा,
अपने पलकों में उसको सुलाया करो।

न सलीका है पीने-पिलाने का ये,
उसका आँसू पलक से उठाया करो।

तलब काँटों की जो भी हो पहले सुनों,
फूल हमदर्दी का ही बिछाया करो।

(रचनाकार उच्च न्यायालय उत्तर प्रदेश में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं)

इसे भी पढ़ें: इतनी क्यों जलती है तुम्हारी तशरीफ

इसे भी पढ़ें: मैं नहीं गिरा

Spread the news