Pauranik Katha: हम सभी इस सृष्टि के निर्माता के रूप में परमपिता भगवान ब्रह्मा को देखते हैं, जबकि संचालक की भूमिका भगवान विष्णु व संहारक महादेव स्वयं हैं। सृष्टि निर्माता भगवान ब्रह्मा की पत्नी का नाम सरस्वती है लेकिन आखिरकार सरस्वती माता की कहानी क्या हैं या फिर सरस्वती की उत्पत्ति कैसे हुई? इसलिए आज हम आपको सरस्वती माता का जन्म, इसके पीछे का कारण, भगवान ब्रह्मा की पत्नी बनना इत्यादि सभी के बारे में विस्तार से बताएँगे।

यह उस समय की बात है जब भगवान ब्रह्मा को भगवान शिव ने पृथ्वी के निर्माण का आदेश दिया था। महादेव के आदेशानुसार, भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि व इस पृथ्वी का निर्माण किया। उन्होंने पृथ्वी में समुंद्र, नदियाँ, पहाड़, जीव-जंतु, पेड़-पौधे इत्यादि सभी चीज़ों का निर्माण कर दिया। अपने द्वारा पृथ्वी का निर्माण किये जाने के पश्चात जब भगवान ब्रह्मा ने उसे देखा, तो उन्हें अपनी बनाई रचना में कुछ कमी लगी।

पृथ्वी दिखने में तो बहुत सुंदर थी, लेकिन चारो ओर केवन मौन व उदासी छाई थी। कही कोई ध्वनि व संवाद नहीं था एवं सब सूना-सूना सा प्रतीत हो रहा था। कहने का तात्पर्य यह हुआ कि पृथ्वी में कहीं भी कोई ध्वनी या संगीत नहीं था, जिस कारण पक्षियों के चहचहाने, नदियों के बहने, हवा की सरसराहट इत्यादि कुछ भी सुनाई नहीं पड़ रहा था। यह देखकर भगवान ब्रह्मा अपनी रचना पर अत्यंत दुखी हो गए और इसका उपाय निकालने भगवान विष्णु के पास गए।

दुखी मन से भगवान ब्रह्मा विष्णु लोक पहुंचे और उनके सामने अपनी समस्या रखी। उन्होंने भगवान विष्णु को बताया कि चूँकि अब यह सृष्टि उन्हें ही चलानी है, लेकिन वे उन्हें यह सुनसान सृष्टि नहीं सौंप सकते। इसलिए इसका कोई मार्ग निकाले। भगवान विष्णु ब्रह्मा की चिंता का कारण समझ गए और इसके लिए उन्होंने आदिशक्ति को बुलाने का आह्वान किया।

भगवान विष्णु जानते थे कि किसी भी चीज़ को पूर्ण केवल पुरुषत्व नहीं कर सकता और उसमें स्त्रीत्व का होना अति-आवश्यक हैं। भगवान विष्णु के द्वारा आह्वान किये जाने पर माँ आदिशक्ति वहां प्रकट हुई, ताकि वे एक नयी दैवीय शक्ति को जन्म दे सके।

माँ के प्रकट होने के बाद भगवान ब्रह्मा ने उन्हें सृष्टि का अवलोकन कर उसकी कमी को दूर करने की याचना की। माँ आदिशक्ति ने सृष्टि का गहन अध्ययन किया और पाया कि इसमें तत्व तो सभी विद्यमान हैं, लेकिन ध्वनी व संवाद की कमी हैं। साथ ही सृष्टि में बुद्धि व ज्ञान का भी अभाव था। अब माँ को एक नयी शक्ति का विकास करना था जो सृष्टि की इस कमी को दूर कर सके।

सृष्टि की कमी को दूर करने के लिए, माँ दुर्गा के शरीर से एक तेज़ उत्पन्न हुआ व उसमें से स्वेत वस्त्रों में चार हाथों वाली एक दिव्य नारी प्रकट हुई। उसने अपने दो हाथों में वीणा पकड़ रखी थी व तीसरे में वर्णमाला और चौथे हाथ में पुस्तक ले रखी थी। उस नारी का नाम सरस्वती रखा गया। माँ सरस्वती ने प्रकट होते ही अपनी वीणा से मधुर संगीत बजाया। वीणा का संगीत बजते ही विश्व के समस्त प्राणियों में वाणी का विकास हुआ, वायु में सरसराहट होने लगी, जलधारा में कोलाहल हुआ व पूरा विश्व मानो चहक सा उठा। पूरी पृथ्वी में विभिन्न प्रकार की ध्वनियाँ गुंजाएमान हो उठी, जिस कारण हर किसी में एक नया उत्साह व उमंग का संचार हुआ।

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इसी के साथ उन्होंने विश्व के सभी प्राणियों व जीव-जन्तुओं की प्रजातियों में उनकी क्षमता के अनुसार विद्या का विकास किया। माँ सरस्वती के प्रभाव के कारण ही हर जीव के अंदर विभिन्न कार्यों को करने की दक्षता थी व सभी में उसी अनुसार अलग-अलग कौशल विकसित हुआ। इसके बाद माँ आदिशक्ति ने ब्रह्मा जी से कहा कि जिस प्रकार माँ लक्ष्मी भगवान विष्णु की आदिशक्ति है, माँ पार्वती महादेव की, उसी प्रकार माँ सरस्वती आपकी आदिशक्ति व धर्मपत्नी होंगी। माँ आदिशक्ति के कहेनुसार, भगवान ब्रह्मा ने माँ सरस्वती को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लिया। इस कारण हम सभी माँ सरस्वती को विद्या, बुद्धि, वीणा व संगीत की देवी मानकर उनकी पूजा करते हैं। हर गुरुकुल व विद्यालय में विद्यार्थी माँ सरस्वती की आराधना मुख्य तौर पर करता है। संगीतकार भी माँ सरस्वती को अपनी आराध्य देवी मानते हैं।

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