लखनऊ: ब्राह्मण भले ही तिरस्कार के दौर से गुजर रहा हो पर चुनाव के लिए वह कितना जरूरी है वह उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 से पहले दिखने लगा है। प्रदेश की प्रमुख राजनीतिक पार्टियां इस समय ब्राह्मणों को रिझाने में लग गई हैं। बसपा पार्टी महासचिव सतीश चंद्र मिश्र के जरिए जहां ब्राह्मण सम्मेलन करा रही है, वहीं सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के निर्देश पर पार्टी जिलों में प्रबुद्ध सम्मेलन कराने की तैयारी में जुट गई है। इतना ही नहीं सपा ने एलान किया है कि सत्ता में आने के बाद वह परशुराम जयंती पर अवकाश को बहाल करेगी।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पांच ब्राह्मण नेताओं के साथ बैठक कर प्रबुद्ध सम्मेलन कराने के मुद्दे पर रणनीति बनाई और इन नेताओं को सक्रिय रहने के निर्देश दिए। बैठक में यूपी विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय, पूर्व कैबिनेट मंत्री मनोज पांडेय, अभिषेक मिश्र, पूर्व विधायक सनातन पांडेय व संतोष पांडेय मौजूद रहे। बैठक में इन नेताओं की एक कमेटी बना दी गई है। यही कमेटी अब आगे की रणनीति तय करेगी। इसक अलावा प्रदेश में दौरे कर ब्राह्मण समाज को जोड़ने का काम करेगी।

जानकारी के मुताबिक बैठक में तय हुआ कि सम्मेलन की शुरुआत बलिया से किया जाएगा। इन सम्मेलनों के जरिए यह संदेश देने की कोशिश की जाएगी कि कैसे सपा सरकार में हर वर्ग का ख्याल रखा गया और मौजूदा भाजपा सरकार में ब्राह्मणों का उत्पीड़न किया जा रहा है। सूत्रों की मानें तो पार्टी जल्द अन्य ब्राह्मण नेताओं को भी सक्रिय भागीदारी की जिम्मेदारी सौंप सकती है।

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सपा सरकार में धर्मार्थ कार्य मंत्री रहे मनोज पांडेय ने बताया कि सपा सरकार के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री यादव के निर्देश पर स्वर्ण यात्र योजना शुरू की गई थी। इसमें श्रद्धालुओं को तीर्थस्थलों की यात्रा निशुल्क करवाई जाती थी। ऐसे में यह उम्मीद की जा रही है कि सपा अब ब्राह्मणों को रिझाने के लिए नए सिरे से रणनीति तैयार करने में जुटी है। पार्टी ने ब्राह्मण नेताओं को सपा सरकार में संस्कृत विद्यालयों के उत्थान के लिए किए गए कार्यों से जनता को परिचित कराने का निर्देश दिया है। इस संदर्भ में अभिषेक मिश्र ने ट्वीट कर लिखा हे कि उत्तर प्रदेश में आने वाले वक्त के लिए आज का दिन एक नई शुरुआत लेकर आएगा। श्रावण मास के प्रथम दिन भगवान भोलेनाथ की हम सब पर विशेष कृपा हुई है।

ब्राह्मण को दिखानी होगी योग्यता

ब्राह्मण ऐसा कौम है, जिसकी जरूरत हर किसी को है, पर कड़वा सच यह भी है कि इन्हें कोई नहीं पसंद करता। वर्चस्व को लेकर आपस में खंडित रहने वाले ब्राह्मणों को सत्ता में सही सम्मान आज तक नहीं मिल सका। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अभी हाल में सुरेश रैना ने खुलेआम खुद को ब्राह्मण क्या बोल दिया देश में हंगामा मच गया। इससे समझा जा सकता है कि देश में ब्राह्मणों को कितना पसंद किया जाता है। फिलहाल ब्राह्मणों का वर्चस्व उनकी अपनी योग्यता के बदौलत है।

यूपी की राजनीति में जिस तरह से ब्राह्मण कार्ड खेलने की कोशिश की जा रही है। उससे यह साबित हो रहा है कि राजनीति पार्टियां ब्राह्मणों को बेवकूफ समझने लगी हैं। क्योंकि अक्सर चुनाव में किसान, गरीब, पिछड़ा और दलित कार्ड खेला गया। उनके नाम पर वोट तो हासिल कर लिया गया, लेकिन उनकी आज की स्थिति के जिम्मेदार भी यही राजनीतिक पार्टियां हैं। खैर इस बात को अगर किसान, गरीब, दलित और पिछड़ों ने समझने की कोशिश की होती तो जाति धर्म के नाम पर बंटने की कोशिश न करते। लेकिन ब्राह्मणों को यहां इस बात को समझना होगा।

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