Abhishek 'Ajnabee'
अभिषेक ‘अजनबी’

लहू पीने की आदत हो गई है
सियासत एक लानत हो गई है

शरीफों की कहां दुनिया बची है
जहां में अब शराफ़त खो गई है

थी कुदरत ने हमें बख़्शी अमानत
मग़र उसमें ख़यानत हो गई है

जो बे-परदा कभी निकले वो घर से
लगा जैसे क़यामत हो गई है

हैं ज़िंदा ‘अजनबी’ तू क्यों जहां में
यहां ‘लानत’ पे लानत हो गई है

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