नई दिल्ली: कांग्रेस के सत्ता से बेदखल होने के बाद देश में जहां आतंकवादी गतिविधियों में कमी आई है, अंदरूनी घटनाओं की बाढ़ सी आ गई। इसे एक तरह केंद्र की मोदी सरकार की विफलता माना जा सकता है, वहीं कांग्रेस की साजिश से इनकार भी नहीं किया जा सकता। दिल्ली के जेएनयू में कुछ लोगों की तरफ से देश विरोधी नारे लगाए गए, देश के टुकड़े करने की बात की गई। कांग्रेस ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने की जगह नारे लगाने वालों के साथ नजर आई। किसान आंदोलन की आड़ में गत वर्ष दिल्ली के लाल किले पर जो आराजकता का नंगा नाच किया गया, कांग्रेस उनके भी साथ नजर आई। वहीं देश के पांच राज्यों में चल रहे चुनाव के बीच बीजेपी शासित राज्य कर्नाटक में हिजाब विवाद (Karnataka Hijab Controversy) गहरा गया है। इस विवाद में भी कांग्रेस का हाथ होने के आरोप लगने लगे हैं।

हाई कोर्ट में हिजाब के पक्ष में तर्क देने वाला वकील कांग्रेस पार्टी से जुड़ा हुआ है। वकील देवदत्त कामत कांग्रेस के कानूनी प्रकोष्ठ के प्रतिनिधि हैं। हालांकि उनकी तरफ से तर्क दिया जा रहा है कि वकालत उनका पेशा है और वह किसी का भी मुकदमा लड़ने के लिए स्वतंत्र हैं। लेकिन यहां सवाल यह भी उठने लगा है कि देश में आतंकियों के पक्ष में, टुकड़े-टुकड़े गैंग के पक्ष में, बड़े भ्रष्टाचारियों के पक्ष में मुकदमा लड़ने वाला वकील कांग्रेस से ही क्यों होता है? बीजेपी शुरू से ही इस बात को लेकर कांग्रेस को घेरती आई है।

कर्नाटक में इस समय हिजाब विवाद (Karnataka Hijab Controversy) ने काफी तूल पकड़ लिया है। इसका लेकर सत्तारूढ़ बीजेपी और कांग्रेस आमने-सामने आ गई हैं। कर्नाटक बीजेपी की तरफ से ट्वीट कर कहा गया है कि हम कहते रहे हैं कि हिजाब विवाद के पीछे कांग्रेस का हाथ है। हिजाब के पक्ष में पैरवी करने वाला वकील देवदत्त कामत कांग्रेस के कानूनी प्रकोष्ठ के प्रतिनिधि हैं। यह सबसे बड़ा उदाहरण है। इसी के साथ बीजेपी ने विपक्ष पर देश को तोड़ने का आरोप लगाया है।

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बता दें कि देश में इस समय पांच राज्यों में विधानसभा का चुनाव चल रहा है। चुनाव के समय जहां गड़े मुद्दे उखाड़े जाते हैं, वहीं नए मुद्दे बनाए भी जाते हैं। कर्नाटक में हिजाब के बहाने शुरू हुए इस नाटक को इसी नजरिए से देखा जा रहा है। क्योंकि दुनिया के अफगानिस्तान सरीखे मुस्लिम देश की महिलाएं जहां हिजाब से आजादी चाहती हैं। वहीं भारत में स्कूलों में भी हिजाब पहनने के लिए प्रदर्शन कर रही हैं। ये वहीं महिलाएं हैं जो सदियां तीन तलाक और हलाल जैसे कुरीतियों की शिकार होती रहीं, लेकिन कभी आवाज उठाने की हिम्मत नहीं दिखा पाईं। आज जब किसी नेता ने इनकों इस गंदगी से बाहर निकाल दिया है, तो यहीं महिलाएं उसके खिलाफ सियासी हथियार बनकर सड़क पर हैं।

ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है सीएए के खिलाफ भी मुसिलम महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। मुस्लिमों को गुमराह किया गया था कि सीएए के आने से उन्हें देश निकाला कर दिया जाएगा। केंद्र की मोदी सरकार के मुहिम छेड़ रखा था, लेकिन इतने दिनों बावजूद भी किसी मुस्लिम को देश से निकाला नहीं गया। बावजूद इसके मुस्लिमों को यह बात समझ में नहीं आ रही है, कि राजनीतिक दलों की तरफ से उन्हें किस कदर गुमराह किया जा रहा है।

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