सुमित मेहता

Indian Spy: जब भी दो देशों के बीच युद्ध होता है तो सीमा पर खड़ा जवान युद्ध लड़ता है, लेकिन युद्ध में जीत दिलाने में दुश्मन देश में मौजूद जासूस (Indian Spy) अहम रोल निभाता है। देश की सुरक्षा के लिए दोनों को ही अपनी जान दांव पर लगानी पड़ती है, लेकिन जासूस के सिर पर मौत हर वक़्त मंडराती रहती है। खतरे के बीच रहकर वो दुश्मन की हर चाल पर नज़र रखता है और उसे अपने देश तक पहुँचाता है, इसकी वजह से ही दुश्मन देश की हर नापाक चाल को कामयाब होने से रोका जाता है। आज हम बात करने जा रहे हैं एक ऐसे ही जासूस की, जिसने पाकिस्तान की नींद उड़ा दी थी। वो भारतीय जासूस (Indian Spy) अपनी पहचान छिपाने में माहिर था। एक समय ऐसा भी आया था कि, वो पाकिस्तानी सेना में मेजर भी बन गए थे। उस भारतीय जाबांज जासूस (Indian Spy) का नाम है रविंद्र कौशिक (Ravindra Kaushik)।

राजस्थान के श्रीगंगानगर में 11 अप्रैल, 1952 को जन्मे रविंद्र (Ravindra Kaushik) का पहला प्यार थिएटर था। उनकी एक्टिंग को देखकर ही रॉ ने उन्हें स्पॉट कर किया। वर्ष 1975 में ग्रेजुएशन कंप्लीरट करने के बाद रविंद्र ने रॉ ज्वाइन कर ली और उन्हें नया नाम मिला नबी अहमद शाकिर। इस नए नाम के साथ उन्हें करीब दो साल की कड़ी ट्रेनिंग दी गई और उसके बाद उन्हें एक खुफिया मिशन पर पाकिस्तान भेज दिया गया। अंडरकवर एजेंट रविंद्र (Ravindra Kaushik) ने कराची विश्वविद्यालय में Admission लिया और एलएलबी की पढ़ाई शुरू कर दी और जैसे ही उनकी पढ़ाई पूरी हुई, तो उन्होंने पाकिस्तानी सेना ज्वाइन कर ली।

वर्ष 1979 से 1983 के बीच रविंद्र ने कई अहम जानकारियां भारतीय सेना तक पहुंचाई। उनकी बहादुरी को देखते हुए उनका नाम टाइगर भी पड़ गया था। इसी दौरान एक पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी की बेटी से उन्हें मोहब्बत हो गई, जिसका नाम अमानत था। कुछ ही दिनों में दोनों की शादी हो गई। खास बात यह है कि, रविंद्र ने अमानत को भी अपने बारे में कुछ नहीं बताया था। शादी के बाद उनका एक बेटा भी हुआ, जिनका नाम आरीब अहमद खान रखा गया।

रविंद्र कौशिक पाकिस्तान में रहकर लगातार भारत को खुफिया जानकारी भेजा करते थे, लेकिन सितंबर, 1983 में एक भारतीय जासूस इनायत मसीह ने जब रविंद्र से कांटेक्ट करने की कोशिश तो पूरा खेल खुल गया। इनायत को गिरफ्तार कर लिया गया, जिसके बाद उन्होंने पाकिस्तानी सेना के सामने सच उगल दिया। इस सच को सुनते ही पाकिस्तानी सेना के होश उड़ गए और तुरंत रविंद्र कौशिक को गिरफ्तार कर लिया गया। करीब दो साल कोर्ट में केस चलने के बाद वर्ष 1985 में कौशिक को मौत की सजा सुनाई गयी। इस सजा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई और अदालत ने मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया।

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रविंद्र पाकिस्तान की सियालकोट में मौजूद लखपत और मियांवाली जेलों में 16 साल कैद रहे। इस दौरान उन्हें टीबी, अस्थमा और दिल की बीमारियां हो गईं। इन बीमारियों से लड़ते-लड़ते उन्होंने नवबंर, 2001 में दुनिया छोड़ दी। मौत के बाद भी पाकिस्तानी हुकूमत ने रविंद्र के शव को उनकी पत्नी बच्चों को नहीं दिया, बल्कि उन्हें मुल्ताकन की सेंट्रल जेल में दफना दिया गया। देश को दुश्मनों से बचाने के लिए हजारों जासूसों ने अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी है, जिनके बारे में हम और आप नहीं जानते।

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