Health Tips: कब्ज या कब्जियता, जिसे अपने समय पर्याप्त मात्रा में मल समागम नहीं होने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, एक आम स्वास्थ्य समस्या है जिसका सबसे मुख्य कारण खाद्य पदार्थों में अपर्याप्त पोषण और शरीर में पानी की कमी हो सकती है। इसके अलावा, अन्य कारणों में अनुयायियों की बेतरतीब जीवनशैली, अपर्याप्त व्यायाम, तनाव, और अनियमित खानपान भी शामिल हो सकते हैं।

आयुर्वेद में, कब्ज को ‘विरुद्धाहारी’ बताया गया है, जिसका अर्थ है कि असहीत आहार और जीवनशैली इसकी वृद्धि का मुख्य कारण होते हैं। कब्ज के उपचार के लिए आयुर्वेद में कई प्राकृतिक तरीके हैं, जिनमें निम्नलिखित चरण शामिल हो सकते हैं:

आहार संशोधन: अपने आहार में पर्याप्त मात्रा में फाइबर सम्मिलित करने का प्रयास करें। फाइबर युक्त आहार खाने से पाचन प्रणाली सुधारती है और मल आसानी से बाहर आता है। मूली, गाजर, घिया, खरबूज, और अनार जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन करें।

जल सेवन: पर्याप्त पानी पीने से शरीर की हार्मोनल संरचना और पाचन प्रणाली में सुधार होती है। दिन में कम से कम 8-10 गिलास पानी पीने का प्रयास करें।

व्यायाम: योग और प्राणायाम करने से शरीर की ऊर्जा प्रवाहित होती है और पाचन प्रणाली सुधारती है। पैदल चलना, ध्यान करना, और योगासन करना भी फायदेमंद होता है।

आयुर्वेदिक औषधियाँ: आयुर्वेद में कई जड़ी-बूटियाँ और औषधियाँ हैं जो कब्ज के उपचार में मददगार सिद्ध हो सकती हैं। त्रिफला, ईसबगोल, निशोथ, सेन्ना, और हरितकी जैसी आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन करने से आपकी पाचन प्रणाली सुधार सकती है।

दिनचर्या: आयुर्वेद में दिनचर्या का महत्व है। नियमित खानपान, निद्रा, और दिनबहर के समय परिभाषित क्रियाएँ करने से आपकी पाचन प्रणाली सही तरीके से काम करती है।

यदि कब्ज गंभीर हो रही है या उपयुक्त उपायों से भी सुधार नहीं हो रही है, तो आपको एक प्रशिक्षित आयुर्वेद विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। वे आपकी प्रकृति, दोष, और विकृति के आधार पर आपके लिए उपयुक्त उपचार प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं।

कब्ज होने वाली बीमारियां

कब्ज जनित बीमारियाँ अक्सर पाचन प्रणाली की दुर्बलता, खानपान में असही आदतें, कम पानी पीना, अल्कोहल की अधिकता, कम फाइबर युक्त आहार आदि के कारण हो सकती हैं। कुछ प्रमुख कब्ज जनित बीमारियाँ निम्नलिखित हो सकती हैं:

पिल्लिया (जौंडिस): पिल्लिया में लिवर में सूजन होती है जिससे सारी शरीर में पेशाब और पत्तियाँ पीली दिखाई देती हैं।

आंवला (हर्णिया): इसमें पेट की परत में फाड़ या दरार हो जाती है, जिससे अंदर के अंगों का बाहर निकलने लगता है।

बवासीर (पाइल्स): बवासीर में मलाशय के आसपास की नसें फूल जाती हैं, जिससे दर्द, खुजली और खूनी बवासीर की समस्या होती है।

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आंत की संदर्भितता (आंतरगत विकार): यह आंत में सूजन या आंतरिक दरार की वजह से हो सकता है जिससे दर्द, पेट में बल से महसूस होना आदि हो सकता है।

अग्नाशय संबंधित समस्याएँ (गैस्ट्रोइंटेस्टिनल इस्यूज): अग्नाशय में जलन, अम्लता, पेट में बढ़ती गैस, उलटी, पेट दर्द, आदि कई समस्याएँ कब्ज के कारण हो सकती हैं।

आंतों की सूजन (आंतों में सूजन): यह आमतौर पर बच्चों में होता है और इसके कारण पेट में दर्द और तनाव की स्थितियाँ हो सकती हैं।

बच्चों में पेट में कीड़े (वर्म्स): बच्चों में कीड़े होने की वजह से पेट में दर्द, उलटी, खुजली, गंदगी आदि की समस्याएँ हो सकती हैं।

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