Vishnugupta
आचार्य श्री विष्णुगुप्त

Gujarat assembly elections 2022: गुजरात के हिन्दू न तो बिकाऊ हैं, न ही लालची हैं और न ही सेक्युलर मानसिकता के हैं। फिर गुजरात के हिन्दू कौन सी मानसिकता के हैं? गुजरात के हिन्दू राष्ट्रवादी हैं, राष्ट्र की अस्मिता से समझौता करना उन्हें स्वीकार नहीं है, सेक्युलर राजनीति उन्हें भाती नहीं है, लालच उन्हें डिगाती नहीं और पैसे पर बिकते नहीं हैं। लोकलुभावन घोषणाएं भी उनकी ध्यान नहीं खींचती। इस तरह का दावा करने का मेरा आधार क्या हो सकता है? मेरा गुजरात का अनुभव ही आधार है।

वर्ष 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव (Gujarat assembly elections) में मेरी भी बहुत बड़ी भूमिका थी, मुझे संविधान विशेषज्ञ और कवि लक्ष्मी नारायण भाला की कृपा से नरेन्द्र मोदी की चुनाव प्रबंधन की टोली में शामिल होने सुअवसर मिला था। गुजरात के प्रायः सभी शहरों में चुनावी भ्रमण किया और जनता की चुनावी नब्ज को पकड़ने की कोशिश की थी। देश के बड़े-बड़े विचारक और चुनाव विश्लेषक उस समय गुजरात में उपस्थित व सक्रिय थे। चुनावी विचारकों और चुनाव विश्लेषकों का कथन था कि गुजरात में सत्ता विरोधी हवा है, कांग्रेस की हवा बह रही है।

गुजरात की जनता अब सांप्रदायिकता को सिर पर ढोना नहीं चाहती है, सांप्रदायिकता के कंलक से मुक्त होना चाहती है। गुजरात में विकास नहीं बल्कि विनाश का राज चल रहा है। नरेन्द्र मोदी का जलवा मद्धिम पड़ चुका है। सोनिया गांधी ने भी नरेन्द्र मोदी को संहारक और विनाशक करार देकर चुनावी वातावारण को गर्म कर दिया था। सोनिया गांधी का संदेश था कि हम सेक्युलरवाद से ही नरेन्द्र मोदी को पराजित करेंगे। यह कौन नहीं जानता है कि कांग्रेस सेक्युलरवाद की नीति पर चलती है। पर जब वर्ष 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव का परिणाम आया, तब नरेन्द्र मोदी को एक बार फिर प्रचंड जीत मिली। सारे के सारे चुनाव विश्लेषकों और चुनाव विचारकों के कथन झूठे साबित हुए, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि सोनिया गांधी का सेक्युलरवाद और मुस्लिमवाद आत्मघाती साबित हुआ था।

इसबार गुजरात विधानसभा चुनाव में भी बहुत सारे ऐसे दावे किये जा रहे हैं। बहुत सारे झूठ के पहाड़ खड़े किये जा रहे हैं। परतंत्र विचारक और परतंत्र विश्लेषक गुजरात की जनता के विचार से अलग चुनावी वातावरण तैयार करने में लगे हुए हैं। परतंत्र विचारकों और परतंत्र विश्लेषकों को एक और सुविधा और रास्ता मिल गया है। उनके सामने पहले कांग्रेस ही हुआ करती थी, लेकिन अब उनके सामने आम आदमी पार्टी भी है। कांग्रेस की चुनावी आग मद्धिम ही है। इसलिए कांग्रेस अब इनकी पंसद नहीं रही, इनकी पंसद अब आम आदमी पार्टी बन गयी है।

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आम आदमी पार्टी गुजरात की जनता में नहीं बल्कि परतंत्र चुनावी विश्लेषकों और विचारकों को एक संभावना जरूर दिख रही है। उन्हें ऐसा लग रहा है कि आम आदमी पार्टी गुजरात में करिश्मा जरूर कर सकती है। आम आदमी के करिश्में के सामने नरेन्द्र मोदी का करिश्मा पराजित ही हो जायेगा। अरविन्द केजरीवाल में जिस तरह से दिल्ली में भाजपा और पंजाब में कांग्रेस को साफ कर दिखाया है, उसी तरह गुजरात में भी सफलता हासिल कर सकते हैं। यही कारण है कि टीवी चैनलों पर आम आदमी पार्टी का दावा कुछ ज्यादा ही किया जा रहा है। आम आदमी पार्टी की कथित चुनावी सनसनी का जोर-शोर से प्रचारित किया जा रहा है। आम आदमी पार्टी के पक्ष में टीवी चैनलों पर हवा भी बनायी जा रही है।

नैतिक और वैचारिक पराजय का दर्शन भी कर लीजिये। हिन्दुत्व न तो कांग्रेस और न ही आम आदमी पार्टी का दर्शन रहा है। इन दोनों का दर्शन तो घोर मुस्लिम वाद का रहा है। गुजरात दंगों को लेकर कांग्रेस हमेशा नरेन्द्र मोदी को निशाना बनाती रही और सांप्रदायिकत कह कर अपमानित करती रही है। कांग्रेस ने कभी भी गोधरा ट्रेन कांड में मारे गये कारसेवकों के प्रति संवेदना प्रकट नहीं की। अरविन्द केजरीवाल का एक बयान यह है कि उनकी दादी कहती थी कि उस राममंदिर की क्या जरूरत, जो एक मस्जिद को तोड़ कर बनायी जा रही है।

अरविन्द केजरीवाल ने कश्मीरी हिंदुओं पर बनी फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ की आलोचना की थी और द कश्मीर फाइल्स फिल्म को टैक्स फ्री करने से इनकार कर दिया था। दिल्ली विधानसभा में कश्मीर फिल्म पर हुई बहस में अरविन्द केजरीवाल ने कश्मीर में हिन्दुओं के कत्लेआम को भाजपा का षडयंत्र बताया था और कश्मीर के हिन्दुओं के बलिदान पर खिल्ली भी उड़ायी थी। इसके अलावा पाकिस्तान से दिल्ली आये हिन्दुओं को सुविधाएं देने से इनकार कर दिया था। इस तरह के अनेक उदाहरण पड़े हुए हैं।

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गुजरात विधानसभा चुनावों में रंगा शियार की संस्कृति बह रही है। कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी का टीवी चैनलों पर एक प्रमो घूम रहा है, जिसमें प्रियंका गांधी की ललाट पर चंदन के टिके की लंबी लाइन खिंची हुई है। प्रियंका गांधी के ललाट पर चंदन का टिका? हर कोई को आश्चर्य में डाल रहा है, जिस खानदान को हिन्दुओं से इतनी नफरत रही है, उस खानदान के वंशज के ललाट पर चंदन के टिके के सीधा अर्थ क्या है? इसका सीधा अर्थ यह है कि अब हिन्दुओं से नफरत करने वाले इस खानदान को भी हिन्दुओं से डर लगने लगा है। हिन्दुओं को वोट नहीं देने का डर लगने लगा है।

हिन्दुओं की नाराजगी से कांग्रेस एक तरह से हाशिये पर खड़ी है, यह कौन नहीं जानता है। अब अरविन्द केजरीवाल की कहानी जानिये। अरविन्द केजरीवाल अब भारतीय रुपयों पर लक्ष्मी की फोटो लगाने की मांग कर चुके हैं। इसके अलावा अरविन्द केजरीवाल गुजरात के मठ-मंदिरों में जा रहे हैं। ललाट पर लंबा चंदन टिका भी लगा रहे हैं और गले में रूद्राक्ष की माला भी पहन कर प्रचार में लगे हुए हैं। उनका एक बयान यह भी है कि उनका जन्म जन्माष्टमी के दिन हुआ है और भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें राजनीति में विशेष सेवा करने के लिए भेजा है। अरविन्द केजरीवाल अचानक हिन्दुत्व प्रेमी बन गये हैं।

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निश्चित और अनिश्चत में किसकी जीत होगी, कौन निश्चित है और कौन अनिश्चित है? भाजपा का हिन्दुत्व निश्चित है, अटल है, अविचलित है और सक्रिय है, जीवंत है। जबकि कांग्रेस और केजरीवाल का हिन्दुत्व अनिश्चित है, भ्रम है, हथकंडा है, शिकारी जाल बिछायेगा, दाना डालेगा जैसा है। गुजरात के हिन्दू पिछले कई चुनावों में भाजपा के साथ हैं, उन्हें भाजपा के हिन्दुत्व में विश्वास है। लेकिन गुजरात के हिन्दुओं में कांग्रेस और केजरीवाल का अनिश्चित, भ्रम में डालने वाला और शिकारी जैसा हिन्दुत्व पंसद हो सकता है क्या? गुजरात की हिन्दू जनता कभी भी निश्चित को छोड़कर अनिश्चित पर दांव नहीं लगा सकती है, गुजरात की हिन्दू जनता कभी भी छद्म धर्मनिरपेक्षता को गले नहीं लगाती है।

गुजरात का चुनाव ही नहीं बल्कि वर्ष 2014 से लेकर आज तक सभी संसदीय चुनाव धर्म के आधार पर ही लड़े गये हैं। इसमें हिन्दुत्व की प्रमुखता रही है। भाजपा की जीत और नरेन्द्र मोदी के परचम लहराने के पीछे का आधार हिन्दुत्व ही है। कभी यह अवधारणा थी कि मुस्लिम आबादी ही देश में सरकार बनाती है और सरकार बिगाड़ती है। यह अवधारणा गुजरात में बार-बार टूटी है और देश में 2014 से लेकर आज तक टूट रही है।

गुजरात की अस्मिता की समृद्धि प्रेरक है। गुजरात की प्रेरक अस्मिता क्या है? नरेन्द्र मोदी का देश का प्रधानमंत्री होना ही प्रेरक अस्मिता है। गुजरात की जनता नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री होने पर गर्व करती है। विकास की कसौटी पर भी गुजरात चमक रहा है। गुजरात में मुख्यमंत्री कोई भी हो पर चेहरा नरेन्द्र मोदी ही होते हैं, विकास रुकता नहीं है, विकास की गति बहती ही रहती है। एक डर यह भी है कि अगर कांग्रेस या केजरीवाल की सरकार बन गयी तो फिर उसी तरह से गुजराती अस्मिता कूचली जायेगी, अपमानित होगी जिस तरह कांग्रेस ने 2002 से लेकर 2014 तक गुजराती अस्मिता को कूचली थी और अपमानित करती थी।

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उपर्युक्त तथ्यों और हिन्दुत्व की बहती प्रेरक अस्मिता को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इस गुजरात विधानसभा चुनाव में भी हिन्दुत्व प्रेम का ही डंका बजेगा, मोदी का ही परचम लहरेगा। चुनाव परिणाम आने के बाद परतंत्र विचारकों-विश्लेषकों के रेत की दीवारें ढह जायेंगी, झूठ के पहाड़ भर-भरा कर गिर जायेंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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