Astrology News: हिंदू धर्म में वैवाहिक जीवन को पूर्ण सफल तभी माना जाता हैं, जब संतान प्राप्ती हो। भारतीय धर्म में गृहस्थ आश्रम को चारों आश्रमों में सर्वश्रेष्ट आश्रम कहा गया है। उसका सबसे बड़ा कारण कुल व वंश को चलाने वाले संतान की प्राप्ती इसी आश्रम में होती हैं। लेकिन कुछ ग्रहों के बुरे योग संतान होने में अनेक प्रकार की बाधायें उत्पन्न करते हैं।

ज्योतिष शास्त्र को वेदों का नैत्र कहा गया हैं, इस शास्त्र के द्वारा जीवन के विभिन्न पहलुओं को देखा व समझा जा सकता हैं। जन्म कुंडली में जिन योगों की वजह से संतान होने में बाधायें आती हैं, उनमें से प्रमुख योग हैं-

1- पंचम स्थान व षष्ट स्थान के मालिक यदि एक-दूसरे की राशि में स्थित हो, तो ऐसे जातक की सन्तान बार-बार गर्भ पात के कारण नष्ट हो जाती हैं।

2- पंचमेश अष्टम स्थान में हो तथा पंचम स्थान पर पापी ग्रहों का प्रभाव हो तो जातक को सन्तान सुख प्राप्त नहीं हो पाता।

3- पंचम स्थान पर शनि व राहु का प्रभाव मृत संतान देता हैं या संतान सुख से हीन करता हैं।

4- मंगल का पंचम प्रभाव अत्यधिक कष्ट पूर्वक संतान देता हैं, ऐसे जातकों कि संतान ऑपरेशन के द्वारा होती हैं। यदि शुभ प्रभाव हो तो अन्यथा अशुभ प्रभाव में संतान नहीं होती। मंगल व राहु का संयुक्त प्रभाव सर्प श्राप के कारण संतान होने में दिक्क्त देता है।

5- सूर्य का पंचम प्रभाव संतान से वंचित करता हैं, अथवा अत्यधिक प्रयत्न करने से एक संतान की प्राप्ती करवाता है।

6- लग्न, पंचम व सप्तम स्थान पर सूर्य, बुध और शनि का प्रभाव संतान प्राप्ती नहीं होने देता।

7- शुक्र यदि पुरुष जातक की जन्म कुंडली में शनि, बुध व राहु के साथ स्थित हो तथा पंचम व सप्तम स्थान पर पापी ग्रहों का प्रभाव हो तो शुक्र (वीर्य) दोष होता है।

8- पंचम स्थान पर शनि सूर्य का प्रभाव हो तथा राहु या केतु से दृष्टि सम्बंध बनाये तो पितृदोष के कारण संतान प्राप्ती में बाधा आती है।

9- पंचम स्थान पर देवगुरु बृहस्पति स्थित हो तथा पापी ग्रहों का प्रभाव हो तो संतान होने में अनेक बाधाएं आती हैं।

10- पंचमेश व गुरु दोनों एक साथ द्वादश स्थान में स्थित हो तथा मंगल व अष्ट मेश पंचम भाव में हो तो जातक को सन्तान सुख से वंचित होना पड़ता है।

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उपाय

1- बृहस्पति देव संतान कारक होते हैं। गुरु का पूजन करने से विभिन्न प्रकार के दोष स्वत:नष्ट हो जाते हैं।

2- संतान प्राप्ती के लिये संतान बाल गोपाल पूजन किया जाता हैं, इस पूजन में कृष्ण भगवान का बाल रूप मे पूजन होता हैं। संतान बाल गोपाल का मंत्र हैं- ”ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।”

3- किसी मन्दिर या स्कूल में केले का पेड़ लगायें व इसका नित्य पूजन करें।

4- हरिवंश महापुराण का पाठ करायें तथा श्रवण करें।

5- पित्रों के लिये दान करें। पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलायें तथा चीटियों व कौओं को दाना आदि दें।

6- 11 प्रदोष व्रत करें। भगवान शिव का अभिषेक संतान प्राप्ती की लिये लाभदायक उपाय हैं।

पं वेद प्रकाश तिवारी
ज्योतिष एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ
मो. 9919242815
निशुल्क परामर्श उपलब्ध

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