Pauranik Katha: कथा का आरंभ तब का है, जब बाली को ब्रम्हा जी से ये वरदान प्राप्त हुआ कि जो भी उससे युद्ध करने उसके सामने आएगा, उसकी आधी ताक़त बाली के शरीर में चली जायेगीऔर इससे बाली हर युद्ध में अजेय रहेगा। सुग्रीव, बाली दोनों ब्रम्हा के औरस (वरदान द्वारा प्राप्त) पुत्र हैं और ब्रम्हा जी की कृपा बाली पर सदैव बनी रहती है। बाली को अपने बल पर बड़ा घमंड था, उसका घमंड तब ओर भी बढ़ गया जब उसने करीब-करीब तीनों लोकों पर विजय पाए हुए रावण से युद्ध किया और रावण को अपनी पूँछ से बांध कर छह महीने तक पूरी दुनिया घूमी।
रावण जैसे योद्धा को इस प्रकार हरा कर बाली के घमंड का कोई सीमा न रहा। अब वो अपने आपको संसार का सबसे बड़ा योद्धा समझने लगा था और यही उसकी सबसे बड़ी भूल हुई। अपने ताकत के मद में चूर बाली एक दिन एक जंगल में पेड़ पौधों को तिनके के समान उखाड़ फेंक रहा था। हरे भरे वृक्षों को तहस नहस कर दे रहा था। अमृत समान जल के सरोवरों को मिट्टी से मिला कर कीचड़ कर दे रहा था। एक तरह से अपने ताक़त के नशे में बाली पूरे जंगल को उजाड़ कर रख देना चाहता था और बार-बार अपने से युद्ध करने की चेतावनी दे रहा था। है कोई जो बाली से युद्ध करने की हिम्मत रखता हो, है कोई जो अपने माँ का दूध पिया हो, जो युद्ध करके बाली को हरा दे। इस तरह की गर्जना करते हुए बाली उस जंगल को तहस नहस कर रहा था।
संयोग वश उसी जंगल के बीच में हनुमान जी, राम नाम का जाप करते हुए तपस्या में बैठे थे। बाली की इस हरकत से हनुमान जी को राम नाम का जप करने में विघ्न लगा। और हनुमान जी बाली के सामने जाकर बोले- हे वीरों के वीर, हे ब्रम्ह अंश, हे राजकुमार बाली, (तब बाली किष्किंधा के युवराज थे) क्यों इस शांत जंगल को अपने बल की बलि दे रहे हो। हरे भरे पेड़ों को उखाड़ फेंक रहे हो। फलों से लदे वृक्षों को मसल दे रहे हो। अमृत समान सरोवरों को दूषित मलिन मिट्टी से मिला कर उन्हें नष्ट कर रहे हो। इससे तुम्हें क्या मिलेगा। तुम्हारे औरस पिता ब्रम्हा के वरदान स्वरूप कोई तुहे युद्ध में नही हरा सकता। क्योंकि जो कोई तुमसे युद्ध करने आएगा, उसकी आधी शक्ति तुममें समाहित हो जाएगी।
इसलिए हे कपि राजकुमार अपने बल के घमंड को शांत कर और राम नाम का जाप कर, इससे तेरे मन में अपने बल का भान नहीं होगा और राम नाम का जाप करने से ये लोक और परलोक दोनों ही सुधर जाएंगे। इतना सुनते ही बाली अपने बल के मद चूर हनुमान जी से बोला- ए तुच्छ वानर, तू हमें शिक्षा दे रहा है, राजकुमार बाली को। जिसने विश्व के सभी योद्धाओं को धूल चटाई है और जिसके एक हुंकार से बड़े से बड़ा पर्वत भी खंड खंड हो जाता है। जा तुच्छ वानर, जा और तू ही भक्ति कर अपने राम की,और जिस राम की तू बात कर रहा है, वो है कौन और केवल तू ही जानता है राम के बारे में। मैंने आजतक किसी के मुँह से ये नाम नहीं सुना, और तू मुझे राम नाम जपने की शिक्षा दे रहा है।
हनुमान जी ने कहा, प्रभु श्री राम, तीनों लोकों के स्वामी हैं, उनकी महिमा अपरंपार है। ये वो सागर है, जिसकी एक बूंद भी जिसे मिले वो भवसागर को पार कर जाए। बाली, इतना ही महान है राम, तो बुला ज़रा। मैं भी तो देखूं कितना बल है उसकी भुजाओं में। बाली को भगवान राम के विरुद्ध ऐसे कटु वचन हनुमान जो को क्रोध दिलाने के लिए पर्याप्त थे। हनुमान, ए बल के मद में चूर बाली, तू क्या प्रभु राम को युद्ध में हराएगा, पहले उनके इस तुच्छ सेवक को युद्ध में हरा कर दिखा। बाली, तब ठीक है कल के कल नगर के बीचों बीच तेरा और मेरा युद्ध होगा। हनुमान जी ने बाली की बात मान ली।
बाली ने नगर में जाकर घोषणा करवा दी कि कल नगर के बीच हनुमान और बाली का युद्ध होगा। अगले दिन तय समय पर जब हनुमान जी बाली से युद्ध करने अपने घर से निकलने वाले थे। तभी उनके सामने ब्रम्हा जी प्रकट हुए। हनुमान जी ने ब्रम्हा जी को प्रणाम किया और बोले, हे जगत पिता आज मुझ जैसे एक वानर के घर आपका पधारने का कारण अवश्य ही कुछ विशेष होगा। ब्रम्हा जी बोले, हे अंजनीसुत, हे शिवांश, हे पवनपुत्र, हे राम भक्त हनुमान, मेरे पुत्र बाली को उसकी उद्दंडता के लिए क्षमा कर दो, और युद्ध के लिए न जाओ।
हनुमान जी ने कहा, हे प्रभु, बाली ने मेरे बारे में कहा होता तो मैं उसे क्षमा कर देता। परन्तु उसने मेरे आराध्य श्री राम के बारे में कहा है, जिसे मैं सहन नहीं कर सकता। और मुझे युद्ध के लिए चुनौती दिया है, जिसे मुझे स्वीकार करना ही होगा। अन्यथा सारे विश्व में ये बात कही जाएगी कि हनुमान कायर है, जो ललकारने पर युद्ध करने इसलिए नहीं जाता है, क्योंकि एक बलवान योद्धा उसे ललकार रहा है। तब कुछ सोच कर ब्रम्हा जी ने कहा, ठीक है हनुमान जी। पर आप अपने साथ अपनी समस्त शक्तियों को साथ न लेकर जाएं, केवल दसवां भाग का बल लेकर जाएं। बाकी बल को योग द्वारा अपने आराध्य के चरणों में रख दे, युद्ध से आने के उपरांत फिर से उन्हें ग्रहण कर लें।
हनुमान जी ने ब्रम्हा जी का मान रखते हुए वैसे ही किया और बाली से युद्ध करने घर से निकले। उधर बाली नगर के बीच में एक जगह को अखाड़े में बदल दिया था और हनुमान जी से युद्ध करने को व्याकुल होकर बार-बार हनुमान जी को ललकार रहा था। पूरा नगर इस अदभुत और दो महायोद्धाओं के युद्ध को देखने के लिए जमा था। हनुमान जी जैसे ही युद्ध स्थल पर पहुँचे, बाली ने हनुमान को अखाड़े में आने के लिए ललकारा। ललकार सुन कर जैसे ही हनुमान जी ने एक पांव अखाड़े में रखा, उनकी आधी शक्ति बाली में चली गई। बाली में जैसे ही हनुमान जी की आधी शक्ति समाई। बाली के शरीर मे बदलाव आने लगे। उसके शरीर में ताकत का सैलाब आ गया। बाली का शरीर बल के प्रभाव में फूलने लगा। उसके शरीर फटने लगे और खून निकलने लगा।
बाली को कुछ समझ नहीं आ रहा था। तभी ब्रम्हा जी बाली के पास प्रकट हुए और बाली को कहा, पुत्र जितना जल्दी हो सके यहां से दूर अति दूर चले जाओ। बाली को इस समय कुछ समझ नहीं आ रहा रहा, वो सिर्फ ब्रम्हा जी की बात को सुना और सरपट दौड़ लगा दिया। सौ मील से ज्यादा दौड़ने के बाद बाली थक कर गिर गया। कुछ देर बाद जब होश आया तो अपने सामने ब्रम्हा जी को देख कर बोला, ये सब क्या है। हनुमान से युद्ध करने से पहले मेरा शरीर का फटने की हद तक फूलना, फिर आपका वहां अचानक आना और ये कहना कि वहां से जितना दूर हो सके चले जाओ।
मुझे कुछ समझ नहीं आया। ब्रम्हा जी बोले, पुत्र जब तुम्हारे सामने हनुमान जी आये, तो उनका आधा बल तममे समा गया, तब तुम्हे कैसा लगा। बाली, मुझे ऐसा लग जैसे मेरे शरीर में शक्ति की सागर लहरें ले रही हैं। ऐसा लगा जैसे इस समस्त संसार में मेरे तेज़ का सामना कोई नहीं कर सकता, पर साथ ही साथ ऐसा लग रहा था जैसे मेरा शरीर अभी फट पड़ेगा। ब्रम्हा जो बोले, हे बाली, मैंने हनुमान जी को उनके बल का केवल दसवां भाग ही लेकर तुमसे युद्ध करने को कहा। पर तुम तो उनके दसवें भाग के आधे बल को भी नहीं संभाल सके।
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सोचो, यदि हनुमान जी अपने समस्त बल के साथ तुमसे युद्ध करने आते तो उनके आधे बल से तुम उसी समय फट जाते, जब वो तुमसे युद्ध करने को घर से निकलते। इतना सुन कर बाली पसीना-पसीना हो गया और कुछ देर सोच कर बोला, प्रभु, यदि हनुमान जी के पास इतनी शक्तियां हैं, तो वो इसका उपयोग कहाँ करेंगे। ब्रम्हा, हनुमान जी कभी भी अपने पूरे बल का प्रयोग नहीं कर पाएंगे। क्योंकि ये पूरी सृष्टि भी उनके बल के दसवें भाग को नहीं सह सकती।
ये सुन कर बाली ने वहीं हनुमान जी को दंडवत प्रणाम किया और बोला,, जो हनुमान जी जिनके पास अथाह बल होते हुए भी शांत और रामभजन गाते रहते है और एक मैं हूँ जो उनके एक बाल के बराबर भी नहीं हूँ और उनको ललकार रहा था। मुझे क्षमा करें, और आत्मग्लानि से भर कर बाली ने राम भगवान का तप किया और आगे चलकर अपने मोक्ष का मार्ग उन्हीं से प्राप्त किया।
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