Kahani: संसार में भगवान की भक्ति सुख और शान्ति प्राप्त करने का अमोघ साधन है। इससे उत्तम साधन और कोई नहीं है, क्योंकि भक्त को ईश्वर का आश्रय रहता है और भगवान को भक्त की चिन्ता रहती है। भगवान को अपने भक्त अत्यन्त प्रिय हैं। वे कहते हैं- ‘मैं सर्वथा भक्तों के अधीन हूँ। मुझमें तनिक भी स्वतन्त्रता नहीं है। मेरे सीधे-सादे सरल भक्तों ने मेरे हृदय को अपने हाथ में कर रखा है। भक्तजन मुझसे प्यार करते हैं और मैं उनसे।’ इसलिए सच्चे भक्त थोड़े में ही बाजी मार लेते हैं।
‘सत्यं शिवं सुन्दरं’ के प्रतीक भगवान शिव भक्तों के लिए ‘भोले’ और दुष्टों के लिए ‘भाले’ के समान हैं। भोले-भण्डारी भगवान शंकर इतने दयालु हैं कि अपने भक्तों के कल्याण के लिए कभी नौकर बन जाते हैं तो कभी भिखारी का वेश धारण करने में भी जरा-सा संकोच नहीं करते हैं। भगवान भोलेनाथ के भक्त-प्रेम को दर्शाने वाली एक सुन्दर कथा इस प्रकार है-
भक्त के लिए भोले हैं शिव
प्राचीन काल में दक्षिण भारत के मीनाक्षीपुरम के राजा के दरबार में सोमदत्त नामक एक अत्यन्त निपुण गायक था। राजा उसे बहुत सम्मान देते और राजसी वैभव से रखते थे। इस बात से अन्य दरबारी गायकों को सोमदत्त से बहुत ईर्ष्या होती थी। एक बार किसी दूसरे राज्य का एक प्रसिद्ध गायक इस उद्देश्य से मीनाक्षीपुरम आया कि सोमदत्त को गायन प्रतियोगिता में हरा कर स्वयं ‘राजदरबारी गायक’ बन जाए। वह गायक राजा से मिला। राजा ने अगले दिन का समय प्रतियोगिता के लिए निश्चित किया और घोषणा की कि जो भी गायक प्रतियोगिता में जीतेगा उसे ‘राजदरबारी’ का पद दिया जाएगा और दूसरे गायक को दण्ड दिया जाएगा।
दूसरे राज्य से आने वाले गायक की गायन कला में निपुणता की बहुत अधिक प्रसिद्धि थी। सोमदत्त भगवान शिव का अनन्य भक्त था। प्रतियोगिता में हार और दण्ड के भय से सोमदत्त ने पूरी रात भगवान सोमेश्वर के मन्दिर में जाकर जागरण किया और कातर स्वर में प्रार्थना की।
मैं जानूं तुम सद्गुणसागर अवगुण मेरे सब हरियो।
किंकर की विनती सुन स्वामी सब अपराध क्षमा करियो।।
तुम तो सकल विश्व के स्वामी मैं हूँ प्राणी संसारी।
भोलेनाथ भक्त-दुखगंजन भवभंजन शुभ सुखकारी।।
‘हे प्रभो ! मेरी लाज और मेरा जीवन आप ही के हाथ में है, दया कर इस विपत्ति से दास को बचाइए। हे गिरिश, आपसे यही विनती है कि आप दीनानाथ और दीनबंधु हैं और मैं दीनों का सरदार हूँ। बन्धु का कर्तव्य है कि वह अपने सम्बन्धी को सर्वनाश से बचाए। फिर क्या आप मेरे सारे अपराधों को क्षमाकर मुझे इस घोर विपत्ति से नहीं उबारेंगे? अवश्य उबारेंगे, अन्यथा आप अपने कर्तव्य से च्युत होंगे और आपके ‘दीनबन्धु’ नाम पर बट्टा लग जायेगा।’
दुष्टों के लिए भाले बन जाते हैं शिव
सोमदत्त के कातर शब्दों से भोले-भण्डारी का मन पिघल गया। अगले दिन प्रात: ही भगवान शंकर फटे-पुराने वस्त्रों में एक भिखारी का रूप धारण कर दूसरे राज्य से आने वाले गायक के शिविर में पहुंचे और जोर से आवाज लगाई, ‘नारायण हरि।’ आगन्तुक गायक ने भिखारी के पास सारंगी देखकर पूछा, ‘क्या तुम कुछ गाना-बजाना जानते हो?’ भिखारी ने कहा, ‘हां, मैं थोड़ा-बहुत गा-बजा लेता हूँ।’ गायक ने कहा, ‘अच्छा, कुछ सुनाओ।’ भिखारी का वेष धारण किए भगवान शंकर ने ऐसा दिव्य राग छेड़ा और ऐसा अनुपम वाद्य बजाया कि वैसा उस गायक ने कभी सुना न था। इससे मंत्रमुग्ध होकर गायक ने भिखारी से पूछा, ‘तुम कौन हो?’
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भगवान शिव बोले, ‘मैं राजदरबारी गायक सोमदत्त का शिष्य हूँ।’ यह सुनकर आगन्तुक गायक चकित हो गया। उसने अपने मन में सोचा कि जिसका शिष्य इतना निपुण है, उसका गुरु कैसा होगा? सोमदत्त को परास्त करना असम्भव मानकर वह गायक प्रतियोगिता के पहले ही चुपचाप अपने राज्य को लौट गया। इस प्रकार सोमदत्त की राजा के दण्ड और अपयश से रक्षा हो गयी। भोलेनाथ भगवान शिव इतने दयालु हैं कि अपने भक्त की रक्षा के लिए एक अभक्त के सामने भिखारी का रूप धारण कर नाचने-गाने में भी उन्होंने संकोच नहीं किया।
सदाशिव सर्व वरदाता दिगम्बर हो तो ऐसा हो।
हरे सब दु:ख भक्तन के दयाकर हो तो ऐसा हो।।
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