Kahani: क्या लगता है मैं रुकूँगा

क्या लगता है मैं रुकूँगा नहीं, असंभव। क्या लगता है मैं झुकूँगा नहीं, असंभव।। कष्टों को खूँटी पर रखकर सूर्य से नज़र मिलायेंगे। असि मनोबल की लेकर रण-भूमि में भिड़…

Kavita: दिल अंदर दिलदार है अंदर

दिल अंदर दिलदार है अंदर, प्रीतम प्रेमी प्यार है अंदर। परमपुरुष की सारी रचना, साथ में रचनाकार है अंदर। विष्णु अंदर ब्रह्मा अंदर, शिव अंदर शिवद्वारा अंदर। नवदुर्गा ग्रह चंद…

Poem: पक्षी के परों का कंपन

अचानक किसी दिन कविता के साए मंडराने लगते देह के अज्ञात में तब वह अज्ञात सी जेहन में पुकार लगाती, दस्तक देती फिर एक आवाज़ गूंजती कठफोड़वे की ठक ठक…