Kavita: ज्यों निकल कर बादलों की गोद से
ज्यों निकल कर बादलों की गोद से थी अभी इक बूँद कुछ आगे बढ़ी, सोचने फिर-फिर यही जी में लगी आह क्यों घर छोड़ कर मैं यूँ कढ़ी। दैव मेरे…
ज्यों निकल कर बादलों की गोद से थी अभी इक बूँद कुछ आगे बढ़ी, सोचने फिर-फिर यही जी में लगी आह क्यों घर छोड़ कर मैं यूँ कढ़ी। दैव मेरे…
है शरीर यदि स्वस्थ्य हमारा, हम कुछ भी कर सकते हैंI कोई असम्भव कार्य नहीं है, ऊंची उड़ान भर सकते हैं।। स्वस्थ शरीर के लिए चाहिए, नस नाड़ी सब स्वस्थ्…
कर्तव्य भाव से भरा रहे हर क्षण-पल जीवन सबका। क्रिया शीलता रहे सदा हो सृजनात्म भाव मन का।। निष्क्रिय जीवन से रहें दूर सद कर्म सदा वे कर पायें। वह…
हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था व्यक्ति को मैं नहीं जानता था हताशा को जानता था।
मेरे गाँव! जा रहा हूँ दूर-दिसावर छाले से उपने थोथे धान की तरह तेरी गोद में सिर रख नहीं रोऊँगा जैसे नहीं रोए थे दादा दादी के गहने गिरवी रखते…
मुनिया कॉलेज जाना चाहती थी मगर “गोल-गोल फूली हुई रोटी बनाना सीख लेना भी कोई पढ़ाई लिखाई से कम है क्या?” ऐसा आजी कहती है। बबुआ सपना बहुत देखता है!…
बहुत उदास मन नहीं लिख पाता सुंदर कविताएँ ना ही गुनगुना पाता है कोई मधुर गीत जो दे सके सुकून अंतरात्मा को बहुत उदास मन चाहता है मुक्ति स्वयं की…
मैं जिसे पूरा समंदर चाहिए था एक क़तरा भी नहीं मिला मुझे ख्वाहिश थी खुद को ढूंढ लाने की फिर आइना भी, टूटा मिला मुझे ना मिलता तू तो जब्त…
किसी को किसी से फर्क नहीं पड़ता दांव लगाने वाला भी शर्त नहीं पढ़ता गोरखधंधों से कमाने वाला इंसान जरूरतमंदों पर खर्च नहीं करता गीता, बाईबल, ग्रंथ, कुरान पढ़ने वाला…
कान्हा! मैं कभी तुम्हारे साथ, अकेली नहीं हो पाई! हमेशा कमरे मे मैंने राधा को तुम्हारे साथ महसूस किया है हमारे सह वास में वह किसी खिड़की से देखती है…