Poem: पप्पू ज्यादा बोल रहा है

बांहें अपनी खोल रहा है, जहर फिजां में घोल रहा है। माताजी उसको अब रोको, पप्पू ज्यादा बोल रहा है। अपनी ही धुन में रहता है, आंय-बांय कुछ भी बकता…

Poem: बिन कान में लपेटे

है राजनीति का मेरा बस इतना-सा पैमाना, मोदी को गालियों से भरपूर है खजाना। मुझको सभी कहते हैं विकलांग मानसिक हूं, फिर भी बनूंगा पीएम, मम्मी को है दिखाना। वोटों…

Poem: प्रियतम की हर बात बसन्ती!

नयनों पर छाता मधुमास, अधरों पर खिलता ऋतुरास। अंग-अंग केसर की क्यारी, मुख जैसे जलजात बसन्ती। प्रियतम की हर बात बसन्ती! रूप सुहाना, छटा सलोनी, एक-एक है अदा सलोनी। रोम-रोम…

Poem: महाकुंभ की मोनालिसा

मैं बेचना चाहती हूँ, बस माला के मनके। पर यहाँ आये हैं, सब लोग अलग-अलग मन के।। इन्हें कहाँ खरीदने हैं, मेरी माला के मनके। ये निहारना चाहते हैं, मेरे…

Poem: ना तुझे पता, ना मुझे पता

ये विकास है या कुछ और है! ना तुझे पता, ना मुझे पता। क्या दलित होना गुनाह है! ना तुझे पता, ना मुझे पता। इक कोठरी में कई लोग हैं,…

Poem: “ठंढी में ना जरी अलाव”

माह पूस कै बीति जात है, ठिठुरत है अब शहर औ गांव! माघौ में ना आगी मिलिहै, इहै हकीकत जानि तूं जाव! सरकारी कागज में बाऊ, हर चौराहेप जरा अलाव।…

Poem: जाड़ा बहुत सतावत बा

सरसर हवा बाण की नाईं थर थर काँपैं बाबू माई, तपनी तापैं लोग लुगाई कोहिरा छंटत नहीं बा भाई। चहियै सबै जियावत बा, जाड़ा बहुत सतावत बा।। गरमी असौं बराइस…

Poem: सुकून गाँव में है

सुकून गाँव में है, पेड़ों के छाँव में है। शहर के लोग तो, टेंशन, तनाव में हैं। स्वतंत्र हैं लोग यहाँ, न किसी प्रभाव में हैं। द्वेष में कुछ न…

Poem: अब हम सब अपना नववर्ष मनाएंगे

चारों तरफ नए साल का, ऐसा मचा है हो-हल्ला। धरती ठिठुर रही सर्दी से, घना कुहासा छाया है। कैसा ये नववर्ष है, जिससे सूरज भी शरमाया है।। सूनी है पेड़ों…