अरबिन्द शर्मा अजनवी
अरबिन्द शर्मा अजनवी

हे राम ये हमने मान लिया,
ग़लती हम सब ने की है।
सुख वैभव के जाल मे फँस कर,
याद तुम्हें ना की है।

पर, स्वामी मेरे दया करो,
अब विपदा आन पड़ी है।
हर गाँव, गली और शहर चौक पर,
साँसें तड़प रही है।

हे ईश्वर मेरे देख तेरे,
संसार की हालत क्या है।
चाँद पे जाने वाले इस,
इन्सांन की हालत क्या है।

हे पालनकर्ता,जगन्नियंता, लक्ष्मीपति, करतार हरे।
दुख दूर करो, प्रभू कष्ट हरो,
हैं संकट मे संतान तेरे!

ज्ञान और विज्ञान सभी,
ज़मींदोज़ दिखाई देता है।
मंगल पर जाने वाले को,
मंगल, दिखलाई नही देता है।

आस लगाये, दास को तेरे,
चरणों का रज मिल जाये।
हे राम करो कुछ चमत्कार,
यह सृष्टि तुम्हारी बच जाये।

भक्तों पर जब-जब बिपत परी,
प्रभु, तुमने दिया सहारा है।
एक बार बराह रूप में प्रभु,
धरती को तुने उबारा है।

अत्याचारी रावण का प्रभु,
तुमने वध कर डाला।
कहा विभिषन को लंकापती,
राज तिलक कर डाला।

राज दिया सुग्रीव को तुने,
जटायु पर दया दिखाई।
भक्त प्रेम में तुम तो प्रभु,
सबरी की जूठन खाई।

सुना है तेरे, चरण को छूकर,
पत्थर नारी बन जाता है!
श्री चरणों का, दास प्रभु,
भवसागर पार हो जाता है।

हे दसरथ नदंन, कौसल्या सुत,
हे अवध नरेश, धनुर्धारी,
सौगन्ध तुम्हें महादेव की है,
हे नाथ हरो संकट सारी!

इसे भी पढ़ें: मिलन के मजबूरी

Spread the news