अरबिन्द शर्मा अजनवी
अरबिन्द शर्मा अजनवी

हे महावीर, हनुमान, पवनसुत
विनती सुन लो मेरी।
आस लगाये आया हूँ, प्रभु
दास शरण में तेरी!

अष्ट सिद्धि नवनिधि के दाता
धरती का उद्धार करो।
रोग जाल में धरा फँसी है,
जल्दी प्रभु उपकार करो।

श्रीराम प्रभु के संकट को,
क्षणभर में तुमने दूर किया।
सागर लांघ, मसक रूप धरि,
सिय सुकून भरपूर दिया।

ख़ाक किया प्रभु लंका को,
रावण का बंटाधार किया।
राम मिलाय विभिषण को,
तुमने उसका उपकार किया।

कनक भूधराकार सरीरा,
देख सिया मन धीर धरीं।
मातु सिया के मन की चिन्ता,
पलभर में, तुमने दूर करी।

मिला सजीवनलखन लाल को
तुमने प्राण बचाई।
वही सजीवन भेजो प्रभु,
वसुधा पर विपदा आई।

हे शंकर सुमन, केसरी नदंन,
महावीर हनुमान।
कष्ट हरो दुख दूर करो,
प्रभु बचे सभी के प्रान!

हे संकटमोचन,मारुत सुत
अजर, अमर महावीरा।
देर करो ना, कष्ट हरो प्रभु,
रोग, शोक सब पीड़ा।

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