अरबिन्द शर्मा अजनवी
अरबिन्द शर्मा अजनवी

चांद से जा मोहब्बत करी चांदनी।
रात काली अमावस अकेले रही।।

याद में उसके मैं तो तड़पता रहा।
वो तो साजन की बांहों में लिपटी रही।।

ना कमी कोई मैंने करी प्यार में।
संगदिल क्यूं हमें वो समझने लगी?

साथ देने की क़समें जो खाती रही।
साथ कुछपल क्यूं मेरे वो चल ना सकी?

बेवफ़ा वो नहीं अब भी कहता है दिल।
बेवफ़ाई वो हमसे क्यूं कर के गई?

छोड़ दी चाँद ने साथ, तो ग़म नहीं।
संघ सितारों से जगमग अमावस रही।।

चांद से जा मोहब्बत करी चांदनी।
रात काली अमावस अकेले रही।।

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