Pauranik Katha: अक्षय पात्र को जानने से पहले अक्षय को समझें। अक्षय का अर्थ होता है, जिसका कभी छय न हो यानी नाश न हो। जो कभी खत्म नहीं किया जा सकता यानी अविनाशी। अक्षय पात्र एक ऐसा पात्र होता है, जिसमें कभी भी अन्न या जल समाप्त नहीं होता। जब भी भोज्य पदार्थ निकाला जाए तो मनचाही भोज्य वस्तु निकलती है। पौराणिक समय में ऋषि मुनियों के पास ऐसा पात्र हुआ करता था। माना जाता है, अभी भी हिमालय एवं नीलगिरी के साधुओं के पास ऐसा पात्र होता है। यह पात्र सूर्य देव के आशीर्वाद से ही प्राप्त होता है।
महाभारत के अरण्य पर्व के अनुसार, युधिष्ठिर को अक्षय पात्र वरदान स्वरुप सूर्य देव से मिला था। सूर्य देव ने युधिष्ठिर को अक्षय पात्र, अक्षय तृतीया के दिन युधिष्ठिर की भक्ति से प्रसन्न होकर प्रदान किया था। जब युधिष्ठिर अपने चारों भाइयों एवं भार्या द्रोपदी सहित वनवास कर रहे थे। उसे समय भ्रमणशील साधु संत उनसे मिलने आया करते थे। वह जानते थे, धर्मराज हमें भूखा एवं कष्ट में नहीं रखेंगे। वह हमारा आतिथ्य करेंगे। इसी भाव से साधु संन्यासी संत सभी पांडवों की कुटिया में आते थे।
परंतु वन में इतने लोगों के लिए भोजन सदैव बना कर रखना कठिन कार्य था। एक बार धर्मराज युधिष्ठिर के पुरोहित महर्षि धौम्य अपने शिष्यों सहित उनकी कुटिया में आए। तब युधिष्ठिर ने उनसे विनम्रता पूर्वक पूछा, “महाराज! आखिर इसका समाधान क्या हो? कि मैं हजारों साधु संन्यासियों को प्रतिदिन भोजन भी करवा सकूं और इस वीरान जंगल में मुझे भोज्य पदार्थ भी मिल जाए।” तब पुरोहित धौम्य ने उन्हें अक्षय पात्र के बारे में बताया।
महर्षि धौम्य के बताए अनुसार, युधिष्ठिर ने सूर्य देव के 108 नाम का जाप करते हुए सूर्य देव की आराधना की। अंततः उनकी आस्था, श्रद्धा, भक्ति और तपस्या से भगवान सूर्य प्रसन्न होकर युधिष्ठिर के पास प्रकट हुए। प्रकट होकर सूर्य देव ने युधिष्ठिर से पूछा, “हे धर्मराज! इस पूजा अर्चना का आशय क्या है?” तब युधिष्ठिर ने हाथ जोड़कर सूर्य देव से कहा, “हमारी कुटिया में प्रतिदिन इतने सारे साधु सन्यासी संत जन आते हैं। मैं अपने परिवार सहित जंगल में विहार करता हूं। इतने सारे लोगों के लिए भोज्य पदार्थ एकत्रित करना और सदैव पका हुआ भोजन तैयार कठिन हो जाता है। कभी कभार तो केवल फल इत्यादि से ही साधुओं का पेट भर पाता हूं। जिससे मुझे ग्लानि का भाव आता है। इसी के समाधान हेतु मैंने यह पूजा अर्चना की है। कृपया कर भगवान मेरी मांग पूर्ण करें।”
इसे भी पढ़ें: कृपाचार्य और द्रोणाचार्य की रोचक कथा
तब सूर्य देव ने एक तांबे का पात्र युधिष्ठिर के हाथ में रख दिया और कहा, “हे युधिष्ठिर! तुम मेरे लिए पुत्र तुल्य हो। मैं तुम्हारी कामना पूर्ण करता हूं। यह अक्षय पात्र है। 12 वर्ष तक मैं तुम्हें इसी पात्र से अन्न दान करूंगा। तुम्हारे पास अन्न, फल, शाक आदि चार प्रकार की भोजन सामग्रियां तब तक अक्षय रहेगी, जब तक द्रौपदी भोजन प्राप्त नहीं करेगी। इस अक्षय पत्र से सामग्रियां तब तक ही अक्षय रहेगी जब तक द्रौपदी परोसती रहेगी। इस अक्षय पात्र को पकड़ युधिष्ठिर बड़े ही प्रसन्न हुए। हाथ जोड़कर सूर्य देव को प्रणाम कर धन्यवाद किया।
इसे भी पढ़ें: शकुनि ने बदला लेने के लिए बहन के खानदान का कराया सर्वनाश