सुमित मेहता

Lucknow: उत्तर प्रदेश की सियासत में कुछ बड़ा होने वाला है। माफिया से माननीय बने अतीक अहमद (Atiq Ahmed) से नजदीकियां रखने वाले योगी सरकार (Yogi government) में कैबिनेट मंत्री नन्द गोपाल नंदी (Nand Gopal Nandi) से बीजेपी लगातार दूरी बढ़ा रही है। अतीक अहमद (Atiq Ahmed) के परिवार ने योगी सरकार (Yogi government) के मंत्री पर आरोप लगाया था कि, नंदी ने उनसे पांच करोड़ रुपए उधार लिए थे, लेकिन वह उसे वापस नहीं कर रहे हैं। इसके बाद सोशल मीडिया पर अतीक अहमद (Atiq Ahmed) और नन्द गोपल नंदी (Nand Gopal Nandi) की कई तस्वीरें वायरल होने लगी थीं।

वहीं विपक्ष ने भी योगी सरकार पर मामले को लेकर निशाना साधते हुए जांच की मांग की थी। इस सियासी बावल के बाद बीजेपी ने ऐसे कई बड़े फैसले लिए हैं, जिससे नंदी खुद को अपमानित महसूस कर रहे हैं। पहले तो प्रदेश में हो रहे निकाय चुनाव में पार्टी ने मंत्री की पत्नी अभिलाषा गुप्ता का मेयर पद टिकट काट दिया और उसके बाद 2022 के विधान सभा चुनाव में नंदी के विरोधी रहे सपा उम्मीदवार रईस चन्द्र शुक्ला को पार्टी में शामिल कर लिया।

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बताया जा रहा है कि, नंद गोपाल नंदी (Nand Gopal Nandi) प्रदेश संगठन के इस फैसले से काफी नाराज हैं। उन्होंने खुलकर इसका विरोध भी किया है, लेकिन उसके बाद भी पार्टी के किसी बड़े नेता ने उनसे सम्पर्क नहीं किया। वही नंद गोपाल नंदी के पार्टी विरोधी बयान का संज्ञान लेते हुए शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें दिल्ली तलब किया है। पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व से बात करने के लिए दिल्ली चले गए हैं। बताया जा रहा है यहां वह राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिल सकते हैं। लेकिन इस बात की उम्मीद काफी कम है कि उन्हें वहां से कुछ बेहतर रिस्पॉन्स मिलेगा।

बता दें कि बीजेपी जानती है कि प्रयागराज में नंद गोपाल नंदी काफी मजबूत हैं और उनकी पत्नी का टिकट काटकर उन्होंने कैबिनेट मंत्री को नाराज कर दिया है। इसका असर निकाय चुनाव में दिख सकता है। शायद यही वजह है कि पार्टी ने सपा नेता रईस चन्द्र को बीजेपी में शामिल कर लिया है, जिससे कुछ डैमेज कंट्रोल किया का सके।

मजे की बात यह है कि निकाय चुनाव में बीजेपी प्रयागराज में नंदी के समर्थन के बिना अगर अपना उम्मीदवार जीता लेती है तो कैबिनेट मंत्री की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। वहीं अगर चुनाव में हार मिल जाती है, तो नंदी का कद और पद पार्टी में बना रह सकता है। लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि नंद गोपाल नंदी ने जिस तहर पार्टी के खिलाफ जाकर बयानबाजी की है। उससे पार्टी में उन्हें फिर से तवज्जों मिलना मुश्किल है। क्योंकि बीजेपी से जितने नेता अब तक बाहर गए हैं, वह खुद बयानबाजी करके निकले हैं। यानि बीजेपी अंदरूनी तौर पर तब नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा देती हैं, तो ये नेता पार्टी के खिलाफ बोलकर खुद की ही फजीहत करा लेते हैं। यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा, सत्यपाल मलिक सरीखे ऐसे कई नेता हैं, जो कभी बीजेपी और नरेंद्र मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़ते थे। लेकिन जब पार्टी में इनकी दाल नहीं गली तो बीजेपी और पार्टी पर गंभीर आरोप लगाकर खुद को बेनकाब कर लिया। पार्टी पर इन नेताओं के आरोपों का कोई फर्क नहीं पड़ा, अलबत्ता इन नेताओं की राजनीतिक हैसियत खत्म हो गई।

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लंबे समय से प्रयागराज की राजनीति में अपना दबदबा कायम रखने वाले नंद गोपाल नंदी का क्या हश्र होगा यह देखना दिलचस्प होगा। फिलहाल अभी उनकी मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही है। अतीक अहमद से उनके करीबी रिश्ते होने के आरोपों के चलते बीजेपी इन दिनों विपक्ष के हमलों से दो-चार हो रही है। ऐसे में वह नंद गोपाल नंदी को ज्यादा भाव देने की मूड में नजर नहीं आ रही है।

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