विरह की वेदना

0
496
Arvind Sharma
अरविन्द शर्मा (अजनवी)

परदेश गये मोहे छोड़ पिया।
सेजीया सूनी मन खिन्न किये।।
काटे ना कटे विरहन रतियाँ।
आँगन नागिन के सेज लगे।।

सौतन बन कर कंगना खनके।
पायल बाजे बेड़ी बन कर।।
कजरा ताना मारे तन को।
बिंदिया चमके बिजली बनकर।।

जाते जाते आलिंगन कर।
अधरों से माथा चूम लिए।।
नयनों में अपने अश्रु लिये।
मुझसे साजन मुँह मोड़ लिये।।

सिंगार अधुरा पिया बीना।
हर रैन अधूरी लगती है।।
सुध नहीं तन मन की अब।
हर साँस अधूरी लगती है।।

विरह वेदना साजन की।
दिल पर मेरे आघात करे।।
निरंतर वेदना नस नस में।
ज्वाला बन तन ख़ाक करे।।

हर रात सुहानी पूनम थी।
जब पिया हमारे साथ रहे।।
सिंगार करूँ दर्पण बनकर।
जब पिया हमारे पास रहे।।

उस प्रथम मिलन की बेला में।
जो प्यार पिया ने हमें किये।।
कैसे भूलूँ हर रोज़ नेह से।
मुझे पिया स्पर्श किये।।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें