विरह की वेदना

परदेश गये मोहे छोड़ पिया। सेजीया सूनी मन खिन्न किये।। काटे ना कटे विरहन रतियाँ। आँगन नागिन के सेज लगे।। सौतन बन कर कंगना खनके। पायल बाजे बेड़ी बन कर।।…

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