जिनकी रगों में रक्त सनातन
जिनके पूर्वज थे ऋषि हमारे,
जो भय लोभ से बने विधर्मी
हैं फिर भूले संस्कार वे सारे।

भूले बिसरे रहे अभी तक
मर्यादायें भी सब भूल गए,
शांति खोजने लगे विधर्म में
फिर वे षड्यंत्रों में झूल गए।

याद कराना बहुत जरूरी
ये भारत उनका भी घर है,
भारत चरणों में झुकना ही
उनके भविष्य का अम्बर है।

प्यार वहीं काम में आता
अपनत्व जहाँ जागृत होता,
ज्यों अंधे के आगे रोने से
है जीवन भी आंखें खोता।

आत्मसात करने की क्षमता
शक्ति सामर्थ्य से ही है आती,
आओ पुनः जगाएं भारत को
है जिससे वसुधा जीवन पाती।

– बृजेंद्र

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