Kajri Teej: प्रयागराज में जब मैं देश के सुविख्यात दैनिक ‘भारत’ में स्थानीय समाचार सम्पादक एवं मुख्य संवाददाता था तो मेरे वरिष्ठ सहयोगी रामनिधि शर्मा जिलों के समाचार के प्रभारी थे। वह मुझे बहुत मानते थे, इसलिए जब वह छुट्टी लेते थे तो उनके अनुरोध पर मैं जिलों के समाचार भी सम्पादित किया करता था। श्यामलाल केसरवानी मीरजापुर में ‘भारत’ के संवाददाता थे। वह अच्छे स्वभाव के थे, इसलिए मेरी उनसे निकटता हो गई थी। वह कई सालों से मुझे आमंत्रित कर रहे थे कि मैं कजली तीज के अवसर पर रतजगा में मीरजापुर आऊं।
वैसे तो मैं उनके आमंत्रण को गंभीरता से नहीं लेता था, लेकिन एक वर्ष (जहां तक स्मरण है, वर्ष 1975 में) अचानक मूड बन गया और मैंने रक्षाबंधन की श्रावणी पूर्णिमा के बाद रतजगा के अवसर पर मीरजापुर जाने का कार्यक्रम बना लिया। उस समय मैं अधिकतर यात्राएं अपने बजाज स्कूटर से किया करता था। यहां तक कि स्कूटर से ही खजुराहो तक घूम आया था। जब मैं स्कूटर से जाता था तो किसी को साथ ले लेता था और कोशिश करता था कि उसे स्कूटर चलाना आता हो। मीरजापुर जाने के लिए मैंने अपने प्रिय शिष्य पंकज गुप्त के अनुज मुकेश को साथ ले लिया। पंकज हर प्रकार के वाहन-चालन का परम उस्ताद था और मुकेश भी अच्छी ड्राइविंग करता था। मैं यात्रा में कैमरा व टेपरिकॉर्डर अपने साथ लिए रहता था।
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पूर्णिमा के दो दिन बाद कजली तीज का पर्व था, अतः मैंने रतजगा वाले दिन स्कूटर से मुकेश के साथ मीरजापुर के लिए प्रस्थान किया। निकलते-निकलते शाम को पांच बज गए। घने बादल घिरे हुए थे तथा नैनी पहुंचने तक बूंदाबांदी शुरू हो गई। एक बार सोचा कि लौट लें, किन्तु मुकेश ने चलते रहने को कहा और बोला-‘जब घर से निकल पड़े हैं तो वापस लौटने का प्रश्न नहीं!’ फिर तो कैमरा व टेपरिकॉर्डर को भीगने से बचाते हुए हमारा स्कूटर आगे बढ़ चला।
घनी अंधेरी रात थी और बारिश तेज हो गई थी। मुकेश स्कूटर चला रहा था और हेडलाइट की रोशनी में सूनी सड़क पर हम आगे बढ़ते जा रहे थे। रात के उसी भयंकर अंधेरे में हमने टोंस नदी पर बना पुल पार किया, जो नीचे नदी की जबरदस्त बाढ़ व अंधेरी रात में भूत की तरह बड़ा डरावना लग रहा था। मेजा और मांडा पार करने के बाद एक जगह मैं लघुशंका करने के लिए रुका। जब मैं लघुशंका कर रहा था, तभी मुकेश स्कूटर चलाने लगा। मैं समझा कि वह स्कूटर पर यूं ही इधर-उधर टहल रहा है, किन्तु तभी देखा कि वह आगे बढ़ गया। मैं चिल्लाया, लेकिन मुकेश आगे निकल चुका था। अब मेरे सामने बड़ी समस्या उत्पन्न हो गई। इतना घना अंधेरा था कि दो कदम पर भी कुछ नहीं दिखाई दे रहा था। पानी तेज बरस रहा था। तीन ट्रक उधर से गुजरे, लेकिन मेरे हाथ देने पर वे नहीं रुके।
समझ में नहीं आ रहा था कि इस भयावह अंधेरे व झमाझम बरसात में मैं क्या करूं! इधर-उधर टटोला तो पास में एक पत्थर मिला, जिस पर मैं बैठ गया। उस जंगल में कोई लुटेरा या जंगली जानवर आ जाय, इसका भी खतरा था। मैंने सोच लिया कि अब सवेरा होने तक इसी पत्थर पर भगवान भरोसे बैठे रहना है। करीब एक घंटे बाद मीरजापुर की दिशा से एक वाहन की हेडलाइट-रोशनी दिखाई दी। मैं लिफ्ट लेने के लिए आगे बढ़कर खड़ा हो गया। निकट आने पर देखा तो वह मुकेश था, जो मुझे ढूंढ़ते हुए वापस आया था।
मैं मुकेश पर बिगड़ा तो उसने बताया कि अंधेरे में उसे ऐसा लगा था कि मैं पेशाब करने के बाद स्कूटर पर पीछे बैठ गया हूं, इसलिए वह आगे चल पड़ा था। मीरजापुर से पहले एक गांव में पेड़ के नीचे औरतों का झुंड मीठी धुन में कजली गा रहा था। मुकेश ने बताया कि कजली की सुरीली धुन की उसने तारीफ की और जब मैं प्रतिक्रिया में कुछ नहीं बोला तो उसे आश्चर्य हुआ। मुकेश जानता था कि मैं लोकगीतों का बहुत प्रेमी हूं, इसलिए वह आशा कर रहा था कि मैं वहां रुककर कजली का आनंद लेने के लिए कहूंगा। जब उसने पीछे देखा तो वहां मुझे न पाकर उसके होश उड़ गए। मुकेश ने बताया कि फिर वह तुरंत लौट पड़ा तथा धीरे-धीरे स्कूटर चलाकर रास्ते में मुझे ढूंढ़ते हुए चला आ रहा है।
मीरजापुर की सीमा में प्रविष्ट होकर जब हमने पक्का पुल पार किया तो अचानक ऐसा लगा, जैसे कानों में शहद घुल गया। उस रात रतजगा था और रतजगा में मीरजापुर जनपद एवं उसके आसपास जगह-जगह घरों में सारी रात कजली गाई जाती है। मान्यता है कि उस रात देवी प्रगट हुई थीं, इसलिए सारी रात कजली गाकर देवी की अभ्यर्थना की जाती है। मां विंध्यवासिनी का महात्म्य जगतविख्यात है और कज्जला देवी के रूप में यह पर्व उनकी आराधना का पर्व है।
मीरजापुर में हम जिधर से भी निकले, हर ओर कजली की सुरीली धुनों की बहार छायी हुई थी। मादक लोकगीतों से सारा वातावरण गमक रहा था। तेज बारिश हो रही थी, जिसमें हमने स्वयं भीगते हुए, पर टेपरिकॉर्डर को बचाते हुए जगह-जगह लोकगीत टेप किए और चित्र भी खींचे। कजली गाने वाली महिलाएं जिस तन्मयता से गा रही थीं, वह दृश्य कभी नहीं भूलेगा। हम सारी रात मीरजापुर के विभिन्न मुहल्लों में घूमते रहे और टेपरिकॉर्डर पर कजलियां टेप करते रहे।
धीरे-धीरे सवेरा हो गया और बरसात भी रुक गई। लोगों ने बताया कि विंध्याचल के रास्ते में कजली का अखाड़ा सुनने लायक होता है। पूछते-पूछते हम वहां जा पहुंचे। वहां पर काफी लोग आमने-सामने दो पंक्तियों में समूह में बंटे हुए तथा एक-दूसरे की कमर में हाथ कसे हुए पैर आगे-पीछे बढ़ाकर नृत्य मुद्रा में कजली का समूह-गान कर रहे थे। वह दृश्य सचमुच अनिवर्चनीय था।
श्यामलाल केसरवानी जब मुझे कजली तीज पर मीरजापुर आने के लिए कहा करते थे तो मुझे कल्पना नहीं थी कि वह ऐसे अद्भुत अवसर के लिए मुझे आमंत्रित कर रहे हैं। फिर तो मीरजापुर की कजली मेरे रोम-रोम में बस गई। आश्चर्य हुआ कि लोकगीतों की ऐसी लाजवाब धरोहर को सरकार से कोई अपेक्षित संरक्षण नहीं मिल रहा है। यहां तक कि पड़ोस के जनपदों को भी मीरजापुरी कजली के जादू की जानकारी नहीं है। मैं तो कजली का दीवाना हो गया तथा हर साल कजली तीज पर मीरजापुर जाने लगा। सावन-भादों में मेरा कई बार मीरजापुर का चक्कर लगने लगा, क्योंकि वहां पूरे सावन-भादों कजली की बहार छायी रहती है। श्यामलाल केसरवानी के घर गया तो उन्होंने बड़ी खातिर की और कई प्रसिद्ध गायकों से मिलवाया। कजली के प्रति मेरा इतना अधिक लगाव सुनकर अनेक कजली गायकों ने आकर मुझसे भेंट की।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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