Kahani: एक बार बुरी आत्माओं ने भगवान से शिकायत की कि उनके साथ इतना बुरा व्यवहार क्यों किया जाता है, जबकी अच्छी आत्माएँ इतने शानदार महल में रहती हैं और हम सब खंडहरों में। आखिर ये भेदभाव क्यों है, जबकि हम सब भी आप ही की संतान हैं। भगवान ने उन्हें समझाया- मैंने तो सभी को एक जैसा ही बनाया पर तुम ही अपने कर्मों से बुरी आत्माएं बन गयीं। सो वैसा ही तुम्हारा घर भी हो गया।
भगवान के समझाने पर भी बुरी आत्माएँ भेदभाव किये जाने की शिकायत करतीं रहीं और उदास होकर बैठ गईं। इस पर भगवान ने कुछ देर सोचा और सभी अच्छी-बुरी आत्माओं को बुलाया और बोले- बुरी आत्माओं के अनुरोध पर मैंने एक निर्णय लिया है, आज से तुम लोगों को रहने के लिए मैंने जो भी महल या खँडहर दिए थे वो सब नष्ट हो जायेंगे, और अच्छी और बुरी आत्माएं अपने अपने लिए दो अलग-अलग शहरों का निर्माण नए तरीके से स्वयं करेंगी। तभी एक आत्मा बोली- लेकिन इस निर्माण के लिए हमें ईंटें कहाँ से मिलेगी?
भगवान बोले- जब पृथ्वी पर कोई इंसान अच्छा या बुरा कर्म करेगा तो यहाँ पर उसके बदले में ईंटें तैयार हो जाएंगी। सभी ईंटें मजबूती में एक सामान होंगी, अब ये तुम लोगों को तय करना है कि तुम अच्छे कार्यों से बनने वाली ईंटें लोगे या बुरे कार्यों से बनने वाली ईंटें! बुरी आत्माओं ने सोचा, पृथ्वी पर बुराई करने वाले अधिक लोग हैं इसलिए अगर उन्होंने बुरे कर्मों से बनने वाली ईंटें ले लीं तो एक विशाल शहर का निर्माण हो सकता है, और उन्होंने भगवान से बुरे कर्मों से बनने वाली ईंटें मांग ली।
दोनों शहरों का निर्माण एक साथ शुरू हुआ, पर कुछ ही दिनों में बुरी आत्माओं का शहर बड़ा रूप लेने लगा। उन्हें लगातार ईंटों के ढेर के ढेर मिलते जा रहे थे और उससे उन्होंने एक शानदार महल बहुत जल्द बना भी लिया। वहीं अच्छी आत्माओं का निर्माण धीरे-धीरे चल रहा था, काफी दिन बीत जाने पर भी उनके शहर का केवल एक ही हिस्सा बन पाया था। कुछ दिन और ऐसे ही बीते, फिर एक दिन अचानक एक अजीब सी घटना घटी। बुरी आत्माओं के शहर से ईंटें गायब होने लगीं। दीवारों से, छतों से, इमारतों की नीवों से, हर जगह से ईंटें गायब होने लगीं और देखते ही देखते उनका पूरा शहर खंडहर का रूप लेने लगा।
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परेशान आत्माएं तुरंत भगवान के पास भागीं और पुछा- हे प्रभु, हमारे महल से अचानक ये ईंटें क्यों गायब होने लगीं। हमारा महल और शहर तो फिर से खंडहर बन गया? भगवान मुस्कुराये और बोले- ईंटें गायब होने लगीं। अच्छा, दरअसल जिन लोगों ने बुरे कर्म किए थे अब वे उनका परिणाम भुगतने लगे हैं अर्थात अपने बुरे कर्मों से उबरने लगीं हैं उनके बुरे कर्म और उनसे उपजी बुराइयाँ नष्ट होने लगी हैं। सो उनकी बुराइयों से बनी ईंटें भी नष्ट होने लगीं हैं। आखिर को जो आज बना है वह कल नष्ट भी होगा ही। अब किसकी आयु कितनी होगी ये अलग बात है। इस प्रकार बुरी आत्माओं ने अपना सिर पकड़ लिया और सिर झुका के वहा से चली गई।
इस कहानी से हमें कई आवश्यक बातें सीखने को मिलती है, जो हम बचपन से सुनते भी आ रहे हैं पर शायद उसे इतनी गंभीरता से नहीं लेते। बुराई और उससे होने वाला लाभ बढ़ता तो बहुत तेजी से है। परंतु नष्ट भी उतनी ही तेजी से होता है। वहीं सच्चाई और अच्छाई से चलने वाले धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं पर उनकी सफलता स्थायी होती है। अतः हमें सदैव सच्चाई की बुनियाद पर अपने सफलता की इमारत खड़ी करनी चाहिए, झूठ और बुराई की बुनियाद पर तो बस खंडहर ही बनाये जा सकते हैं।
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