पृथ्वी का संरक्षक वन है,
वन है तो जल देता घन है।
जैव विविधता भी है उससे,
जीवन को देता मलय पवन है।।

औषधि का भंडारण है वह,
धरती का शृंगार है वह।
मानवता का पाठ पढ़ाया,
गुरुकुल का ठाठ रहा वह।।

चाहें अगर सुखी रहें सब,
वन रोपें बचायें औऱ बढाएं।
हो जागृत समाज अब सारा,
पंचपल्लव का कलश चढ़ाएं।।

– बृजेंद्र

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