संजय तिवारी
संजय तिवारी

नेशनल हेराल्ड मामले (National Herald case) में आज राहुल गांधी से पूछताछ (ED questioning Rahul Gandhi) हो रही। ईडी ने बुलाया था। इस बुलावे का जिस तरह पूरी कोंग्रेस पार्टी ने विरोध किया उस पर चिंतन की आवश्यकता है। भारत के संविधान में आस्था रखने वाले और बार बार संविधान की दुहाई देने वालों को एक मुजरिम और एक रजानीतिक मामले में अंतर समझना चाहिए। राहुल और उनकी माता सोनिया गांधी, दोनों ही इस मामले में जमानत पर हैं। देश में विपक्ष के सबसे बड़े चेहरे हैं। इन्हें अपनी पार्टी को समझाना चाहिए। देश का कानून यदि कोई कार्य कर रहा तो उसे करने देने में बाधा डालने की जरूरत क्यों। क्या देश में ऐसा पहली बार हो रहा?

आप चाहे जितने बड़े हैं, संविधान से ऊपर तो नहीं हैं न। याद कीजिये। जब कानून ने अपना काम किया तो लालू प्रसाद यादव जैसे व्यापक जनाधार वाले नेता को जेल जाना ही पड़ा। कुछ ही दिन हुए, कांग्रेस के ही चिदंबरम को भी लाख बचने की कोशिशों के बाद भी जेल की हवा खानी पड़ी। आप मां-बेटे उसी पार्टी के सर्वे सर्वा यानी आलाकमान हैं। यदि आपने कोई गलत कार्य नहीं किया है तो पूछताछ से डर क्यों?

ED questioning Rahul Gandhi

याद कीजिये। आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बड़े बड़े आरोप लगे थे। आप ने अर्थात आपकी माता और आपकी पार्टी ने ही लगाए थे। जब नरेंद्र मोदी को पूछताछ के लिए बुलाया गया तो उस समय वह गुजरात के मुख्यमंत्री भी थे, लेकिन न तो भाजपा ने उनके पक्ष में कोई प्रदर्शन किया और न ही मोदी ने कोई आनाकानी की। वर्ष 2002 के गुजरात दंगों की जांच करने वाली एसआईटी के प्रमुख आरके राघवन ने एक नई किताब में कहा है कि उस समय राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) नौ घंटे लंबी पूछताछ के दौरान लगातार शांत व संयत बने रहे और पूछे गए करीब 100 सवालों में से हर एक का उन्होंने जवाब दिया था। इस दौरान उन्होंने जांचकर्ताओं की एक कप चाय तक नहीं ली थी। राघवन ने अपनी आत्मकथा ‘ए रोड वेल ट्रैवल्ड’ में लिखा है कि मोदी पूछताछ के लिए गांधीनगर में एसआईटी कार्यालय आने के लिए आसानी से तैयार हो गए थे और वह पानी की बोतल स्वयं लेकर आए थे।

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भारत के लोकतंत्र, भारत के संविधान और अपनी ईमानदारी पर किसको कितना भरोसा है, यह साफ साफ दिख रहा है। एक सामान्य सी पूछताछ से बचने के लिए पूरी पार्टी को झोंक दिया गया। कोंग्रेस मुख्यालय को वॉर सेंटर बना दिया गया। एक आर्थिक घोटाले के मामले में, जो शीर्ष अदालत में लंबित मामला है, यदि ईडी ने पूछताछ के लिए बुला लिया तो इतना हंगामा?

इस घटनाक्रम से एक बात स्पष्ट हो गयी। इस मुद्दे को जिस ढंग से कांग्रेस ने रजानीतिक रूप देने की कोशिश की थी वह काम नहीं आया। लगभग पूरे विपक्ष ने इस प्रकरण पर चुप रहना ही उचित समझा। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारियों के सवालों को झेल रहे कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को विपक्ष का साथ नहीं मिला। सोमवार को जब राहुल से पूछताछ चल रही थी तो उस वक्त उनकी बहन एवं पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी अपने नेताओं का हालचाल जानने पुलिस स्टेशन में पहुंची थीं।

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दोपहर दो बजे तक देश के दर्जनभर दलों के प्रमुख नेताओं ने राहुल के समर्थन में ट्वीट करने से भी गुरेज किया। अगर कांग्रेस पार्टी को छोड़ दें तो राहुल अकेले पड़ गए थे। राहुल गांधी के ईडी दफ्तर में पहुंचने से पहले पार्टी महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने एक प्रेसवार्ता में मोदी सरकार के खिलाफ नई क्रांति का जिक्र किया था। जैसे ही राहुल से पूछताछ शुरू हुई तो कांग्रेस पार्टी की नई क्रांति, ‘एकला चलो’ की राह पर जाती हुई नजर आई। यह अलग बात है कि कांग्रेस ने अपनी तरफ से इसको रजानीतिक जामा पहनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। सुबह से ही दिल्ली को डिस्टर्ब करने की सारी कवायद होती रही। यह देश ने ठीक से देखा भी और इनकी मंशा को भी सभी ने समझ लिया।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

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