Vishnugupta
आचार्य श्री विष्णुगुप्त

Adi Guru Shankaracharya: दुनिया का सबसे प्राचीन सनातन धर्म आज विनाश के कगार पर क्यों पहुंच गया है? (Adi Guru Shankaracharya) अपने ही देश में भगाये, लतियाये और मारे क्यों जा रहे हैं हिन्दू?, अपने ही देश में सिर तन से जुदा क्यों कर दिये जा रहे हैं? इन प्रश्नों को समझने के लिए अभी-अभी मौत को प्राप्त स्वरूपानंद सरस्वती (Swaroopanand Saraswati) और उनकी जगह नये बने (Adi Guru Shankaracharya) शंकराचार्य अवमुक्तेश्वरानंद (Avamukteshwarananda) का प्रकरण जानना चाहिए।

स्वरूपानंद सरस्वती (Swaroopanand Saraswati) किसी भी धार्मिक कसौटी पर शंकराचार्य नहीं थे, वे एक कांग्रेसी थे, सोनिया गांधी के स्टार प्रचारक थे, दिग्विजय सिंह के गुरु थे। (Adi Guru Shankaracharya) इसीलिए दिग्विजय सिंह ने अपने शोक में कहा है कि स्वरूपानंद का जाना मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है।

आदि शंकराचार्य (Adi Guru Shankaracharya) ने देश के चार कोने पर चार मठ बनाये थे और चारों मठ के अधिकारी अलग-अलग थे। आदि शंकराचार्य (Adi Guru Shankaracharya) की व्यवस्था के अनुसार कोई एक व्यक्ति चारों या फिर दो-तीन मठ का प्रमुख नहीं हो सकता था। पर आदि शंकराचार्य (Adi Guru Shankaracharya) की व्यवस्था को लात मार कर स्वरूपानंद दो-दो शंकराचार्य पीठ का शंकराचार्य बन गया। कांग्रेसी शासन का इसने राजनीतिक-प्रशासनिक लाभ भी उठाया, मुकदमों में पैंतरेबाजी दिखायी और गुंडई भी दिखायी। धर्म प्रिय और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वर्गीय माध्वाश्रम सरस्वती जी को स्वरूपानंद सरस्वती (Swaroopanand Saraswati) के गिरोह ने खूब प्रताड़ित किया था।

स्वरूपानंद की मौत के बाद श्रद्धांजलि देने वाले भाजपा के लोगों को यह मालूम ही नहीं है कि भाजपा को हराने के लिए स्वरूपानंद सरस्वती (Swaroopanand Saraswati) ने क्या-क्या न किया था? भाजपा के लोगों और तथाकथित हिन्दू वादियों को वाराणसी का धर्म संसद को याद करना चाहिए। नवम्बर, 2018 में वाराणसी में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों से ठीक पहले धर्म संसद का आयोजन किया गया था। चर्चा थी कि सोनिया गांधी के कहने पर कांग्रेस समर्पित व्यवस्था पर धर्म संसद का आयोजन किया गया था।

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रामजन्म भूमि के प्रश्न पर इस धर्म संसद में भाजपा और मोदी को खूब राजनीतिक गालियां बकी गयी थी। धर्म संसद का आयोजन भाजपा को हिन्दू विरोधी साबित करने के लिए ही किया गया था। दुष्परिणाम यह हुआ कि भाजपा राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ में चुनाव हार गयी और कांग्रेस जीत गयी। इन्हीं राज्यों मे कांग्रेस की जीत को सुनिश्चित करने के लिए धर्म संसद का आयोजन किया गया था।

रामजन्म भूमि पर फैसला आने के बाद स्वरूपानंद और अवमुक्तेश्वरानंद (Avamukteshwarananda) ने कहा था कि राममंदिर बनाने का जिम्मा उन्हें सौंप देना चाहिए। जबकि कांग्रेस का दस साल के राज्य में इन दोनों ने रामजन्म भूमि के प्रश्न पर कभी भी मुंह नहीं खोला। सोनिया गांधी और कांग्रेस के रामजन्म भूमि के खिलाफ करतूत पर भी कभी भी मुंह नहीं खोला। दिग्विजय सिंह हिन्दुओं को रोज गालियां बकता था पर स्वरूपानंद ने कभी भी दिग्विजय सिंह को सनातन के खिलाफ बोलने से टोका नहीं। रामसेतु को तुड़वाने पर तुली और भगवान राम को भगवान मानने से इनकार करने वाली ईसाई सोनिया गांधी और कांग्रेस की इन लोगों ने कभी भी आलोचना नहीं की थी।

स्वरूपानंद ने ब्राम्हणों का सम्मेलन कराने और ब्राम्हणों की यूनियनबाजी को बढ़ावा दिया। पिछड़ों और दलितों से इन्हें बहुत प्रकार की समस्या थी। दलित और पिछड़े के बिना सनातन की रक्षा हो सकती है क्या, कल्पना तक हो सकती है क्या? जहां भी दंगा होता है वहां जिहादियों और देशद्रोहियों से मुकाबला दलित और पिछडी जातियां ही करती हैं। गुजरात दंगे में मुसलमानों का सामना कोई स्वरूपानंद सरस्वती की जाति के लोगों ने नहीं किया था, बल्कि दलित, आदिवासी और पिछड़ी जातियों के लोगों ने ही किया था। ब्राम्हण सर्वश्रेष्ठ इसलिए होते हैं कि इन्हें सनातन का रक्षक माना जाता है। अगर ब्राम्हण सिर्फ अपनी बात करेगा तो फिर ब्राम्हण को अन्य जातियां पैर क्यों छुएंगी?

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अवमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिष पीठ का शंकराचार्य बना दिया गया है। अवमुक्तेश्वरानंद स्वरूपानंद से भी ज्यादा खतरनाक है। अवमुक्तेश्वरानंद को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से राजनीतिक खुजली होती है। उन्होंने दो विधानसभा चुनावों में योगी आदित्यनाथ और मोदी के खिलाफ अभियान चलाया था। अखिलेश यादव को उन्होंने अप्रत्यक्ष समर्थन दिया था। कांग्रेसी प्रत्याशी अजय राय प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रचार किया-कराया था।

हिन्दू अपने विरोधियों और हत्यारों को भी याद नहीं रखता है और ऐसे लोगों की मौत पर भी मातम मनाता है। स्वरूपानंद सरस्वती ईसाई सोनिया गांधी का स्टार प्रचारक थे। फिर भी इसकी मौत पर आत्मघाती हिन्दुओं ने खूब मातम मनाया, खूब चरणवंदना की और महान संत बताया, सनातन की बड़ी क्षति बतायी। आज अपने देश में ही हिन्दू लात खा रहे हैं, भगाये जा रहे हैं और अपमानित हो रहे हैं। इसके पीछे कारण यही है।

स्वरूपानंद और अवमुक्तेश्वरानंद जैसे लोग शंकराचार्य बनते हैं, तो फिर शंकराचार्य के मूल्यों का हनन होता है। शंकराचार्य को हिन्दुओं का सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि और धर्म गुरू माना जाता है। पर शंकराचार्यों की बात कुत्ता तक नहीं सुनता है। अगर पोप और मौलवी बोलता है तो फिर सत्ताएं डोल जाती हैं, विध्वंस भी हो जाती है। पर कोई शंकराचार्य बोलता है, तो फिर हिन्दू तक भी संज्ञान नहीं लेता है। इसके पीछे कारण यही है कि शंकराचार्यों की पीठ पर स्वरूपानंद और अवमुक्तेश्वरानंद जैसे अयोग्य और सोनिया गांधी तथा जातिवादी लोग पैंतरेबाजी और प्रपंच का सहारा लेकर बैठ जाते हैं।

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अब आपको तय करना है कि स्वरूपानंद और अवमुक्तेश्वरानंद जैसों को शंकराचार्य के रूप में देखना हैं या नहीं। हिन्दू तभी अस्तित्वमान रहेगा जब वह अपने विरोधियों और अपने हत्यारों के सम्मान में लेटना बंद करेगा, ऐसे लोगों की चरणवंदना से दूर रहेगा। अगर आप हिन्दू हैं तो फिर आपको अपने विरोधियों और अपने हत्यारों से घृणा करना सीखना ही होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

(यह लेखक के निजी विचार है)

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