Shailendra Kumar Yadav
शैलेन्द्र कुमार यादव

Story: ‘ अपनी जाति, राष्ट्र, धर्म आदि का सद् अभिमान। (Story) अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का अभिमान। आत्म-गौरव, आत्म विश्वास। (सेल्फ़-रेस्पेक्ट), ( सेल्फ स्टिम)। हमें अपना स्वाभिमान नहीं खोना चाहिए। (Story) जो भी व्यक्ति स्वाभिमान से जीवन यापन करते हैं, वह बहुत सी चीजों का बलिदान भी करते हैं। वह अपने नफा नुकसान को अपने स्वाभिमान की वजह से नहीं देखते। (Story) स्वाभिमानी व्यक्ति थोड़ा जिद्दी स्वभाव का भी हो जाता है। वह जो बात कह देता हैं, उसपर अडिग रहता है।

स्वाभिमानी व्यक्ति का सबसे अच्छा गुण है कि वह अपने ऊपर गर्व /proud महसूस करता है। क्योंकि वह उन चीजों की कीमत समझता है जो उसके पास होती है और दुखी नहीं रहता। (Story) इसी बात को इस लेख के माध्यम से समझाने का प्रयास किया गया है। दिए गए समय या बात का पक्का होता है वह हमेशा समाज में सम्मान की भावना से देखा जाता है। आपको एक ऐसी ही कहानी से रूबरू कराता हूं- STORY ON PROUD IN HINDI।

आज मुझे घर जाते हुए काफी देर हो गई थी और घर जाने के लिए सवारी का साधन भी काफी देर से नहीं आ रहा था। ऐसे में मुझे आज काफी समय मिल गया था, लोगों को निहारने का। अभी कुछ समय ही हुआ था कि मेरी नज़र एक औरत पर पड़ी जो अपनी एक सात-आठ साल की लड़की के साथ मुझसे कुछ दूरी पर खड़ी थी। उस औरत और उसकी बेटी के कपड़ों की दयनीय हालत देख कर ऐसा लगना लाज़िमी था कि मानो ज़िन्दगी ने काफी सितम ढाये हो उन लोगों पर।

उन्हें देखकर लगा कि कितने मज़बूर,गरीब और लाचार है ये लोग? कैसे ये अपना गुज़ारा करते होंगे और अपना जीवन व्यतीत करते होंगे? ऐसे लोगों की मदद करनी चाहिए हमें। मैं अभी ये बातें सोच ही रहा था कि उसके बाद जो हुआ उसे देखकर और सुनकर मैं आश्चर्यचकित रह गया।

हुआ क्या कि हम से कुछ दूरी पर कुछ सज्जन लोग गरीब और बेसहारा बच्चों को कुछ खाने की चीज़ वितरित कर रहे थे। और बच्चों की आदत के अनुसार मेरे पास खड़ी लड़की भी उस जगह पर जाने और वो चीज़ प्राप्त करने के लिए बार बार अपनी माँ के हाथ से अपना हाथ छुड़ाने का ज़ोर से प्रयास कर रही थी। कई बार ऐसा करने के बाद उसकी माँ ने जो शब्द उसे समझाने के लिये कहे, उन्होंने मुझे सोचने पर मज़बूर कर दिया।

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उस औरत ने कहा कि बेटा वो गरीबों के लिए है। ये सुनकर मुझे एहसास हुआ कि स्वाभिमान क्या होता है? अक्सर हम लोग उन चीज़ों के लिए मलाल करते रहते है जो हमारे पास नहीं होती है और जो होती है हमारे पास उनकी कीमत हम नहीं समझते है। और कहीं न कहीं मानव के दुःख का ये एक बहुत बड़ा कारण है। एक बार एक वृद्ध पुरुष जिनकी अवस्था लगभग 80 वर्ष के ऊपर की थी, उनका कोई नहीं था। वह सिर्फ अकेले रहा करते थे। रस्सी बनाकर बाजार में बेचा करते थे

शाम को बाजार से लौटकर वह अपना भोजन बनाया करते यह उनके काम करने की अवस्था नहीं थी पर वह मांग कर नहीं खाना चाहते थे। सुबह रस्सी बनाकर शाम को बाजार में ले जाया करते थे। क्योंकि वह स्वाभिमानी व्यक्ति थे और पूरी उम्र में उन्होंने किसी के आगे हाथ नहीं फैलाए, बेचारे मेहनत करके दो वक्त की रोटी खाते थे। अपने ऊपर उनको गर्व था, शायद यही उनका स्वाभिमान जो उनको झुकने नहीं दे रहा था।

सब परिंदे उड़ गए पछी अकेला छोड़ कर।
बागवा है अब अकेला उम्र के इस मोड़ पर।।

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