Kahani: विंध्याचल पर्वत के बीच बसे एक गाँव के किसान मंगलू की गाय बहुत बीमार पड़ गयी। उसके दूध की बिक्री करके वह अपने परिवार का पालन करता था। गाँव का एक अनुभवी किसान बदलू पशुओं और मनुष्यों सभी के लिए जड़ी बूटियों से औषधियां बनाकर देता था। क्षेत्र के नागरिकों के लिए वही लाल बुझक्कड़ था।

कई दिनों से गाय उठ नहीं पा रही थी। मंगलू की चिन्ता बढ़ती जा रही थी। बदलू के घर पहुंचकर मंगलू ने अपनी व्यथा कह सुनाई। बदलू समझ चुका था कि उसकी दवा से गाय बचने वाली नहीं है। फिर भी कुछ औषधियां लेकर झोले में डालीं और मंगलू के साथ चल पड़ा। उसने गाय का निरीक्षण किया। फिर दवाएं बनाने लगा। कुछ देर व्यस्त रहने के बाद बदलू ने मंगलू को निकट बुलाकर धीरे-धीरे कुछ बताया। फिर दो बोतलों में दवाएं देकर चला गया।

जब बदलू दवाएं बनाकर दे रहा था तब उसने जो कुछ कहा, उसे पास खड़ी बकरी सुन रही थी। बकरी ने उस बातचीत के सन्दर्भ में गाय के कान में जाकर सब बता दिया। बकरी ने कहा- वैद्य बदलू कह रहा था कि नीली बोतल की दवा पीने के बाद यदि देर रात तक गाय उठकर खड़ी नहीं होती तो भोर होने से पहले इसे दूसरी बोतल की पूरी दवा पिला देना। इसे पीने के एक घण्टे के भीतर गाय मर जाएगी। बदलू ने किसान मंगलू से कहा था दूसरी बोतल में तेज विष है। इसे लाचार गाय को देकर मारना होगा। अन्यथा तुम्हारे घर के सभी सदस्यों के प्राण संकट में पड़ जाएंगे। मंगलू बहुत दुखी था। पर घर के सदस्यों पर संकट की बात से घबरा गया था।

बकरी ने गाय से जोर देकर कहा कि आज आधी रात के पहले वह किसी तरह खड़ी हो जाय। अन्यथा विष की बोतल उसे पिला दी जाएगी। प्राण बचाने के लिए और कोई उपाय नहीं है। गाय अपनी लाचारी से बहुत व्यथित थी। ऐसे समय बकरी उसे साहस बटोर कर खड़े होने के लिए बार-बार संकेत कर रही थी। बकरी ने कहा- वह भगवान श्रीकृष्ण की सुधि करे। वह गोपालक थे। तुम्हारी सहायता अवश्य करेंगे।

गाय ने अनेक बार जोर लगाया। जब अपने से नहीं बना तो बकरी के बताए अनुसार कान्हा का सुमिरन किया। तीन बार जोर लगाने के बाद उसे लगा कि कान्हा उसकी गर्दन सहला रहे हैं। सहसा उसके पूरे तन में झुरझुरी फैल गयी। वह उठ कर खड़ी हो गयी। बकरी और उसके बच्चों ने चिल्ला चिल्ला कर मंगलू के घर वालों को इकट्ठा कर दिया। गाय खड़ी हो गई। अभी तो उसे दवा दी ही नहीं गई। यह सोचकर सभी हतप्रभ थे। उधर गाय और बकरी कान्हा को आभार व्यक्त कर रही थीं। यह कैसा चमत्कार है कान्हा। तुमने एक गाय की पुकार सुन ली। गाय यह सोचती हुई अश्रु बहाती और कभी बकरी को तो कभी कान्हा को आभार व्यक्त करने लगती।

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उधर बदलू वैद्य ने सूचना पायी तो दौड़ा चला आया। वह इसे अपनी पहली दवा का चमत्कार मान रहा था। डींगे मारते देख किसान मंगलू ने उसे दोनों बोतले थमाते हुए कहा- ये रहीं तुम्हारी दवाएं। इनके बिना मेरी गाय के शरीर में प्राण लौट आए हैं। उसी समय मंगलू ने एक ऐसी घोषणा की जिसे सुनकर गाय और बकरी दोनों के हृदय में हाय समा गयी। मंगलू ने कहा- गाय ठीक होने की खुशी में कल सभी की दावत रखी जाएगी। मेरी बकरी का मांस पकाया जाएगा। बकरी का शरीर भरा पूरा है। इसके मांस की दावत से सभी तृप्त हो जाएंगे। इतना सुनते ही गाय पछाड़ा खाकर गिरी और तत्काल मर गई। उसे अपनी मित्र बकरी पर आए संकट ने गहरा सदमा दिया। उधर बकरी को अपने बारे में सोचने का अवसर ही नहीं मिला। वह गाय के इस तरह गिर कर मरने से अत्यन्त व्यथित थी।

बकरी को अन्ततः कान्हा ने आकर समझाया कि तुम दोनों पशु हो पर एक दूसरे को कितना प्यार करते हो। तुम्हारे संकेतों पर गाय के प्राण बचे थे पर जब तुम पर संकट आ गया तो गाय भला जीवित रहकर क्या करती। उसने तुम्हारे प्रति अपने अनुराग का प्रदर्शन किया। तुम दोनों को मेरी कृपा का लाभ यथा समय अवश्य मिलेगा। यह कहानी मनुष्यों के स्वार्थी चिन्तन और निर्मोही हृदय के प्रति संकेत करती है।

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