Pauranik Katha: सुदर्शन चक्र भगवान श्री हरि विष्णु जी का शस्त्र है। यह चक्र एक ऐसा शस्त्र है, जो चलाने के बाद अपने लक्ष्य पर पहुंच कर उसे भेद कर वापस आ जाता है। यानि यह चक्र कभी नष्ट नहीं होता। इस चक्र की उत्पत्ति की कई कहानियां सुनने को मिलती हैं। कुछ लोगों का मानना है, कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश, ब्रहस्पति ने अपनी ऊर्जा एकत्रित कर के इस की उत्पत्ति की है। यह भी माना जाता है, कि यह चक्र भगवान विष्णु ने भगवान शिव की आराधना कर के प्राप्त किया है।
सुदर्शन दो शब्दों से जुड़ कर बना है, सु यानि शुभ और दर्शन। चक्र शब्द चरुहु और करूहु शब्दों के मेल से बना है, जिस का अर्थ है गति (हमेशा चलने वाला)। यह चांदी की श्लाकाओं से निर्मित था। इस की ऊपरी और निचली सतहों पर लौह शूल लगे हुए थे। इसमें अत्यंत विषैले किस्म के विष का उपयोग किया गया था। सुदर्शन चक्र से जुड़ी एक कहानी यह भी है, कि इस का निर्माण विश्वकर्मा के द्वारा किया गया है।
विश्वकर्मा ने अपनी पुत्री संजना का विवाह सूर्य देव के साथ किया। परन्तु संजना सूर्य देव की रोशनी तथा गर्मी के कारण उनके समीप न जा सकीं। यह बात जब विश्वकर्मा को पता चली, तब उन्होंने सूर्य की चमक को थोड़ा कम कर दिया और सूर्य की बाकि बची ऊर्जा से त्रिशूल, पुष्पक विमान तथा सुदर्शन चक्र का निर्माण किया। सुदर्शन चक्र शत्रु पर गिराया नहीं जाता, यह प्रहार करने वाले की इच्छा शक्ति से भेजा जाता है। यह चक्र किसी भी चीज़ को समाप्त करने की क्षमता रखता है।
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माना जाता है, कि श्री कृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत के समय सुदर्शन चक्र की सहायता से इंद्र के द्वारा प्रलयकारी मेघों से बरसाए गए जल को सुखाया था। सब कुछ अच्छा न होने पर भी क्यों कही जाती है! ये कहावत! इस चक्र ने देवी सती के शरीर के 51 हिस्से कर भारत में जगह-जगह बिखेर दिए और इन जगहों को शक्ति-पीठ के नाम से जाना जाता है। यह तब हुआ जब देवी सती ने अपने पिता के घर हो रहे यग्न में खुद को अग्नि में जला लिया। तब भगवान शिव शोक में आकर सती के प्राण-रहित शरीर को उठाए घूमते रहे।
सुदर्शन चक्र की हिन्दू धर्म में बहुत मान्यता है, जैसे वक़्त, सूर्य और ज़िंदगी कभी रूकती नहीं हैं, वैसे ही इस का भी कोई अंत नहीं कर सकता। यह परम्-सत्य का प्रतीक है। हमारे शरीर में भी कई तरह के चक्र मौजूद है। जिस में अत्यंत ऊर्जा और आध्यात्मिक शक्ति उत्पन्न करने की क्षमता है। योग उपनिषद् में सहस्रार चक्र के आलावा 6 चक्र और हैं-मूलधारा, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विसुद्धा और अजना। श्री मंदिर के रत्न सिंहासन के 4 देवताओं को चतुर्द्धामूर्थी कहा जाता जिन में सुदर्शन चक्र को भी देव माना गया है।
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