लखनऊ। शायद कोई ही ऐसा सरकारी काम हो जिसमें भ्रष्टाचार की बात सामने न आए। फर्क सिर्फ इतना है कि जिसकी शिकायत होती है उसी की ही पोल खुलती है, वरना अधिकारी और ठेकेदार सब ठीकठाक कर ही देते हैं। इसी तरह गोमती रिवर फ्रंट में भ्रष्टाचार का जिन्न भी धीरे धीरे करके बाहर आता दिख रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार ने गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में आरोपी रूप सिंह यादव के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने के लिए अपनी मंज़ूरी दे दी है। बता दें कि रूप सिंह यादव सिंचाई विभाग लखनऊ खंड शारदा नहर के तत्कालीन अधिशासी अभियंता थे और सपा के बड़े नेताओं के काफी करीबी माने जाते थे। रिवर फ्रंट के कार्यों में बड़े पैमाने पर अनियमितता की बात सामने आने के बाद विजिलेंस जांच में उनका नाम आया था।

सीबीआई ने जांच में पाया दोषी

इस मामले में विजिलेंस की तरफ से गोमतीनगर थाना में रूप सिंह यादव सहित अन्य लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई थी। वहीं अब इस मामले की जांच सीबीआई कर रही है। जबकि अब शासन से मंजूरी मिलने के बाद रूप सिंह यादव के खिलाफ कोर्ट में मुकदमा चलेगा। बता दें कि सीबीआई ने जांच में रूप सिंह सिंह यादव और एक अन्य कार्मिक को दोषी पाया है। इसी के तहत दोनों के खिलाफ कोर्ट में मुकदमा चलाए जाने के लिए अभियोजन की स्वीकृति के संदर्भ में उत्तर प्रदेश शासन से मांग की गई थी, जिसपर शासन ने आज अभियोजन की स्वीकृति दे दी है।

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बजट का 95 फीसदी खर्च, 60 फीसदी हुआ काम

सपा सरकार ने लखनऊ में गोमती रिवर फ्रंट के लिए 1513 करोड़ रुपए की धनराशि स्वीकृत किए थे, जिसमें से 1437 करोड़ रुपए जारी होने के बाद भी मात्र 60 फीसदी काम ही हो पाया। आवंटित धनराशि का 95 फीसदी राशि खर्च हो जाने के बाद भी रिवर फ्रंट का काम करने वाली संस्थाओं ने पूरा काम नहीं किया। योगी सरकार ने वर्ष 2017 में रिवर फ्रंट की जांच के आदेश देते हुए न्यायिक आयोग गठित किया था। जांच में पता चला कि डिफाल्टर कंपनी को ठेका दिलाने के लिए टेंडर की शर्तों में भी बदलाव किया गया।

इस पूरे प्रोजेक्ट के लिए करीब 800 टेंडर निकाले गए थे, जिसका पूरा अधिकार चीफ इंजीनियर को दे दिया गया था। मई 2017 में रिटायर्ड जज आलोक कुमार सिंह की अध्यक्षता में न्यायिक आयोग से जांच कराई गई, जिनकी रिपोर्ट में कई खामियों का खुलासा हुआ। बता दें न्यायिक आयोग की रिपोर्ट के आधार पर योगी सरकार ने सीबीआई जांच के लिए केंद्र को पत्र लिखा था।

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