Acharya Vishnu Hari Saraswati
आचार्य विष्णु हरि सरस्वती

तारिक फतह मेरी आने वाली पुस्तक के विमोचन समारोह में आने वाले थे। मैंने जब उनसे कहा था कि मेरी पुस्तक राहुल गांधी के नकरात्मक दृष्टिकोण पर है, आपको थोड़ी असुविधा होगी। भारत में सेक्युलर और जिहादी वर्ग की आलोचना भी झेलनी होगी। आप पर फतवा भी जारी हो सकता है। इस पर उनका उत्तर सुनकर मैं दंग और हैरान था। उन्होंने कहा कि क्या आप ही वीर बहादुर हैं, क्या आप ही अकेला इस संसार में शेर हैं, क्या आप स्वयं मात्र को सनातन का अपराजित हस्ताक्षर मानते हैं? आप मुझे विमोचन समारोह मैं आमंत्रित कर रहे हैं या फिर धमकी पिला रहे हैं, ललकार रहे हैं, ताव चढा रहे हैं?

मैंने क्षमा मांगते हुए कहा कि मैं उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों को मात्र भान करा रहा हूं। इस पर उन्होंने कहा कि मैं जब अलकायदा से नहीं डरा, जब मैं ओसामा बिन लादेन से नहीं डरा नहीं, जब मैं परवेज मुशर्रफ से नहीं डरा, जब मैं दुनिया भर के इस्लामिक जिहादियों से नहीं डरा, तो फिर राहुल गांधी से क्यों डरूंगा। आपकी पुस्तक के विमोचन समारोह में मेरी दहाड़ गूजेंगी और मैं भारत की राष्ट्रीयता व अस्मिता का पाठ राहुल गांधी को पढाउंगा, आप निश्चित रहिये। मैं अपने आप को दुर्भाग्यशाली समझता हूं, मेरी पुस्तक के विमोचन समारोह के पूर्व ही उनको भगवान ने अपने पास आमंत्रित कर लिया। लेकिन उनकी दहाड़ और कमिटमेंट मेरे लिए आदर्श के रूप में सदैव उपस्थिति रहेंगे।

Tarek Fatah

तारिक फतह के जाने की कोई उम्र नहीं थी। 73 वर्ष ही तो उनकी उम्र थी। लोग तो अपनी उम्र का शतक भी बना डालते हैं। लेकिन यह भी सही है कि सभी को अपनी उम्र का शतक बनाने का सौभाग्य मिलता ही कहां है? इस प्रसंग में तारिक फतह दुर्भाग्यशाली ही माने जायेंगे। मन और दिमाग से पूरी तरह सक्रिय थे और जागरूकता के पथ पर भी अविचिलित तौर पर अडिग थे। लेकिन उन्हें कैंसर की बीमारी ने ग्रसित कर लिया था। कैंसर की बीमारी के कारण उनका शरीर जर्जर हो गया था। इलाज लगातार जारी था। मृत्यु को ग्रहण करने की उम्मीद नहीं थी। पर होनी को कौन टाल सकता है? अनहोनी की खबर मिल ही गयी। इस अनहोनी खबर ने करोड़ों सनातनियों पर वज्रपात कर दिया, अवसाद में डाल दिया।

अनहोनी की खबर सुनते ही हर कोई का मन और दिमाग बैठ गया। एक तरह से हाहाकार मच गया। खास कर सोशल मीडिया पर एक तरह से हाहाकार मच गया, उनकी वीरता, उनके समर्पण और उनकी दहाड़ की प्रशंसा करने की कोई कसर नहीं छोड़ी गयी। वे कनाडा मे रहते थे। लेकिन उनकी सक्रियता विश्व के किस कोने-कोने मे नही होती थी? खासकर भारत में उनकी सक्रियता की तूती बोलती थी। भारत में जब भी राष्ट्रीयता की बात होती थी। देशभक्ति की बात होती थी, संस्कृति की रक्षा की बात होती थी तब अगर केवल एक नाम को याद किया जाता था वह नाम तारिक फतह का ही होता था। जब भी राष्ट्रीयता, देशभक्ति और संस्कृति पर आधारित सेमिनार और संगोष्ठियों में प्रमुख वक्ता का नाम तय करने की बात सामने आती थी, तो तारिक फतह ही पहली पसंद होते थे। तारिक फतह कभी भी इस तरह के समारोह में आने से मना नहीं करते थे। खुशी के साथ आते और अपनी दमदार वाणी से सबको चमत्कृत कर जाते थे, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि डंके की चोट पर सनातन का पाठ पढ़ा देते।

Tarek Fatah passed away

सनातन संस्कृति में धरती को माता कहा जाता है। भारत को सनातन के दृष्टिकोण से भारत माता कहा जाता है। यह अलग बात है कि भारत माता कहने पर सेक्युलर और जिहादी समूह घृणा फैलाते हैं। भारत माता कहने वालों को सांप्रदायिक कहते हैं। पुरातन सोच कह कर अपमानित करते हैं। लेकिन अब सनातन की जनजागरूकता की दौर में भारत माता की अस्मिता चरम पर है। भारत माता की अस्मिता की सरकार है। भारत माता का यहां पर चर्चा करने का अर्थ तारिक फतह के साथ ही जुड़ा हुआ है। तारिक फतह अपने आप को भारत माता का सुपुत्र कहते थे। वे कहते थे कि हां मैं भारत माता का सुपुत्र हूं, जिसे जो उखाड़ना है उखाड़ लें। वे जिस संस्कृति में पले और बढे थे वह संस्कृति बहुत ही एंकाकी से भरी हुई है, खतरनाक तौर पर हिंसक है, खतरनाक तौर पर मजहबी है। वह संस्कृति सिर्फ अपनी मनमानी करती है। उस संस्कृति में धरती और देश को माता समझने की स्वीकृति नहीं होती है, माता समझ कर उसे नमन करने की स्वीकृति नहीं होती है। लेकिन उन्होंने अपने आप को बार-बार भारत माता का सुपुत्र कह कर उस एंकाकी, हिंसक और मजहबी संस्कृति को ठेंगा दिखाने का साहस किया।

जब कोई अपनी जड़ों को देखता और समझता है, जब कोई अपनी पुरातन संस्कृति और इतिहास को जानता है तब उसकी धारणाएं बदलती है। उसकी भावनाएं इतिहास और जडों से जुड़ती है। तारिक फतह एक उच्च कोटि के लेखक, पत्रकार और बुद्धिजीवी थे। वे पाकिस्तान मूल के थे। पाकिस्तान में भारत की अस्मिता और गरिमा के खिलाफ इतिहास लेखन हुआ, भारत को खलनायक और दुश्मन दिखाया गया। भारत को काफिर देश घोषित कर दिया गया। पर सच्चाई को कब तक छिपाया जा सकता है। सच कभी भी ओझल नहीं होता है, जींवंत होता है। तारिक फतह ने देखा कि पाकिस्तान का मूल तो भारत है।

पाकिस्तान मुसलमानों का मूल तो भारत है, पाकिस्तान मुसलमानों का मूल तो हिन्दू हैं, हिन्दू ही उनके पूर्वज है, राम-कृष्ण उनके भगवान है। फिर मूल इतिहास और संस्कृति पर ऐसी जिहादी संस्कृति की स्थापना क्यों? फिर मुल्ला मौलवी इस तरह की जिहादी हरकतें क्यों करते हैं? तारिफ फतह ने पाकिस्तान की जनता में मुल्ला मौलवियों और काफिर मानसिकता से ग्रसित इतिहास के पुर्नलेखन कराने की आवश्यकता बतायी थी। तारिक फतह की ही देन है कि पाकिस्तान में युवाओं की ऐसी फौज खड़ी हो रही है जो अपने आप को हिन्दुओं का वंशज और अपने आप को सनातन संस्कृति की देन बता रहे हैं और सनातन के खिलाफ उठने वाली मजहबी आवाज को खारिज कर रहे हैं।

अलकायदा, हमास और आईएस जैसी खतरनाक आतंकवादी विचारों को खारिज कराने के प्रयास दुनिया में चल रहे हैं। लेकिन तारिक फतह ने ओसामा बिन लादेन से जमकर लोहा लिया था और बार-बार कहा था कि ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान का ही नहीं बल्कि इस्लाम का भी दुश्मन है। लादेन की हिंसा पर चलकर पाकिस्तान कभी भी पनप नहीं सकता है और सुरक्षित नहीं होगा। इतना ही नहीं बल्कि पाकिस्तान की राष्ट्रीय अस्मिता भी खतरे में पड़ेगी। उनका वह विचार कितना चाकचौबंद था? यह आज की स्थिति से जगजाहिर हो रहा है। पाकिस्तान ने जिस आतंकवाद को पाला था वहीं आतंकवाद आज पाकिस्तान के लिए भस्मासुर साबित हो रहा है। आज पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति कैसी है? यह कौन नहीं जानता है। आज पाकिस्तान पूरी दुनिया में कटोरा लेकर भीख मांग रहा है पर उसे भीख की जगह अपमान और तिरस्कार मिल रहा है।

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तारिक फतह दावे के साथ कहते रहे कि दुनिया में सिर्फ सनातन संस्कृति ही है जो सदभावना की बात करती है जिसमें सभी संस्कृतियों को फलने-फूलने की उम्मीद बनती है। वे बार-बार प्रश्न करते थे कि क्या इस्लामिक संस्कृति में किसी अन्य संस्कृति को फलने-फूलने की स्वीकृति होती है, वातावरण होता है? पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दुओं की संख्या अस्तित्व हीन स्तर पर क्यों पहुंच गयी? भारत की सनातन संस्कृति को देखिये। भारत की सनातन संस्कृति में मुस्लिम आज 20 प्रतिशत से अधिक हो गये। इस्लामिक देशों से मुस्लिम ज्यादा सुरक्षित सनातनी भारत में हैं। फिर भी कुछ मुस्लिम भारत और सनातनी संस्कृति के खिलाफ जिहाद करते हैं। यही कारण है कि भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मुसलमानों को आतंकवादी और घृणित तौर देखा व समझा जा रहा है।

तारिक फतह का जाना सनातन के लिए बहुत बड़ी क्षति है। इस क्षति की भरपाई करनी मुश्किल है। तारिक फतह ने जिस तरह से सनातन संस्कृति के प्रचार-प्रसार में योगदान दिया, जिस तरह से उन्होंने इस्लामिक आतंकवाद और पाकिस्तान की मजहबी सोच के खिलाफ निडरता दिखायी, वीरता दिखायी वह सब विश्व की शांति और सदभाव के लिए एक विरासत है। तारिक फतह को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

(ये लेखक निजी विचार हैं)

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