Poetry: कलम और कवि का संवाद

( कलम ) कवि! तेरा क्या बिगड़ा है, तू क्यों इतना हारा है? क्यूँ हर बार विरह का गीत, लिखता, कलम से सारा है? क्यूँ न लिखता प्रेम कहानी, क्यूँ…

Poetry: मालिक जिंदाबाद

मेरे प्यारे, कुत्ता भाइयो! तुम सो रहे हो, अपना भविष्य खो रहे हो। हम तुम्हें जगाने आए हैं, तुम्हारी नींद भगाने आए हैं। नसीहतें मानते रहो, चैन से सोना है…

Kavita: शुभ संकेत

भारत फिर से जाग रहा है विघटन दुर्गुण भाग रहा है। जगे रक्त वंश संबन्ध पुराने पुरखों का युग मांग रहा है।। तुर्क मुगल हैं नहीं हमारे मति भ्रम से…

Kavita: परीक्षाओं में असफल हुए पुरुष

परीक्षाओं में असफल हुए पुरुष अक्सर प्रेम में भी असफल हो जाते हैं। विवाह की पहली रस्म पुरुष की आय पूछना होती है दूसरी पुरुष की आयु तीसरी पुरुष का…

Kavita: लें राणा का संकल्प

जिसके जीवन में राष्ट्र प्रथम, जिसके उर में था पला ताप। क्षण-क्षण राष्ट्र समर्पित था जो, रण बांकुरा अमर राणा प्रताप।। सब सुविधाएं त्याग जो बढ़ा, झुका न टूटा कभी…

Kavita: चटनी और कांदों के साथ माँ

रोटियाँ, चटनी और कांदों के साथ माँ थैले में रख देती है दो जोड़ी कपड़ों में तह करके आशा पश्चिम की ओर मुँह कर करती है तिलक लगाती है चावल…

Kavita: मुनिया कॉलेज जाना चाहती थी

मुनिया कॉलेज जाना चाहती थी मगर “गोल-गोल फूली हुई रोटी बनाना सीख लेना भी कोई पढ़ाई लिखाई से कम है क्या?” ऐसा आजी कहती है। बबुआ सपना बहुत देखता है!…

Kavita: किसी को किसी से फर्क नहीं पड़ता

किसी को किसी से फर्क नहीं पड़ता दांव लगाने वाला भी शर्त नहीं पढ़ता गोरखधंधों से कमाने वाला इंसान जरूरतमंदों पर खर्च नहीं करता गीता, बाईबल, ग्रंथ, कुरान पढ़ने वाला…

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