Poetry: खिलखिलाया करो!

तलब इतनी न अपनी बढ़ाया करो, दाग-ए-दिल न किसी को दिखाया करो। गर्म आँसू हैं आँखों में देखो बहुत, घुट-घुटके न जीवन बिताया करो। अच्छे लोगों से दुनिया है भरी-पटी,…

Poem: पक्षी के परों का कंपन

अचानक किसी दिन कविता के साए मंडराने लगते देह के अज्ञात में तब वह अज्ञात सी जेहन में पुकार लगाती, दस्तक देती फिर एक आवाज़ गूंजती कठफोड़वे की ठक ठक…

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