विरह की वेदना
परदेश गये मोहे छोड़ पिया। सेजीया सूनी मन खिन्न किये।। काटे ना कटे विरहन रतियाँ। आँगन नागिन के सेज लगे।। सौतन बन कर कंगना खनके। पायल बाजे बेड़ी बन कर।।…
परदेश गये मोहे छोड़ पिया। सेजीया सूनी मन खिन्न किये।। काटे ना कटे विरहन रतियाँ। आँगन नागिन के सेज लगे।। सौतन बन कर कंगना खनके। पायल बाजे बेड़ी बन कर।।…
राह निहारत रैना बीते। नैना अश्रु बहावे।। पीया बिना सखी निंद न आवे। पल पल याद सतावे।। पतझड़ बीत बसंत आइ गयो। मंद पवन अब डोले।। भौंरा गुंजन करे फूल…