Vishnugupta
आचार्य श्री विष्णुगुप्त

ऋषि सुनक (Rishi Sunak) का ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचना एक इतिहास को बदलना ही नहीं, बल्कि एक राजनीतिक चमत्कार जैसा भी है। निसंदेह तौर पर ऋषि सुनक (Rishi Sunak) पॉलिटिक्स चेंजर बन गए हैं। ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार से 2008 में एक असवर्ण बराक ओबामा ने अमेरिका के राष्ट्रपति बनकर इतिहास बनाया था और पॉलिटिक्स चेंजर की ख्याति प्राप्त की थी। गोरी आबादी और इस्लामिक रक्तबीज की मांद में ऋषि सुनक (Rishi Sunak) की विजय श्री को लेकर ब्रिटेन की मीडिया ही नहीं बल्कि यूरोपीय, अमेरिकी मीडिया में भी खासी चर्चा हुई है। खासकर भारत में तो गर्व का विषय माना जा रहा है और गर्व की अनुभूति हो रही है। हिंदुत्व दर्शन की भी महान उपलब्धि मानी जा रही है।

एक समय गुलाम भारत के शासक अंग्रेज थे। समय का पहिया घूमा और अब ब्रिटेन की सत्ता पर एक हिंदुत्व का प्रहरी राज करेगा। ब्रिटेन की गोरी आबादी के बीच में हिंदुत्व की स्वीकार्यता के कारण क्या हैं? क्या ऋषि सुनक (Rishi Sunak) ब्रिटेन के पुराने इतिहास व गौरव को आगे बड़ा सकने में सक्षम होंगे? क्या ब्रिटेन की बहुलताववाद की संस्कृति को अक्षुन रखने में सफल होंगे? घृणित और हिंसक इस्लामिक रक्तबीज को कैसे नियंत्रित करेंगे?

विस्टन चर्चिल का अहंकार, उपनिवेशिक मानसिकता और दुराग्रह भी जमींदोज हो गया। विंस्टन चर्चिल की कसौटी क्या थी, यह भी देख लीजिए। गुलामी काल में ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने भारतीयों को हतोत्साहित और अपमानित करने वाले मंतव्य दिए थे। उसने कहा था कि भारतीय लोग कमजोर बुद्धि के हैं, ये शासन करने के सक्षम नहीं है, इनके हाथ में सत्ता होगी तो वे ठीक से शासन नहीं चला पाएंगे। चर्चिल को भारत की प्राचीन शासन व्यवस्था और भारत की प्रेरक संस्कृति का ज्ञान नहीं था। लोकतंत्र का उदय भारत की धरती पर ही हुआ था। अपने आप को विश्व विजयी मानने वाले सिकंदर की पराजय भी यही हुई थी।

Rishi Sunak

प्राचीन भारत में समुद्रगुप्त चंद्रगुप्त की महान शासन व्यवस्था कौन नहीं जानता है? गुलामी काल में भी स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती, महर्षि अरविंद से लेकर धर्म और समाज सुधारकों के अनेकानेक हस्ताक्षर और हस्तियां अपनी ज्ञान विद्या से विश्व को चमत्कृत कर रही थी। इसके अलावा सुभाष चंद्र बोस का प्रताप द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान विंस्टन चर्चिल खुद दे चुके थे। महात्मा गांधी और सरदार पटेल का प्रताप भी उनके सामने था। आज ऋषि सुनक ने चर्चिल के उस कथन और उस औपनिवेशिक मानसिकता पर न केवल विजयश्री प्राप्त की है बल्कि वे उस ब्रिटेन का शासन चलाएंगे, जिस ब्रिटेन का भारत कभी गुलाम था।

विजेता हार में भी अपनी जीत देखते हैं, अपना भविष्य देखते हैं और अपनी उपलब्धियों को लेकर आत्मचिंतन करते हैं, सकारात्मक सक्रियता को आत्मसात करते हैं, संघर्ष का अचूक हथियार बना डालते हैं। जब लिज ट्रस्ट से सुनक की प्रतिबद्धता थी तब भी एक बड़ी उम्मीद थी। लेकिन वह उम्मीद आशा या फिर किरण नहीं बन सकी थी। प्रतिद्वंदिता में सुनक को हार मिली हुई थी। 20 हजार से ज्यादा प्रतिनिधि वोटों से लिज ट्रस्ट ने सुनक को पराजित किया था। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि प्रतिद्वंदिता में जो उन्हें मत मिले हुए थे वह काफी हतोत्साहित करने वाले थे, भविष्य की उम्मीद को कुचलने वाले थे।

लिज ट्रस्ट के हाथों उनकी हार पर यह कहा गया था कि ब्रिटेन की गोरी आबादी की उपनिवेश गुलामी मानसिकताए गई नहीं है, नस्ली घृणा की मानसिकताएं उनके सिर पर चढ़ कर बोलती हैं। गोरी आबादी एक सामान्य नस्ल को कैसे स्वीकार करती? यह भी मान लिया गया था कि अब कभी भी ऋषि सुनक प्रधानमंत्री नहीं बन सकते, उन्होंने स्वर्णिम अवसर खो दिया है। ब्रिटेन के सभी राजनीतिक समीकरण भी यही ध्वनि देते थे। परंतु प्रशंसा करनी होगी ऋषि सुनक की राजनीतिक सूझ बूझ को और राजनीतिक धीरज को।

आमतौर पर देखा यह गया है कि बड़े अवसर या फिर बड़े राजनीतिक पद पर मिली हार के बाद लोग अपना आपा खो देते हैं और टेंशननाइज होकर अनाप-शनाप बकने लगते है, विभिन्न प्रकार के मनगढ़ंत बेबुनियाद और प्रत्यारोपित आरोप लगाना शुरू कर देते हैं। दूसरा कोई होता तो फिर नस्लवादी हथकंडा अपना लेता। नस्ल के आधार पर अपने आप को पीड़ित घोषित कर देता। ब्रिटेन की मूल गोरी आबादी को खलनायक घोषित कर देता। जैसा कि भारत में अभियान चलाया जाता रहा है और हथकंडा अपनाया जाता रहा है।

भारत में भी खासकर मुस्लिम आबादी बात-बात पर अपने आप को पीड़ित घोषित क्या नहीं करती है? क्या भारत की मुस्लिम आबादी बात-बात पर बहुसंख्यक आबादी को खलनायक घोषित कर अपमान नहीं करती है? भारत में असहिष्णुता जैसे अभियान नहीं चलते हैं क्या? ऋषि सुनक में संयम रखा, धीरज दिखाया, इसका प्रतिफल भी उन्हें बहुत ही जल्द मिल गया। ब्रिटेन के सांसदों ने ऋषि सुनक को एक गंभीर और जिम्मेदार नागरिक मान लिया।

ऋषि सुनक की राजनीतिक उपलब्धि कोई चमत्कार से कम नहीं है। इनकी राजनीतिक यात्रा का आप विश्लेषण कीजिए, पड़ताल कीजिए, तुलना कीजिए तो फिर इनकी राजनीतिक यात्रा एक प्रेरणादाई चमत्कार से कम नहीं होगी। जितने कम समय में इन्होंने प्रधानमंत्री की कुर्सी पाने का चमत्कार कर दिखाया है, वैसा उदाहरण विश्व भर में देखने को नहीं मिलता। इनकी उम्र छोटी है, इनकी उम्र मात्र 42 वर्ष है। इनकी राजनीतिक यात्रा भी बहुत छोटी है, इनकी राजनीतिक यात्रा मात्र 7 साल की है।

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आप अंदाजा लगा सकते हैं कि मात्र 7 साल की राजनीतिक यात्रा में प्रधानमंत्री पद तक पहुंचना, कितनी बड़ी प्रेरणादाई उपलब्धि है। उन्होंने मात्र 35 वर्ष की उम्र में संसद का चुनाव लड़ा और विजयी भी हुए। ब्रिटेन के पिछले दो सौ साल के इतिहास में सुनक सबसे यंग प्रधानमंत्री है। ब्रिटेन के वित्त मंत्री के पद को भी सुनक ने सुशोभित किया है। ब्रिटेन में वित्त मंत्री का पद प्रधानमंत्री पद के बाद सबसे प्रमुख और शक्तिशाली माना जाता है।

कोरोना काल के कुछ समय पूर्व ऋषि सुनक ब्रिटेन के वित्त मंत्री बने थे। वित्त मंत्री के पद पर काम करना उनके लिए एक महान उपलब्धि थी। कोरोना काल की अर्थव्यवस्था को आप याद कर सकते हैं। कोरोना काल में विश्व की अर्थव्यवस्था विध्वंस हुई थी, मंदी भी बड़ी थी, मांग और आपूर्ति की समस्या खड़ी थी। ब्रिटेन भी कोरोना की मार से काहिल हुआ था, कई लाख लोग करोना के शिकार हुए थे। ऋषि सुनक ने वित्त मंत्री के तौर पर सराहनीय और प्रेरक काम किया था। अर्थव्यवस्था को गतिशील रखा था। कोरोना से लड़ने में पैसे की कमी नहीं आने दी थी। वित्त मंत्री के तौर पर उनकी उपलब्धियां भी प्रधानमंत्री पद तक पहुंचाने में सहायक सिद्ध हुई हैं। हिंदुत्व दुनिया भर में प्रेरणा और विश्वास का प्रतीक बन गया है।

ऋषि सुनक की भी पहचान हिंदुत्व की है। उन्होंने एक सांसद के तौर पर गीता पर हाथ रख कर शपथ ली थी। जब उन्होंने गीता पर हाथ रख कर शपथ ली थी, तब इसकी गूंज दुनियाभर में हुई थी, इनकी गीता और हिंदुत्व के प्रति समर्पण पर दुनिया भर में टीका टिप्पणी हुई थी। इनके दादा दादी गुलामी के दौर में भारत से पलायन कर अफ्रीका गए थे, अफ्रीका से इनके माता-पिता इंग्लैंड पहुंचे थे। हिंदुत्व से इनका लगाव वंशवादी है, बचपन से ही ये मंदिर जाते हैं, मंदिरों में कार्य सेवा करना इनकी दिनचर्या थी। इनके परिवार ने साउथ थैप्टन में एक विशाल मंदिर का निर्माण कराया है, इनका परिवार वैदिक सोसाइटी ऑफ ब्रिटेन से भी जुड़ा हुआ है।

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हिंदुत्व के आधार बिंदु पर दुनिया के कई देशों के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति हिंदू मूल के हैं। पुर्तगाल के प्रधानमंत्री एंटोनियो कोस्टा, सेसल के राष्ट्रपति वावेल रामकेलावन, मारीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद्र जगन्नाथ, सुरीनाम के राष्ट्रपति चंद्रिका प्रसाद संतोखी और अमेरिका के उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के नाम गिनाए जा सकते हैं। आखिर ब्रिटेन सहित दुनिया के अनेक देशों में भारतीय मूल के लोगों की पहुंच क्यों बन रही है, हिंदू भारतीय शासक के शिखर तक कैसे पहुंच रहे हैं? इस पर विचार किया जाना चाहिए।

वास्तव में यह शक्ति हिंदुत्व में ही निहित है, ॐ शांति में निहित है। हिंदू जिस भी देश में जाते हैं उस देश को ही अपना देश मान लेते हैं, उस देश की संस्कृति और सभ्यता को आत्मसात कर लेते हैं, मुस्लिम आबादी की तरह हिंदू घृणा, हिंसा तथा आतंकवाद का खेल नहीं खेलते हैं, अपने लिए किसी हिंदू देश की मांग नहीं करते हैं। यही कारण है कि हिंदू हर देश में स्वीकार्य हैं और शासक के तौर पर भी मान्य हैं। इसी का उदाहरण ऋषि सुनक है।

ऋषि सुनक के सामने चुनौतियां पहाड़ जैसी खड़ी है। अगर वे चुनौतियों को दक्षता कर्मठता के साथ सामना नहीं कर पाए तो फिर क्या होगा? जिस तरह वे राजनीति में चमके हैं उसी तरह हाशिए पर भी खड़े हो सकते हैं या फिर राजनीति के गर्त में समा सकते हैं। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि उसके सामने कितनी खतरनाक चुनौतियां खड़ी हैं और उन सभी चुनौतियों के नाम क्या-क्या है तथा उसके दायरे क्या है। इनकी सबसे बड़ी और खतरनाक चुनौती इस्लामिक रक्तबीज को नियंत्रित रखना है।

इस्लामिक रक्तबीज की समस्या सिर्फ ब्रिटेन की समस्या नहीं है, बल्कि इस्लामिक रक्तबीज की समस्या से पूरा यूरोप और अमेरिका भी त्रस्त है। खतरनाक एवं घृणित इस्लामिक आतंकवाद और मुस्लिम हिंसा बेलगाम हो चुकी है। जन्म दर की वृद्धि के साथ ही साथ मुस्लिम आबादी आक्रमण की समस्या भी तेजाबी है। निश्चित तौर पर ब्रिटेन की बहुलतावाद की संस्कृति खतरे में है। इस्लामिक रक्तबीज के सामने ब्रिटेन की बहुलतावाद की संस्कृति न केवल दबाव महसूस कर रही है बल्कि लगातार पराजित भी हो रही है।

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ब्रिटेन में अब मजहब आधारित राष्ट्रीयताएं भी पनप रही हैं। इसका उदाहरण बरमिंघम का दंगा है, जहां पर पाकिस्तानी, अरबी और अफ्रीकी मुसलमानों के साथ ही साथ भारतीय मुसलमान भी मजहबी राष्ट्रीयता की गोलबंदी में शामिल हो गए। ऐसी परिस्थिति हिंदुओं के साथ ही साथ ईसाई आबादी के लिए भी खतरनाक है। ईसाई आबादी और मुस्लिम आबादी के बीच प्रतिद्वंदिता खतरनाक तौर पर बढ़ी है, मुस्लिम आबादी के खिलाफ ब्रिटेन में राष्ट्रवाद लगातार मजबूत हो रहा है।

यूक्रेन युद्ध, इजराइल फिलिस्तीनी झगड़ा, चीन के साथ विवाद, यूरोपीय यूनियन के साथ तालमेल को लेकर कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा और दूरदर्शी नीतियों की जरूरत होगी। आंतरिक विकास को गति देना, टैक्स कटौती विवाद का हल करना, अपनी कंजरवेटिव पार्टी को संसदीय चुनाव में फिर से सत्तारूढ़ कराने की जिम्मेदारी ऋषि सुनक की होगी। कंजरवेटिव पार्टी लगातार कमजोर हो रही है, अलोकप्रिय भी हो रही है। बोरिस जानसन के बाद लिज ट्रस्ट की नाकामी का भार भी सुनक के सिर पर है। ब्रिटेन के पुराने इतिहास और ब्रिटेन के पुराने गौरव की रक्षा करने में अगर ऋषि सुनक सफल हो गए तो फिर वे एक और अमिट इतिहास बना डालेंगे और ब्रिटेन की सत्ता पर लंबे समय तक राज कर सकते हैं?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

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