पहले मित्र बनो तुम अपने,
सब जग के बन जाओगे।
कदम जहाँ रखोगे जग में,
अपनी प्रतिध्वनि पाओगे।।
जो भी मिले प्रेरणा पाए,
उत्साह उमंग से भर जाये।
ले संकल्प बढ़े वह आगे,
सब प्रश्नों का उत्तर पाए।।
गुणी बहुत स्वयं को जानो,
जागो उठो स्व को अपनाओ।
ऐसे ही सब जग को देखो,
वसुधा को परिवार बनाओ।।
– बृजेंद्र
‘प्रकृति संवाद’
जितना लेना उतना देना
प्रकृति संतुलन रखो बनाई।
वर्षा जल की करो व्यवस्था
भरि भंडार भूगर्भ में जाई।।
करो उपयोग जरूरी हो जो
व्यर्थ न बहे जल लेउ रचाई।
निर्मल जल रहे सब जगह
प्रदूषण से मिलि लेउ बचाई।।
जल कलश को हो स्थापन
पंच पल्लव से पूर्ण सज़ाई।
है प्रतीक ये पंच पल्लव को
हरिशंकरी एक देउ लगवाई।।
अब पंचगव्य प्रतीक से आगे
जीवंत महत्व देउ समझाई।
गौ आधारित प्राकृतिक खेती
आरोग्य मंत्र अब देउ बताई।।
प्रकृति की जो रक्षा करिहऊ
प्रकृति तुम्हारी सदा सहाई।
एक बीज प्रकृति में बोओ
सौ गुना करि देई लउटाई।।
– बृजेंद्र
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