Pauranik Katha: ज्ञान, प्रकाश के लिए होता है, अहंकार के लिए नहीं। जब ज्ञान अहंकार बन जाता है, तो वह तमस लेकर आता है, जो ज्ञान के प्रकाश को ढक देता है। भगवान भी अपने भक्त को ज्ञान के मार्ग से अहंकार के मार्ग पर जाता देखना पसंद नहीं करते। चलिए, जानते हैं माता सरस्वती और महाकवि कालिदास से जुड़ा ये दिलचस्प प्रसंग-
एक बार कालिदास पड़ोसी राज्य में शास्त्रार्थ करने जा रहे थे कि उन्हें रास्ते में प्यास लगी। सामने उन्हें कुंआ था और उसके पास एक झोपड़ी। जब वो झोपड़ी के सामने पहुंचे, तो झोपड़ी से एक बच्ची बाहर निकली। उसने कुएं से पानी भरा और जाने लगी। कालिदास ने उस बच्ची को जाते देख उससे पानी मांगा। उस बच्ची ने कालिदास से कहा कि वह तो उन्हें जानती तक नहीं, एक अनजान आदमी को पानी कैसे पिला दे। कालिदास को लगा कि वो तो इतने बड़े विद्वान हैं। भला! उन्हें कौन नहीं जानता। ये बच्ची है, शायद इसलिए उन्हें नहीं पहचानती।
उन्होंने बच्ची से कहा – ‘बालिका! तुम छोटी हो, इसलिए मुझे नहीं पहचानती। घर में कोई बड़ा हो, तो उसे भेजो। वह मुझे अवश्य पहचान लेगा। मैं बहुत विद्वान व्यक्ति हूं और मेरा बहुत नाम और सम्मान है। बच्ची ने कहा- ‘आप असत्य बोल रहे हैं। इस संसार में दो ही बलवान हैं। आपको पानी चाहिए, तो आप मुझे उनका नाम बताइये? कालीदास थोड़ा रुककर बोले – ‘मुझे नहीं पता’। बच्ची ने जवाब में कहा- ‘अन्न और जल। भूख और प्यास, इन दोनों में इतनी शक्ति है कि ये बड़े से बड़े बलवान को भी झुका दें। देखिये! प्यास ने आपकी हालत कैसी कर दी है।
कालिदास लड़की का तर्क सुनकर चकित रह गये। बच्ची ने कालिदास से कहा- ‘सत्य बतायें! आप कौन हैं वरना मैं पानी नहीं दूंगी’। अब कालिदास थोड़ा नम्र हो गये। उन्होंने कहा- ‘मैं बटोही हूं’। बच्ची ने कहा- ‘आप फिर असत्य कह रहे हैं। संसार में सिर्फ दो ही बटोही हैं और उन्हें मैं जानती हूं। आप जानते हैं, तो उनके नाम बताइए। कालिदास की प्यास से हालत खराब थी और उन्हें जवाब भी नहीं पता था। उन्होंने फिर न कहा। बच्ची बोली – ‘बिना थके मंजिल तक जाने वाला ही बटोही कहलाता है। ऐसे बटोही तो दो ही हैं, चंद्रमा और दूसरा सूर्य। दोनों बिना थके चलते हैं। आप तो थके-हारे हैं। आप बटोही कैसे हो सकते हैं?’
संसार में तो दो ही मेहमान हैं…
ये कहकर बच्ची घर के अंदर चली गई। तभी अंदर से एक वृद्ध स्त्री निकली। वह भी कुएं पर पानी भरने गई। कालिदास ने उससे भी पानी मांगा। उस वृद्ध महिला ने भी कालिदास से उनका परिचय पूछा। कालिदास ने इस बार अपने-आप को मेहमान बताया। स्त्री ने कहा – ‘संसार में तो दो ही मेहमान हैं। एक धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सच-सच बताओ, तुम कौन हो?
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हताश कालिदास ने अबकी बड़ी विनम्रता से कहा – ‘मैं सहनशील हूं। अब तो पानी पिला दें’। स्त्री ने जवाब देते हुए कहा- ‘सहनशीलता तो दो में ही है। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। दूसरा, पेड़ जिनको पत्थर मारो, फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सच नहीं बोल रहे। सही बताओ, तुम कौन हो? कालिदास ने इस बार झल्लाकर खुद को हठी बताया। उस वृद्ध स्त्री ने कहा- ‘फिर झूठ! हठी तो दो ही हैं पहला नख और दूसरा केश। कितना भी काटो, बार-बार निकल आते हैं’। अब कालिदास बेदम हो गये थे। तर्कों से थक-हारकर वो पानी के लिए लगभग गिड़गिड़ाने लगे। वृद्धा ने कालिदास से उठने के लिए कहा। कालिदास ने देखा कि सामने वृद्धा स्त्री नहीं बल्कि भगवती सरस्वती खड़ी हैं।
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