रवींद्र प्रसाद मिश्र

Loksabha Election 2024: जाति है कि जाती नहीं। जाति अगर वोट दिलाने लगे और आरक्षण का लाभ दिलाए तो जाति जाएगी कैसे। चुनाव जीतने के लिए नेता अक्सर जातिय समीकरण का प्रयोग करते रहते हैं, वहीं आरक्षण का लाभ पाने के लिए अन्य जातियों में पिछड़ा बनने की होड़ लगी हुई है। लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी ने जातीय समीकरण साधने के लिए प्रयोग करना शुरू कर दिया है। कांग्रेस ने 17 अगस्त को पार्टी में बड़ा फेरबदल करते हुए कई नेताओं के पदों में बदलाव किए हैं। इस बदलाव के साथ तीन राज्यों के अध्यक्ष एक ही जाति के हो गए हैं। इसे सिर्फ संयोग नहीं माना जा सकता। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह संयोग न होकर कांग्रेस का प्रयोग है। क्योंकि जिन तीन राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड को एक जाति के अध्यक्ष मिले हैं, इनमें जातीय समीकरण एकदम से हावी है। ये वे राज्य हैं, जहां कभी कांग्रेस का वर्चस्व रहा है। लेकिन जाति आधारित क्षेत्रीय पार्टियों ने न सिर्फ कांग्रेस के वर्चस्व को खत्म किया, बल्कि जातीय समीकरण को साध कर राज्य में सरकार बनाने में भी सफल रहीं।

कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में अजय राय, बिहार में अखिलेश प्रसाद सिंह और झारखंड में राजेश ठाकुर को अध्यक्ष बनाया है। ये तीनों अध्यक्ष एक ही जाति भूमिहार समाज से आते हैं। मजे की बात यह है कि बिहार, यूपी और झारखंड हिंदी पट्टी के राज्य हैं और तीनों की सीमाएं आपस में जुड़ती हैं। इन तीनों राज्यों की गिनती पिछड़े राज्यों होती है। वहीं इन तीनों ही राज्यों में कांग्रेस की कमान एक ही बिरादरी के नेताओं के पास आ गई है। माना जाता है पढ़े-लिखों की अपेक्षा पिछड़े क्षेत्रों पिछड़ी जाति के लोग एक मुश्त स्वाजातीय वोटिंग करते हैं। हालांकि कांग्रेस पार्टी की तरफ से दावा किया जाता है कि जाति, बिरादरी और मजहब की राजनीति नहीं करती। लेकिन सच यह है कि पार्टी में महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती से लेकर टिकट बंटवारे तक जाति और धर्म की ही फॉर्मूला चलता है।

जाति का चलन केवल कांग्रेस में ही नहीं बल्कि सभी राजनीतिक दलों में भी है। गत कई दशकों से अधिकतर दलों का जोर दलित और पिछड़ों पर रहा है। चुनावी वादों में दलित और पिछड़े सभी दलों के एजेंडे में शामिल रहते हैं। सामाजिक न्याय के इसी फॉर्मूले से कांग्रेस भी अपनी राजनीति करती रही है। यही वजह है कि पार्टी बड़े गर्व से कहती हैं कि उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे दलित नेता हैं। दलित नेता अध्यक्ष बनाने को पार्टी को कितना फायदा मिला, यह मल्लिकार्जुन खरगे के नेतृत्व में हुए चुनावों के नतीजों से समझा जा सकता है।

11 महीने में ही कांग्रेस का बृजलाल खाबरी से हो गया मोहभंग

कांग्रेस ने सामाजिक न्याय के लिहाज से ही यूपी में बृजलाल खाबरी को अध्यक्ष बनाया था। लेकिन पार्टी का 11 महीने में ही उनसे मोहभंग हो गया। बीएसपी से कांग्रेस में आए बृजलाल खाबरी को यूपी का अध्यक्ष बनाकर पार्टी दलितों को साधना चाहती थी। बता दें कि यूपी में एससी वोटर कभी कांग्रेस के साथ थे, अब कुछ मायावती के संग हैं और शेष बीजेपी के समर्थक बन गए हैं। खाबरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने वाला प्रयोग कांग्रेस के लिए माया मिली न राम जैसा रहा। फिलहाल लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी ने खाबरी की जगह अजय राय अब नया अध्यक्ष बनाया है। माना जा रहा है भूमिहारों का वोट कांग्रेस के पाले में लाने के लिए अजय राय पार्टी के लिए काफी मुफीद साबित हो सकते हैं।

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अखिलेश प्रसाद सिंह मूल कांग्रेसी नहीं

कांग्रेस ने करीब आठ महीने पहले ही अखिलेश प्रसाद सिंह को बिहार अध्यक्ष बनाया था। वह मौजूदा समय में राज्यसभा सांसद हैं और भूमिहार जाति से ताल्लुक रखते हैं। अखिलेश प्रसाद सिंह मूल कांग्रेसी नहीं है और RJD के कोटे से वह केंद्र में मंत्री भी रह चुके हैं। अजय राय की तरह अखिलेश प्रसाद सिंह भी दबंग किस्म के नेता माने जाते हैं।

इसी क्रम में झारखंड में राजेश ठाकुर को अगस्त, 2021 में कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया था। उस समय वरिष्ठ कांग्रेस नेता आरपीएन सिंह वहां के प्रभारी थे, जो अब कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो गए हैं। जानकारी के मुताबिक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष का कार्यकाल 2 साल का होता है और इस लिहाज से राजेश ठाकुर का कार्यकाल पूरा हो चुका है। जानकारों की मानें तो झारखंड के राजनीतिक समीकरण में भूमिहार कहीं से फिट नहीं बैठते हैं। इस लिहाज से यहां राजेश ठाकुर की जगह किसी और को अध्यक्ष बनाया जा सकता है।

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