प्रकाश सिंह

Lok Sabha Elections 2024: जाति है कि जाती नहीं, और जाएगी भी कैसे जब लोग इसे जाने ही नहीं देंगे। भारत में जाति आधारित राजनीति लोगों में वैमनस्य बढ़ा रहा है। नेता मंच से जाति को समाप्त करने की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन वोट के लिए लोगों को लगातार जातियों में बांटते जा रहे हैं। जाति में आरक्षण करके पहले लोगों को तोड़ा गया और अब जाति आधारित जनगणना की बात करके लोगों के बीच खाई पैदा करने की कोशिश शुरू हो चुकी है। मजे की बात यह है जातीय जनगणना की मांग जनता की समस्याओं से इतर राजनीतिक फायदे के लिए की जा रही है। चुनाव के समय अक्सर गड़े मुर्दे उखाड़े जाते हैं। जनता गरीबी, बेरोजगारी, मंहगाई, शिक्षा-चिकित्सा आदि मूलभूत सुविधाओं के अभाव से जूझ रही है। लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले नेताओं ने जनता की समस्या से हटकर जातीय जनगणना, ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) और नेशनल पेमेंट सिस्टम (NPS) को मुद्दा बनाकर अपना राजनीति हित साधने में जुट गई हैं।

गौरतलब है कि जनता कभी अपने मुद्दों पर वोटिंग नहीं करती। वह अक्सर नेताओं और दलों की तरफ से थोपे गए मुद्दों को सही मानकर विश्वास कर बैठती है। इसी का फायदा राजनीति दल वर्षों से उठाते आ रहे हैं। मोदी सरकार में सरकारी योजनाओं में जहां काफी हद तक पारदर्शिता आई है, वहीं गरीबों को उनका हक भी मिलने लगा है। किसानों को किसान सम्मान निधि तो गरीबों मिलने वाला मुफ्त अनाज ने काफी हद तक उनके दर्द को बांटा है। बीजेपी की सरकार ने जो चुनावी वादे किए थे, उसे काफी हद तक पूरा भी किया है। शायद यही वजह है कि विपक्षी दलों का सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार का असर जनता पर पड़ता नहीं दिखाई दे रहा है।

एक नेता को हराने के लिए सभी एक साथ

मजेदार बात यह है कि एक नेता को हराने के लिए सारी विपक्षी पार्टियों को साथ आना पड़ गया। यहांं एक नेता इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि चुनाव कोई भी हो लड़ा पीएम मोदी के नाम से जा रहा है। वहीं विपक्षी दल कोई भी हो उसका मकसद पीएम मोदी को हराना बन चुका है। वहीं मुद्दों पर सरकार को न घेर पाने वाले नेता जातीय जनगणना कराने के नये मुद्दे बना रहे हैं। बिहार सरकार ने जातीय जनगणना की रिपोर्ट भी सार्वजनिक कर चुकी है। वहीं कांग्रेस सत्ता में आने के बाद जातीय जनगणना कराने की बात कह रही है। जबकि मौजूदा समय में कांग्रेस की कई राज्यों में सरकार है। ऐसे में जातीय जनगणना अगर इतना ही सही है, तो जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें हैं वहां जातीय जनगणना कराने में क्या दिक्कत है। सच तो यह है कि उत्तर प्रदेश और बिहार दो ऐसे राज्य हैं, जहां जातियों का वर्चस्व है।

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धर्म को टारगेट करके वोट हासिल की राजनीति

उत्तर प्रदेश और बिहार में जातियों की बदौलत सरकार भी बनती है और बिगड़ी रहती है। कड़वा सच यह भी है कि दोनों राज्यों के पिछड़े होने का कारण भी जाति ही है। हालांकि 2024 में नरेंद्र मोदी की आंधी में सारे जातीय समीकरण ध्वस्त हो गए। जाति के बदौलत सत्ता पाने की छटपटाहट क्षेत्रीय दलों में साफ देखा जा रहा है। इसके लिए कभी नेता कभी रामचरित मानस की चौपाई पर सवाल उठा रहे हैं, तो कोई सनातन धर्म को समाप्त करने की बात कह रहा है। जबकि ये बातें न कभी चुनावी मुद्दे थीं और न कभी बन सकती है। बस कुछ चंद लोगों को खुश करने के हिंदू धर्म को टारगेट करके वोट हासिल करने कुचक्र रचा जा रहा है। जातीय समीकरण साध कर लगातार चुनाव जीतने वाले नेता हवा हो गए। 2014 के बाद से इसका हल ढूंढने में जुटे क्षेत्रीय दलों के नेताओं ने 2024 लोकसभा चुनाव से पहले जातीय जनगणना को नया हथियार बनाया है। जातीय को जातीय में भेदभाव कर ये नेता बीजेपी के विजय रथ को रोकने के प्रयास में हैं। ऐसे में जनता को समझना होगा कि देश में जातीय जनगणना जरूरी है या फिर मंहगाई, बेरोजगारी, सस्ती शिक्षा व इलाज मिलना चाहिए।

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