है शरीर यदि स्वस्थ्य हमारा,
हम कुछ भी कर सकते हैंI
कोई असम्भव कार्य नहीं है,
ऊंची उड़ान भर सकते हैं।।

स्वस्थ शरीर के लिए चाहिए,
नस नाड़ी सब स्वस्थ् रहे।
स्पन्दन हो नियमित गति से,
अविरल रक्त प्रवाह बहे।।

रक्त एक क्षण को रुक जाए,
तो हृदयाघात तुरत होता है।
हैं शरीर के अंग सभी पर,
जीवन प्राण तुरत खोता है।।

धरती मां का भी जीवन है,
नदी नाले सब रक्त बहिनी।
अविरल निर्मल वे बहते हैं,
जीवन रहता सदा दाहिनी।।

अविरलता बाधित होते ही,
निर्मलता वो स्वतः है खोती।
नदियों की दुर्गति से समझें,
जीवन की दुर्गति जो होती।।

जीवन अगर बचाना अपना,
तो नदियों को रखो प्रवाही।
अविरल निर्मल रहें सदा वह,
सुखद पंथ के बनो सिपाही।।

– बृजेंद्र

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