Kahani: बेटी तीस साल की हो गई है, बेशक अब हम भारत में नहीं अमेरिका में पिछले चालीस साल रह रहे हों, हम माता-पिता को बेटी की उम्र बढ़ते ही उसकी विवाह की चिंता सताने लगती हैं। वर की खोजबीन जारी हैं, एक भारतीय मैच मेकर लगातार प्रयास जारी होते हुए भी अभी तक संयोग नहीं बन पा रहा था, इसी बीच कल बेटी ने अपने एक बॉयफ्रेंड को मिलवाने के लिए ले आयी थी, चूंकि बेटी, यहीं अमेरिका में पैदा होकर पली बढ़ी है, भारतीय होकर भी आजाद ख्याल की हैं, तो यहाँ यह साधारण सी बात थी, सो बेटी की पसंद को मिलना ही था।

लड़का देखने में स्मार्ट, अच्छी हाइट और जिम वाली बॉडी वाला, जिसे देखते ही एकदम अच्छा भी लगा। लड़का अच्छा कमाने वाला था, साथ ही बेटी काफ़ी समय से डेट भी कर रही थी, उसे लड़का काफ़ी पसंद था, बेटी की सारी पसंद नापसंद का अच्छे से ख्याल भी रख रहा था। अब तक जितने भी लड़के देखे गए वह बेटी के स्वभाव से मैच नहीं कर पा रहे थे, लड़का एक नजर में दिखने में भी भारतीय भी लगा था। बेटी से बात करने पर पता चला यह लड़का डेटिंग ऐप से उसे मिला था। हमारी बातों का सिलसिला शुरू हुआ, तो आगे पता चला लड़का और उसका परिवार पाकिस्तानी मुसलमान हैं और काफ़ी समय से अमेरिका में ही सेटिल हैं, यह मेरे लिए शोकिंग था।

नहीं-नहीं अंकल बेशक मैं मुसलमान हूँ, लेकिन मैं और मेरी दोनों बहने काफ़ी समय से अमेरिका के ही सिटीजन हैं। हम लोग बड़े लिबरल हैं, धर्म में ज्यादा विश्वास नहीं रखते, मैं आपकी बेटी को अच्छे से रखूंगा, आपको कोई शिकायत का मौका नहीं दूंगा। चूँकि मेरे माता-पिता पाकिस्तान से इन्हीं लोगों के द्वारा भगाये गए थे और उन्होंने भारत में बड़ी मुश्किल से हमें पाल-पोस कर बड़ा किया था। मैं उसके लिबलर होने को अच्छे से समझ रहा था, जैसे-तैसे उस समय मैंने अपने परिवार से मिलने की इच्छा दिखाते हुए उसे हंसी खुशी रवाना किया।

मैं समझ चुका था, उसने मेरी बेटी को अपने जाल में अच्छे से फंसा लिया था, मुझे अपनी बेटी को समझाना भी था और उसकी असलियत से भी अवगत कराना भी था। बेटी किसी भी तरह से मान नहीं रही थी, उसके लिए अब तक जितने भी लड़के देखे थे, यही एक मात्र लड़का ऐसा था जो अमेरिकन भी था उसे हर तरह से अच्छा लगा था। उसे कोई भी कमी नजर नहीं आ रही थी, बस मुसलमान होने की वजह से मैं मान नहीं रहा था। नहीं डैडी, हमारे हिन्दू होने में नावेद को कोई दिक्क़त नहीं, वह कह रहा हैं, तुम किसी भी देवी-देवता की पूजा करे मुझे कोई दिक्कत नहीं हैं, उसे किसी धर्म से कोई दिक्क़त नहीं हैं।

बेटी मुझे हर तरीके से संतुष्ट करने की कोशिश कर थी, ज़ब मैं हर सम्भव उसे समझाने में नाकामयाब रहा, तो मैंने उसे उसके परिवार के अन्य सदस्यों से मिलने की अपनी स्वकृति दे दी। एक ओर बेटी की ख़ुशी देखते नहीं बन रही थी, वहीं दूसरी ओर मैं बेहद परेशान था। खैर कुछ दिनों के बाद की मीटिंग फिक्स थी नावेद अपनी दोनों बहनों के साथ हमारे घर पर आया, पहली नजर में उसकी दोनों बहनें आधुनिक अमेरिकन ही थीं। तीनों लोग खुशमिजाज और बेबाक थे, अपने मुस्लिम होने की मेरी चिंता को अच्छे से समझ रहे थे। बातों का सिलसिला शुरू हुआ, मेरी दुविधा को वह लोग अच्छे से ऑब्जर्व कर रहे थे- “अंकल आप लोग चिंता न करें, हम अमेरिकन हैं, अब तो हम लोग नमाज़ भी नहीं पढ़ते और न ही रोजे बगैरह रखते हैं।” हॅसते हुए मुझे विश्वास में लेने लगे। “जी, जी! अच्छा लगा कि आप लोग नाम से ही केवल मुस्लिम हैं, आप लोगों को मेरी बेटी के पूजा-पाठ से भी कोई दिक्क़त नहीं है।”

जी अंकल, हमें निधि के पूजा पाठ से बिलकुल भी दिक्कत नहीं हैं। वैसे भी ऊपर वाला तो एक ही हैं, उसको कैसे भी याद करो, उसका कैसे भी शुक्रिया अदा करो।” तीनों एक साथ ख़ुश होते बोले.. “इसका मतलब नावेद तुम अपनी बहनों की शादी भी हिन्दुओं में कर सकते हो?” थोड़ा झिझकते हुए उसने बड़ी धीमी आवाज में अपनी सहमति जताई। “जी बिलकुल, यह पसंद करेगी तो जरूर करुगा, वैसे भी हम इनके लिए रिश्ता देख भी रहे हैं।”

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“ठीक हैं, हमारे परिवार में दो लड़के हैं, जो स्मार्ट और हर तरह से काबिल भी है। आप यह रिश्ता करवा दें, मुझे आपकी दोनों बहने अच्छी लगी हैं।” सपकपाते तीनों मेरी शक्ल देखने लगे, मैंने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, “यदि आप लोगों को कोई दिक़्क़त नहीं हैं, निधि की शादी से पहले मैं चाहूँगा कि इन दोनों की शादी हम हिन्दुओं में करा दी जाये। “और हाँ, आपकी सबकी शादियां हमारे हिन्दू रीति रिवाज़ से ही होंगी।” अब तीनों की झिझक बढ़ गईं थी, धीमे आवाज से नावेद बोला- “अंकल आप जैसा चाहें, हम दोनों वैसे शादी कर लेगे।” आप लोग वैसे भी धर्म को नहीं मानते, आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि हमारे यहां पूजा पाठ में गौ मूत्र भी पिलाया जाता हैं, यहाँ अमेरिका में अब नॉनवेज के बिना पार्टी नहीं होती और उसमे पोर्ग मटन (सूअर का मीट) ही बनता हैं, मेरे ख्याल से आप लोग वह खा ही लेंगे। अब तीनों मेरी शक्ल देख रहे थे। जल्द ही नाश्ता निपटा कर तीनों ने विदा लेने लगे, तो जाते-जाते मैंने कहा, मैं चाहूंगा कि जल्द से जल्द आप अपनी दोनों बहनों की मीटिंग हमारे बच्चों से करा दें, जिससे आप दोनों की शादी भी जल्द हो सके। इस मुलाक़ात की लगभग पंद्रह दिन हो चुके हैं, बेटी लगातार नावेद को फोन मिला रही हैं, न जाने क्यों उसका नंबर हर वक्त विजी की टोन देता है!

साभार: अनीश गिरोत्रा जी

संगीता वर्मा जी की वॉल से

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