
Kahani: पंचायत चुनाव की तारीख अभी मुकर्रर नहीं हुई थी। आरक्षण में लोग अटकलें लगा रहे थे कि इस बार कौन सी सीट आएगी। लोग उत्साह और ख्वाबों में प्रधान बनने की राह जोह रहे थे। गली और चौराहे, दुकान पर चर्चा जोरों पर थी। ठेके संभावित प्रत्याशियों की रहमोकरम पर गुलजार थे। गुनगुनी ठंड इस बात की दस्तक दे रही थी कि इस बार कड़ाके की ठंड से लोग ठिठुर जाएंगे, लेकिन अभी अलाव जलना शूरू नहीं हुआ था।
शिव मोहन शाम को कुछ लकड़ी बटोरकर ले आये, तब तक उनका लड़का कोचिंग से घर आ गया। तो उन्होंने आवाज देते हुए पुकारा युवराज जरा अलाव जलाना, तो उधर से शिवमोहन की पत्नी राधा भी घर से निकली और बोली अभी कहां पाला पड़ रहा है? शिवमोहन ने कहा शाम को बैठे-बैठे ऊब जाता हूं, कम से कम इसी बहाने दो-चार लोगों से गपशप होगी तो मन हल्का हो जाएगा। राधा मुंह मटका कर बोली, युवराज जला दे अलाव। उन्हें प्रधानी का नशा चढ़ा हुआ है चार लोग आएंगे तो उनसे गपशप करते हुए रात 10:00 बज जाएंगे।
शिवमोहन को पिछली बार गांव के लोगों से पंचायत चुनाव में बैठने पर मजबूर कर दिया था। शुरुआत में उन्होंने अपना प्रचार-प्रसार शुरू किया तो रुझान में आगे चल रहे थे, लेकिन जब पर्चा भरने की बारी आई तो शिव बहादुर ने आकर शिव मोहन का पैर पकड़ लिया और कहा कि इस बार हमें मौका दीजिए। अगली बार हम आपके लिए प्रधानी की सीट छोड़ देंगे, उसी रात बिरादरी की पंचायत में शिव मोहन अपनी हसरतों का दम घुटते हुए देखा। ख्वाबों पर ब्रेक लगाकर उदास मन से शिवकुमार को चुनाव जीतने का आशीष दे दिया था।
चुनाव जीतने के बाद शिव कुमार का रवैया और स्वभाव दोनों बदल गया। गांव में एक चकरोड बनने की बात पर शिव कुमार ने शिव मोहन को गाली दे दिया था। तभी से शिव मोहन को अपनी गलती पर पछतावा हो रहा था। उनके समर्थक अभी कह रहे थे की आप लड़ते तो आज यह सब नहीं देखना पड़ता। तब से शिव मोहन पंचायत चुनाव की तारीख मुकर्रम होने का इंतजार कर रहा था। उसके जेहन में सिर्फ पंचायत चुनाव को लेकर चर्चा रहती थी। अलाव जलाने पर दो-चार लोग इकट्ठा होते, तो अपने मन की बात रखता था।

मगर 5 साल का समय बहुत होता है। शिव मोहन के भाई का बेटा बंटी पिछले चुनाव में सिर्फ 13 साल का किशोर था, इस बार 18 का हो गया था। सोशल मीडिया पर राजनीति के धांसू स्टेटस डालकर अपना धौंस जमा रहा था। एक दो बार राजनीतिक दलों की पार्टियों में शामिल हुआ, तो वहां का ठाठ-बाट और रसूख देखकर राजनीति में आने का मन बना लिया था। अभी वह बीए पास कर पाया था और अब वह पंचायत चुनाव से सियासत की शुरुआत करना चाहता था। लेकिन उसकी राह में सबसे बड़े रोड़ा उसके चाचा शिव मोहन ही बन रहे थे।
शिवमोहन को इसकी भनक थी लेकिन उन्हें इस बात का भरोसा था कि समझाने पर बंटी मान जाएगा, लेकिन गांव में लड़कों के साथ पार्टी करना उनके सुख-दुख में शामिल होना और राजनीतिक दलों की बैठकों में जाने से उन्हें इस बात की आशंका बढ़ने लगी कि वह पंचायत चुनाव लड़े बिना नहीं मानेगा। इसलिए वह कभी-कभी मन उदास हो जाते थे, लेकिन शिवकुमार की पिछली बात जिसमें उसने वादा किया था कि वह चुनाव नहीं लड़ेगा और उसे चुनाव में समर्थन करेगा इससे वह उम्मीदों का सूरज उगने लगता था।
पंचायत चुनाव आपसी संबंधों, रिश्तों और भरोसे की प्रयोगशाला है। यह स्वार्थ में लिप्त मनुष्य की हकीकत का महोत्सव है, जिसमें लोग बात पड़ने पर नंगे हो जाते हैं और मौका मिलने पर अपनों का गला रेतने से बाज नहीं आते हैं। चुनाव में कितनों का भरोसा टूटता है, कितनों का दिल पत्थर हो जाता है, कितनों का हृदय आहत होता है और कितनों के ख्वाब मुकम्मल होते है। कुछ लोगों के घर में मातम छाया रहता है। किसी के घर में बड़े नेताओं के फोन कॉल से उम्मीदें परवान चढ़ती हैं।
शाम को जब अलाव जला तो राघव, माधव और बिरजू अलाव के सामने पहुंच गए। शिव मोहन ने प्लास्टिक की कुर्सी मंगाई बिरजू खैनी मलते हुए कहा कि इस बार तो बंटी अपना रंग दिखा रहा है। नए लोगों को तैयार कर रहा है, आप कैसे चुनाव लड़ेंगे जब घर में ही लड़का बैठने को तैयार नहीं है। तभी साफा बांधे हुए बंटी मोटरसाइकिल से उतर कर आता है। शिवमोहन ने उसे बुलाया और कहा कि चुनाव इस बार हमें लड़ना है, अभी तुम इतने परिपक्व नहीं हुए हो।
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बंटी ने अपने सिर हिलाते हुए कहा चाचा, इस बार तो हमें चुनाव लड़ना ही है पूरा गांव हमारे समर्थन में है हम चुनाव जीत कर ही दिखाएंगे। शिवमोहन ने लाख समझाया, लेकिन बंटी टस से मस नहीं हुआ। तब उन्होंने फैसला लिया कि घर में लड़ रहे लड़के का साथ देंगे, नहीं तो उनके भाई का भी मन टूट जाएगा। भले ही पिछली बार हमें भरोसा मिला था, लेकिन इस बार तो घर के ही लड़के ही हमारा भरोसा तोड़ रहे हैं। वह जान चुके थे कि हम भले ही बंटी के समर्थन कर रहे हैं, लेकिन अगर मैं चुनाव लड़ूंगा तो बंटी बगावत कर देगा और इसका नतीजा घर में बिखराव के रूप में आएगा। घर में सामंजस और एकता बनाए रखने के लिए अपनी हसरतों का तोड़ना ही पड़ेगा। उन्होंने बंटी के सिर पर हाथ रखा और उसे जीतने का आशीर्वाद दिया। इतना सुनते ही बंटी फूला नहीं समाया।
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