Kahani: एक कसाई के घर एक बकरा और एक कुत्ता था। कसाई बकरे को हर दिन हरी-हरी घास खिलाता, साफ-सुथरी जगह पर रखता और उसकी देखभाल करता। अब बकरा देखो तो दिनोंदिन मोटा ताजा होता जा रहा था। दूसरी ओर, कुत्ते को रोटी के सूखे टुकड़े ही मिलते। वह धूप, ठंड और बारिश सहन करते हुए भी अपने मालिक की सेवा करता था। इधर बकरा कुत्ते को जलाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ता।

धीरे-धीरे कुत्ते के मन में बकरे को देखकर ईर्ष्या पैदा होने लगी। वह सोचने लगा कि बिना किसी मेहनत के बकरा स्वादिष्ट भोजन पाता है, बड़ा ही खुशकिस्मत है। जबकि वह कितना बद्किस्मत है कि उसे सूखी रोटी खानी पड़ती है। उसे लगने लगा कि ईश्वर न्याय नहीं करते। समय बीता, बकरा मोटा हो गया। एक दिन कसाई ने अपनी छूरी उसकी गर्दन पर फेर दी। यह देखकर कुत्ते को समझ आ गया कि बिना मेहनत और गलत तरीके से हासिल की गई संपत्ति या सुख का अंत अच्छा नहीं होता, जबकि परिश्रम और संतोष का जीवन ही असली सुख देता है।

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सीख: जीवन में हमारे सामने ही सैकड़ों हजारों उदाहरण देखने को मिलते हैं कि अनुचित तरीकों से कमाया गया धन या सुख स्थायी नहीं होता। लालच और धोखे से कमाई गई संपत्ति अंततः विनाश का कारण बनती है। ईमानदारी और मेहनत से जीने वाले व्यक्ति को न केवल सच्ची खुशी मिलती है, बल्कि वह निडर और शांतिपूर्ण जीवन जीता है। इसलिए, जीवन में परिश्रम और ईमानदारी को ही अपना आदर्श बनाना चाहिए।

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