Kahani: एक राजा सायंकाल में महल की छत पर टहल रहा था। अचानक उसकी दृष्टि महल के नीचे बाजार में घूमते हुए एक सन्त पर पड़ी। संत तो संत होते हैं, चाहे हाट बाजार में हों या मंदिर में अपनी धुन में खोए चलते हैं। राजा ने महूसस किया वह संत बाजार में इस प्रकार आनंद में भरे चल रहे हैं जैसे वहां उनके अतिरिक्त और कोई है ही नहीं। न किसी के प्रति कोई राग दिखता है न द्वेष। संत की यह मस्ती इतनी भा गई कि तत्काल उनसे मिलने को व्याकुल हो गए।
उन्होंने सेवकों से कहा इन्हें तत्काल लेकर आओ। सेवकों को कुछ न सूझा तो उन्होंने महल के ऊपर ऊपर से ही रस्सा लटका दिया और उन सन्त को उस में फंसाकर ऊपर खींच लिया। चंद मिनटों में ही संत राजा के सामने थे। राजा ने सेवकों द्वारा इस प्रकार लाए जाने के लिए सन्त से क्षमा मांगी। संत ने सहज भाव से क्षमा कर दिया और पूछा- ऐसी क्या शीघ्रता आ पड़ी महाराज जो रस्सी में ही खिंचवा लिया। राजा ने कहा- एक प्रश्न का उत्तर पाने के लिए मैं अचानक ऐसा बेचैन हो गया कि आपको यह कष्ट हुआ। संत मुस्कुराए और बोले- ऐसी व्याकुलता थी अर्थात कोई गूढ़ प्रश्न है। बताइए क्या प्रश्न है।
राजा ने कहा- प्रश्न यह है कि भगवान शीघ्र कैसे मिलें, मुझे लगता है कि आप ही इसका उत्तर देकर मुझे संतुष्ट कर सकते हैं? कृपया मार्ग दिखाएं। सन्त ने कहा- ‘राजन, इस प्रश्न का उत्तर तो तुम भली-भांति जानते ही हो, बस समझ नहीं पा रहे। दृष्टि बड़ी करके सोचो तुम्हें पलभर में उत्तर मिल जाएगा। राजा ने कहा- यदि मैं सचमुच इस प्रश्न का उत्तर जान रहा होता तो मैं इतना व्याकुल क्यों होता और आपको ऐसा कष्ट कैसे देता। मैं व्यग्र हूं। आप संत हैं। सबको उचित राह बताते हैं। राजा एक प्रकार से गिड़गिड़ा रहा था और संत चुपचाप सुन रहे थे जैसे उन्हें उस पर दया ही न आ रही हो। फिर बोल पड़े सुनो अपने उलझन का उत्तर।
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सन्त बोले- सुनो, यदि मेरे मन में तुमसे मिलने का विचार आता तो कई अड़चनें आतीं और बहुत देर भी लगती। मैं आता, तुम्हारे दरबारियों को सूचित करता। वे तुम तक संदेश लेकर जाते। तुम यदि फुर्सत में होते तो हम मिल पाते और कोई जरूरी नहीं था कि हमारा मिलना सम्भव भी होता या नहीं। परंतु जब तुम्हारे मन में मुझसे मिलने का विचार इतना प्रबल रूप से आया तो सोचो कितनी देर लगी मिलने में? तुमने मुझे अपने सामने प्रस्तुत कर देने के पूरे प्रयास किए। इसका परिणाम यह रहा कि घड़ी भर से भी कम समय में तुमने मुझे प्राप्त कर लिया।
राजा ने पूछा- परंतु भगवान् के मन में हमसे मिलने का विचार आए तो कैसे आए और क्यों आए? सन्त बोले- तुम्हारे मन में मुझसे मिलने का विचार कैसे आया? राजा ने कहा- जब मैंने देखा कि आप एक ही धुन में चले जा रहे हैं और सड़क, बाजार, दूकानें, मकान, मनुष्य आदि किसी की भी तरफ आपका ध्यान नहीं है, उसे देखकर मैं इतना प्रभावित हुआ कि मेरे मन में आपसे तत्काल मिलने का विचार आया। सन्त बोले- यही तो तरीका है भगवान को प्राप्त करने का। राजन, ऐसे ही तुम एक ही धुन में भगवान की तरफ लग जाओ, अन्य किसी की भी तरफ मत देखो, उनके बिना रह न सको, तो भगवान के मन में तुमसे मिलने का विचार आ जायगा और वे तुरन्त मिल भी जायेंगे।
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